दिल्ली के जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग-VIII (मध्य) ने चिकित्सकीय लापरवाही के एक गंभीर मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पीड़ित महिला को 20 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। आयोग ने पाया कि इलाज कर रहे डॉक्टर की लापरवाही के कारण महिला की फैलोपियन ट्यूब को हटाना पड़ा, जिससे वह स्थायी रूप से मां बनने की क्षमता खो बैठी। आयोग ने नर्सिंग होम को डॉक्टर के कृत्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया है।
आयोग के अध्यक्ष श्री दिव्य ज्योति जयपुरियार और सदस्य डॉ. रश्मि बंसल की पीठ ने समरीन द्वारा दायर शिकायत को स्वीकार करते हुए यह निर्णय लिया। पीठ ने नर्सिंग होम (विपक्षी संख्या 2) को निर्देश दिया कि वह शिकायतकर्ता को मुआवजे की राशि का भुगतान करे, साथ ही अस्पताल को यह स्वतंत्रता दी कि वह इस राशि को दोषी डॉक्टर से वसूल सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
शिकायतकर्ता समरीन के अनुसार, जुलाई 2020 में घर पर किए गए प्रेगनेंसी टेस्ट (UPT) का परिणाम पॉजिटिव आने के बाद वह 24 जुलाई 2020 को नर्सिंग होम गई थीं। वहां डॉ. कुलजीत कौर गिल (विपक्षी संख्या 1) ने बिना किसी स्वतंत्र जांच या चेक-अप के केवल घरेलू टेस्ट के आधार पर गर्भावस्था की पुष्टि कर दी और दवाइयां लिख दीं।
शिकायतकर्ता का आरोप था कि उन्हें पेट में दर्द और लगातार ब्लीडिंग की शिकायत थी, जिसके लिए वह 11 अगस्त, 15 अगस्त, 26 अगस्त और 2 सितंबर 2020 को बार-बार डॉक्टर के पास गईं। इसके बावजूद, डॉक्टर ने कोई जांच (Test) नहीं करवाई और न ही कोई निदान (Diagnosis) किया। डॉक्टर ने केवल एसिडिटी की दवा दी और आश्वासन दिया कि स्थिति सामान्य है।
7 सितंबर 2020 को दर्द असहनीय होने पर शिकायतकर्ता ने दूसरे डॉक्टर से संपर्क किया, जिन्होंने तत्काल टेस्ट की सलाह दी। रिपोर्ट में गर्भ में मृत भ्रूण का पता चला। कस्तूरबा अस्पताल में आपातकालीन सर्जरी की गई, जहां यह पाया गया कि ‘रप्चर्ड एक्टोपिक प्रेग्नेंसी’ (Ruptured Ectopic Pregnancy) के कारण उनकी जान को खतरा था। जान बचाने के लिए उनकी फैलोपियन ट्यूब को हटाना पड़ा, जिससे वह भविष्य में कभी गर्भधारण नहीं कर सकेंगी।
पक्षों की दलीलें
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि डॉ. कुलजीत कौर गिल ने “चिकित्सीय मानदंडों की घोर अवहेलना” की और बुनियादी जांच करने में विफल रहीं। उन्होंने दिल्ली मेडिकल काउंसिल (DMC) के निष्कर्षों का हवाला दिया, जिसमें यह नोट किया गया था कि डॉक्टर ने उचित जांच के बिना दवाएं दी थीं। इसके अलावा, डॉक्टर केवल एमबीबीएस (MBBS) डिग्री धारक थीं, फिर भी वह अपने नाम के साथ ‘एम.एस./एम.डी.’ (M.S./M.D.) का प्रयोग कर रही थीं, जिसके लिए वह अधिकृत नहीं थीं।
वहीं, डॉ. कुलजीत कौर गिल ने अपने बचाव में कहा कि वह नर्सिंग होम में केवल एक विजिटिंग डॉक्टर थीं, इसलिए किसी भी कृत्य या चूक के लिए नर्सिंग होम (विपक्षी संख्या 2) को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि मरीज प्रसव पूर्व उपचार के लिए नहीं, बल्कि गैस्ट्रिक समस्याओं के लिए आई थी।
आयोग का विश्लेषण और टिप्पणी
आयोग ने डॉक्टर के बचाव को खारिज कर दिया। ट्रीटमेंट शीट्स की जांच करने पर आयोग ने पाया कि डॉक्टर ने पहली विजिट पर “UPT पॉजिटिव” नोट किया था, लेकिन इसके बाद भी पुष्टि के लिए कोई अल्ट्रासाउंड या टेस्ट नहीं कराया। आयोग ने अपनी टिप्पणी में कहा:
“डॉक्टर ने न तो मरीज की शिकायतों को लिखा और न ही कोई निदान (Diagnosis) किया… बिना किसी जांच के दवाइयां दी गईं।”
आयोग ने नोट किया कि मरीज द्वारा चार बार दर्द और ब्लीडिंग की शिकायत करने के बावजूद, डॉक्टर ने 40 दिन बाद, यानी 2 सितंबर 2020 को अल्ट्रासाउंड लिखा। आयोग ने इसे “घोर लापरवाही” (Sheer Negligence) करार दिया और कहा कि एक हाई-रिस्क मरीज के मामले में डॉक्टर का आचरण कर्तव्य के उल्लंघन को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट के डॉ. लक्ष्मण बालकृष्ण जोशी बनाम डॉ. त्रिंबक बापू गोडबोले मामले का हवाला देते हुए, आयोग ने माना कि डॉक्टर ने जांच और उपचार में सावधानी बरतने के अपने कर्तव्य का उल्लंघन किया है। आयोग ने बोलम टेस्ट (Bolam Test) का भी उल्लेख किया और कहा कि कोई भी जिम्मेदार चिकित्सा पेशेवर गर्भावस्था के संदिग्ध मामले में 40 दिनों तक अल्ट्रासाउंड न कराने को स्वीकार्य नहीं मानेगा।
डॉक्टर की योग्यता के मुद्दे पर, आयोग ने पूनम वर्मा बनाम अश्विन पटेल मामले का हवाला देते हुए कहा कि बिना योग्यता के विशेषज्ञ के रूप में कार्य करना “स्वयं में लापरवाही” (Negligence per se) है। डॉक्टर केवल एमबीबीएस थीं, लेकिन खुद को स्त्री रोग विशेषज्ञ (Gynaecologist) के रूप में पेश कर रही थीं।
अस्पताल की जिम्मेदारी पर, आयोग ने सविता गर्ग बनाम नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के फैसले पर भरोसा जताते हुए स्पष्ट किया कि अस्पताल अपने डॉक्टरों के लापरवाहीपूर्ण कृत्यों के लिए ‘प्रतिनिधि रूप से उत्तरदायी’ (Vicariously Liable) है।
निर्णय
आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि डॉ. कुलजीत कौर गिल की लापरवाही के कारण ही शिकायतकर्ता को मातृत्व के सुख से स्थायी रूप से वंचित होना पड़ा है।
“यह आयोग मानता है कि 20,00,000/- (बीस लाख रुपये) की राशि उचित, अनुपातिक और कानूनी रूप से न्यायसंगत है, जो शिकायतकर्ता द्वारा उठाई गई चोट की प्रकृति और अपरिवर्तनीय परिणामों के अनुरूप है।”
आयोग ने नर्सिंग होम को आदेश दिया कि वह छह सप्ताह के भीतर शिकायतकर्ता को 20 लाख रुपये का भुगतान करे। यदि समय पर भुगतान नहीं किया जाता है, तो 9% प्रति वर्ष की दर से ब्याज देना होगा।

