मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने एक फैसले में कहा है कि आधार कार्ड में अपनी निजी जानकारी ठीक कराने का हर नागरिक का अधिकार एक ‘मौलिक अधिकार’ है।
एक हालिया फैसले में, जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति सही कागज़ात दिखाकर अपने आधार कार्ड की गलतियाँ ठीक करवाना चाहता है, तो भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) उन गलतियों को सुधारने के लिए “बाध्य” है। कोर्ट ने यह फैसला एक 74 वर्षीय विधवा की याचिका पर सुनाया। आधार कार्ड में मामूली गलतियों के कारण इस महिला को पाँच महीने से ज़्यादा समय से अपनी पारिवारिक पेंशन नहीं मिल पा रही थी।
क्या है पूरा मामला?
 
यह याचिका परमाकुडी में रहने वाली 74 वर्षीय पी. पुष्पम ने दायर की थी। उनके पति भारतीय सेना में 21 साल सेवा देने के बाद गुज़र गए।
जब श्रीमती पुष्पम ने अपने पति की पारिवारिक पेंशन के लिए रक्षा लेखा कार्यालय (पेंशन) में अर्जी दी, तो उनका काम रुक गया। फैसले में बताया गया कि “इसकी एकमात्र वजह उनके आधार कार्ड में गड़बड़ी थी।” उनके आधार कार्ड पर उनका नाम “पुष्पम” की जगह “पुष्बम” लिख गया था और उनकी जन्म तारीख “07.06.1952” के बजाय “25.06.1952” दर्ज हो गई थी।
महिला ने इन गलतियों को अपने आस-पास के ई-सेवा केंद्र और डाकघर में ठीक कराने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने UIDAI के बेंगलुरु दफ्तर को भी अर्जी भेजी, पर वहाँ से भी कोई जवाब नहीं आया। आखिर में, उन्होंने इंसाफ के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
हाईकोर्ट ने अपनी जांच में क्या कहा?
जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि यह मामला एक “बड़ा उदाहरण” है कि आधार की गलतियों से आम आदमी को कितनी परेशानी होती है। उन्होंने कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि आधार कार्ड आज एक बहुत ज़रूरी कागज़ बन गया है।”
कोर्ट ने आधार कानून 2016 की धारा 31 को देखा, जो हर नागरिक को अपनी गलत जानकारी ठीक कराने का हक देती है। कानून में लिखा है कि ‘प्राधिकरण’ (यानी UIDAI) संतुष्ट होने पर बदलाव “कर सकता है”। इस पर कोर्ट ने साफ़ किया कि यहाँ “कर सकता है” का मतलब “करना ही होगा” या “अनिवार्य” माना जाना चाहिए।
फैसले में कहा गया, “मेरा मानना है कि अगर कोई सही जानकारी देता है, तो प्राधिकरण (UIDAI) आधार कार्ड में सुधार करने के लिए मजबूर है। दूसरे शब्दों में, धारा 31 का असली मकसद ही यही है कि हर किसी के आधार कार्ड में उसकी सही जानकारी दर्ज हो।”
कोर्ट ने देखा कि महिला के पति के पेंशन भुगतान आदेश (Pension Payment Order) में उनकी सही जन्म तारीख “07.06.1952” साफ-साफ लिखी थी और आधार के नियमों में यह एक मान्य दस्तावेज़ है। कोर्ट ने कहा, “जब उन्होंने यह कागज़ दे दिया है, तो उनके आधार कार्ड में जानकारी तुरंत ठीक की जानी चाहिए।”
“जानकारी ठीक कराना भी मौलिक अधिकार”
कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि लोगों को आधार ठीक कराने में कितनी दिक्कतें आती हैं। UIDAI के वकील ने कोर्ट को बताया कि सभी दक्षिणी जिलों के लिए सिर्फ मदुरै में एक ही आधार सेवा केंद्र (ASK) है। इस पर जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि उन्हें “यह समझ नहीं आता कि एक विधवा को अपनी जानकारी ठीक कराने के लिए इतनी दूर मदुरै क्यों आना पड़े,” जबकि यह सुविधा “स्थानीय स्तर पर मिलनी चाहिए।”
जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि आधार से जुड़ी सेवाएँ पाना “हर आधार धारक का मौलिक अधिकार है।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए कहा: “जब सरकारी योजनाओं का लाभ पाना एक मौलिक अधिकार है और यह लाभ आधार कार्ड के ज़रिए ही मिलता है, तो उस आधार कार्ड में अपनी जानकारी सही कराने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है।”
अंतिम फैसला
हाईकोर्ट ने महिला की याचिका मंजूर कर ली। कोर्ट ने कहा कि UIDAI भले ही भविष्य में नए केंद्र खोलने की योजना बना रहा है, लेकिन “याचिकाकर्ता उतना इंतज़ार नहीं कर सकती।”
कोर्ट ने महिला को निर्देश दिया कि वे खुद मदुरै आधार केंद्र जाकर कोर्ट के इस आदेश की कॉपी दिखाएँ। कोर्ट ने UIDAI को आदेश दिया कि “इसके बाद, बिना किसी देरी के, याचिकाकर्ता के आधार कार्ड में ज़रूरी बदलाव किया जाए।”
साथ ही, पेंशन विभाग को भी निर्देश दिया गया कि जैसे ही आधार ठीक हो, वे “जल्द से जल्द महिला के नाम पर पेंशन खाता चालू करें।”


 
                                     
 
        



