मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने रविवार को युवा वकीलों से कहा कि कानून को त्वरित सफलता का रास्ता नहीं, बल्कि धैर्य, अनुशासन और सत्यनिष्ठा के साथ सीखी जाने वाली एक कला के रूप में देखा जाना चाहिए। डॉ. भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, सोनीपत के प्रथम दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कानून अंततः उन्हीं को पुरस्कृत करता है जो उसकी गति और मर्यादाओं का सम्मान करते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कानून “कोई स्प्रिंट नहीं, बल्कि एक लंबी और सोच-समझकर तय की जाने वाली यात्रा है।” उन्होंने कहा कि आज युवा वकील ऐसे समय में पेशे में प्रवेश कर रहे हैं, जब उसकी प्रासंगिकता पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन तकनीकी बदलाव, आर्थिक जटिलता, अधिकारों के विस्तार और बढ़ती सार्वजनिक निगरानी के कारण अपेक्षाएँ कहीं अधिक कठोर हो गई हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि आज वकीलों से केवल प्रभावी तर्क रखने की ही नहीं, बल्कि जिम्मेदारी के साथ सलाह देने की भी अपेक्षा की जाती है। उन्होंने युवा वकीलों की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि पेशा उनसे केवल बदलाव के अनुरूप ढलने की नहीं, बल्कि मानकों को ऊंचा उठाने की उम्मीद करता है।
उन्होंने कहा, “पेशा अपने सबसे युवा सदस्यों से यह अपेक्षा करता है कि वे जहां विश्वास कमजोर पड़ा है, वहां उसे बहाल करें, सिद्धांतों से समझौता किए बिना नवाचार लाएं और दक्षता के साथ-साथ विवेक के साथ कानून का अभ्यास करें।” उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अपेक्षा बोझ नहीं, बल्कि भरोसे की अभिव्यक्ति है।
प्रारंभिक पेशेवर जीवन की वास्तविकताओं पर बात करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कानून जैसे पेशे में, जहां धैर्य और संतुलन को महत्व दिया जाता है, युवा वकीलों को अक्सर बहस करने से अधिक समय देखने में, और कमाने से अधिक समय सीखने में लगाना पड़ता है। यह केवल क्षमता की नहीं, बल्कि उस मानसिक दृढ़ता की भी परीक्षा होती है, जो तब आवश्यक होती है जब प्रगति तुरंत दिखाई नहीं देती।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने छात्रों को याद दिलाया कि अनेक उत्कृष्ट वकील और न्यायाधीश अपने करियर की शुरुआत किसी विशेष लाभ या निश्चितता के साथ नहीं करते थे। उनका विकास धीरे-धीरे हुआ, जो अक्सर नजरों से ओझल रहा।
उन्होंने कहा, “उन्हें अलग करने वाली चीज़ प्रारंभिक प्रशंसा नहीं, बल्कि निरंतरता थी — समय पर उपस्थित रहने का अनुशासन, पूरी तैयारी करने की आदत और धीरे-धीरे सुधार करते रहने की प्रतिबद्धता, तब भी जब कोई देख नहीं रहा होता।”
उन्होंने सलाह दी कि यदि युवा वकील इन वर्षों को आक्रोश या अधैर्य की जगह धैर्य और दृष्टिकोण विकसित करने का अवसर बनाएं, तो यह उन्हें आने वाले दशकों तक मजबूत बनाएगा। उन्होंने दोहराया कि कानून समय के साथ उन लोगों को पहचानता है, जो उसकी प्रक्रिया का सम्मान करते हैं।
ईमानदारी को सबसे महत्वपूर्ण गुण बताते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यही वह आधार है, जो भविष्य की अनिश्चितताओं में वकीलों को संभाले रखता है। उन्होंने कहा कि ईमानदारी खुद को प्रचारित नहीं करती, बल्कि तथ्यों को प्रस्तुत करने के तरीके, मुवक्किल को दी गई सलाह, विरोधी के प्रति व्यवहार और कठिन परिस्थितियों में लिए गए निर्णयों से शांत रूप से प्रकट होती है।
उन्होंने कहा, “मैंने वर्षों में असाधारण बुद्धि वाले वकीलों को देखा है, जो विश्वास के टूटने पर लड़खड़ा गए, और ऐसे वकीलों को भी, जिन्होंने साधारण शुरुआत के बावजूद निरंतर प्रगति की, क्योंकि उनकी बात पर भरोसा किया जाता था।” उन्होंने याद दिलाया कि अदालतों, संस्थानों और सहकर्मियों की नजर ईमानदारी, निष्पक्षता और चरित्र पर होती है, और अदालत में प्रवेश से पहले ही वकील की प्रतिष्ठा उसके आगे पहुंच जाती है।
मुख्य न्यायाधीश ने छात्रों से कहा कि बीते वर्षों में उन्होंने विधि विश्वविद्यालय में कानूनों, निर्णयों, सिद्धांतों और तर्कों का अध्ययन किया है, लेकिन विश्वविद्यालय से निकलने के बाद भी कानून उन्हें सिखाता रहेगा — अब और अधिक कठोर तरीकों से, जैसे मुवक्किलों, संस्थानों, टकरावों और उनके परिणामों के माध्यम से।
सफलता के अर्थ पर बात करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकता है। किसी के लिए यह पेशेवर प्रतिष्ठा होगी, किसी के लिए आर्थिक स्थिरता, और किसी के लिए सार्वजनिक सेवा। उन्होंने कहा कि इनमें से कोई भी लक्ष्य अनुचित नहीं है, लेकिन युवा वकीलों को सफलता की एक गहरी परिभाषा भी तलाशनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “ईमानदारी से अपना काम करने की संतुष्टि, निष्पक्षता में योगदान देने का भाव, और उस समय भी सिद्धांतों के साथ खड़े रहने का साहस, जब यह असुविधाजनक हो — यही वास्तविक सफलता है।”

