मोटर दुर्घटना दावा | सुप्रीम कोर्ट ने पुराने मामलों में 10% बढ़ोतरी लागू करने के मुद्दे को बड़ी बेंच के पास भेजा

सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावों में मुआवजे की गणना से जुड़े एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल को बड़ी बेंच (Larger Bench) के पास भेज दिया है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस बात पर संदेह व्यक्त किया है कि क्या नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी (2017) के संविधान पीठ के फैसले में निर्धारित ‘पारंपरिक मदों’ (conventional heads) में हर तीन साल पर 10% की बढ़ोतरी का नियम 2017 से पहले हुई दुर्घटनाओं पर भी लागू होगा।

मामले को बड़ी बेंच को भेजते हुए, कोर्ट ने अंतरिम राहत के रूप में याचिकाकर्ताओं के मुआवजे को बढ़ाकर 1.50 लाख रुपये कर दिया और ब्याज दर भी बढ़ाई।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 1998 में हुई एक मोटर वाहन दुर्घटना से संबंधित है। मृतक की पत्नी और दो बच्चों (याचिकाकर्ताओं) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मुआवजे में बढ़ोतरी की मांग की थी। विशेष रूप से, उन्होंने “पारंपरिक मदों” (संपदा की हानि, कंसोर्टियम की हानि और अंतिम संस्कार व्यय) के तहत दी जाने वाली राशि में वृद्धि की मांग की थी।

याचिकाकर्ताओं ने प्रणय सेठी मामले में संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया, जिसमें इन मदों के लिए राशि तय की गई थी और महंगाई व मूल्य वृद्धि को देखते हुए हर तीन साल में 10% बढ़ोतरी का निर्देश दिया गया था। उन्होंने रोजालिनी नायक और अन्य बनाम अजीत साहू और अन्य के फैसले का भी सहारा लिया।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि तीनों दावेदार (विधवा और दो बच्चे) ‘कंसोर्टियम की हानि’ (Loss of Consortium) के हकदार हैं। मैग्मा जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम नानू राम और अन्य का हवाला देते हुए कहा गया कि बच्चे “फिल्यल कंसोर्टियम” (filial consortium) के हकदार हैं। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि प्रणय सेठी के अनुसार, पारंपरिक मदों में हर तीन साल में 10% की वृद्धि की जानी चाहिए।

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प्रतिवादी (नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) ने इसका विरोध करते हुए कहा कि प्रणय सेठी में निर्धारित 10% बढ़ोतरी का सिद्धांत केवल भविष्य के मामलों यानी 2017 के फैसले के बाद हुई दुर्घटनाओं पर लागू होना चाहिए। वकील ने तर्क दिया कि यद्यपि 15,000 रुपये, 40,000 रुपये और 15,000 रुपये की मानकीकृत राशि इस मामले में लागू की जा सकती है, लेकिन 1998 की दुर्घटना के लिए आवधिक 10% की वृद्धि लागू नहीं की जा सकती।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

पीठ ने प्रणय सेठी के उस विशिष्ट पैराग्राफ की जांच की, जहां संविधान पीठ ने कहा था:

“हमें लगता है कि यह उचित होगा कि हमारे द्वारा निर्धारित राशि को हर तीन साल में प्रतिशत के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए और यह बढ़ोतरी तीन साल की अवधि में 10% की दर से होनी चाहिए।”

कोर्ट ने पाया कि इस बढ़ोतरी के पीछे का तर्क मूल्य सूचकांक, बैंक ब्याज में गिरावट और 2017 के बाद दरों में वृद्धि था। पीठ के लिए निर्णय लिखते हुए जस्टिस चंद्रन ने नोट किया कि दशकों पहले (जैसे 1998) हुई दुर्घटनाओं पर इस बढ़ोतरी को केवल इसलिए लागू करना क्योंकि दावा बाद में तय किया जा रहा है, विसंगति पैदा करेगा।

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कोर्ट ने टिप्पणी की:

“बढ़ोतरी इस बात पर निर्भर नहीं हो सकती कि ट्रिब्यूनल, हाईकोर्ट या इस कोर्ट द्वारा दावा याचिका का अंतिम निपटारा किस तारीख को किया जाता है… कई मामले, जिनमें दुर्घटना 1998 में हुई थी, उनका निपटारा 2017 से पहले हो चुका होगा, जिन्हें किसी भी स्थिति में संविधान पीठ द्वारा 2017 में कही गई बातों के आधार पर कोई बढ़ोतरी नहीं मिल सकती।”

पीठ ने विचार व्यक्त किया कि प्रणय सेठी के फैसले का उद्देश्य 2017 के बाद हुई दुर्घटनाओं के लिए पहली 10% बढ़ोतरी को 2020 (2017 के फैसले के तीन साल बाद) में लागू करना था। जजों ने इस व्याख्या को स्वीकार करने में कठिनाई जताई कि 2010 की दुर्घटना के लिए 2020 में निपटारा होने पर 10% की वृद्धि मिले और यदि मामला 2023 में निपटाया जाए तो और 10% की वृद्धि मिले।

“वर्ष 1998 में हुई दुर्घटना के संबंध में कोई बढ़ोतरी नहीं की जा सकती, क्योंकि संपदा की हानि और कंसोर्टियम के साथ-साथ अंतिम संस्कार के लिए किए गए खर्च का मुआवजा उस तारीख के अनुसार है…”

निर्णय: रेफ़रल और अंतरिम राहत

पीठ ने 10% बढ़ोतरी को पूर्वव्यापी प्रभाव (retrospective effect) से लागू करने की व्याख्या से असहमति जताते हुए कहा:

“इसलिए हम सम्मानपूर्वक, प्रणय सेठी के आधार पर पारंपरिक मदों में की गई बढ़ोतरी के संबंध में पूर्वोक्त निर्णय में की गई बढ़ोतरी पर संदेह व्यक्त करते हैं। समान पीठ (Co-ordinate Bench) होने के नाते, हम मामले को केवल बड़ी बेंच को संदर्भित करेंगे, जो हम कर रहे हैं।”

रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि मामले को उचित आदेशों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के समक्ष रखा जाए।

मुआवजे में अंतरिम वृद्धि: मामले को बड़ी बेंच को भेजने के बावजूद, कोर्ट ने अंतरिम राहत के रूप में प्रणय सेठी में तय मानकीकृत आंकड़ों के आधार पर (बिना प्रतिशत वृद्धि के) मुआवजे की गणना की:

  • संपदा की हानि (Loss of Estate): 15,000 रुपये
  • अंतिम संस्कार व्यय (Funeral Expenses): 15,000 रुपये
  • कंसोर्टियम की हानि (Loss of Consortium): 40,000 रुपये x 3 (पत्नी और दो बच्चे) = 1,20,000 रुपये
  • पारंपरिक मदों के तहत कुल राशि: 1,50,000 रुपये
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कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 70,000 रुपये की राशि को बढ़ाकर 1,50,000 रुपये कर दिया। इसके अतिरिक्त, मामले के लंबे समय तक लंबित रहने को देखते हुए, आवेदन की तारीख से ब्याज दर को बढ़ाकर 8% कर दिया गया।

बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया है कि वह दो महीने के भीतर बढ़ी हुई राशि का भुगतान या जमा करे।

केस डिटेल्स:

  • केस टाइटल: हसीना यास्मीन और अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य
  • केस नंबर: स्पेशल लीव पिटीशन (सी) नंबर 27285 ऑफ 2025
  • कोरम: जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन
  • साइटेशन: 2025 INSC 1501

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