गाली-गलौज और बेइज़्जती मात्र से आत्महत्या के लिए उकसावे का अपराध सिद्ध नहीं होता: सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या मामले में दर्ज मुकदमा किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसावे के मामले में दर्ज आपराधिक मुकदमे को रद्द करते हुए कहा है कि केवल अपमानजनक शब्दों के प्रयोग और गाली-गलौज भर से धारा 306 आईपीसी के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध सिद्ध नहीं होता, जब तक कि अभियुक्त द्वारा जानबूझकर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का कोई ठोस और निकटवर्ती कार्य न किया गया हो।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने क्रिमिनल अपील संख्याएं 4268-4269/2024 में यह फैसला सुनाया। अपीलें मद्रास हाईकोर्ट के 13 अप्रैल 2018 के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थीं, जिसमें आरोपियों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था।

मामला क्या था

दीनेश नामक युवक ने 9 दिसंबर 2013 को आत्महत्या कर ली थी। उसकी शादी 15 सितंबर 2013 को पुष्पकलाश्री (अभियुक्त संख्या 7) से हुई थी। अभियोजन के अनुसार, शादी के कुछ ही सप्ताह बाद विवाद उत्पन्न हुआ और 10 नवंबर 2013 को अभियुक्तगण (पत्नी सहित कुल 7) ने दीनेश के घर जाकर न सिर्फ उसे और उसकी मां को गाली दी, बल्कि सार्वजनिक रूप से उसे नपुंसक कहकर अपमानित किया और पत्नी को साथ लेकर चली गईं। यह भी आरोप था कि झूठे दहेज केस की धमकी दी गई थी।

शुरुआत में पुलिस ने धारा 174 सीआरपीसी के तहत केस दर्ज किया। बाद में मृतक के भाई की शिकायत और मृतक की डायरी के कथित फटे पन्नों के आधार पर मामला धारा 306 आईपीसी में परिवर्तित किया गया और चार्जशीट दाखिल हुई।

आरोपियों का पक्ष

अपीलकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि:

  • आत्महत्या नोट पर तारीख अंकित नहीं थी।
  • नोट की लिखावट मृतक की है, इसका कोई फॉरेंसिक प्रमाण नहीं था।
  • घटना और आत्महत्या के बीच एक महीना बीत चुका था — इस अवधि में कोई संपर्क नहीं हुआ।
  • आत्महत्या नोट में ऐसा कोई सीधा उकसावा नहीं था, जिससे यह साबित हो कि मृतक को आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया।
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अभियोजन का पक्ष

उत्तरदाताओं ने कहा कि:

  • आत्महत्या नोट में अभियुक्तों के नाम थे और उत्पीड़न के आरोप स्पष्ट थे।
  • मामला परीक्षण योग्य है और इस स्तर पर केस रद्द नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्ष

न्यायालय ने आत्महत्या नोट का विश्लेषण करते हुए कहा:

“नोट में जिन चार लोगों को जिम्मेदार ठहराया गया है, उनके साथ आत्महत्या की घटना से पूर्व कोई प्रत्यक्ष संपर्क नहीं था। 10 नवम्बर की घटना के बाद से आत्महत्या (9 दिसम्बर) तक किसी प्रकार का संपर्क नहीं हुआ।”

न्यायालय ने कहा:

“मात्र गाली-गलौज या मानहानि की बात, वह भी एक महीने पहले की, आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकती।”

न्यायालय ने M. Arjunan v. State तथा Ude Singh v. State of Haryana मामलों का हवाला देते हुए दोहराया:

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“धारा 306 के अंतर्गत अभियोग तभी स्थापित हो सकता है जब आरोपी ने आत्महत्या के लिए उकसाने का इरादा दिखाया हो।”

अंतिम निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि:

“जब आत्महत्या के लिए उकसावे का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, तो अभियुक्तों के विरुद्ध आपराधिक प्रक्रिया चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

इस आधार पर:

  • मद्रास हाईकोर्ट का आदेश दिनांक 13 अप्रैल 2018 रद्द कर दिया गया।
  • सहायक सत्र न्यायाधीश, कांचीपुरम के समक्ष लंबित सत्र वाद संख्या 9/2016 भी निरस्त कर दी गई।

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