सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल आपराधिक कार्यवाही लंबित होने के आधार पर किसी व्यक्ति को 10 साल की अवधि के लिए सामान्य पासपोर्ट देने से इनकार नहीं किया जा सकता, यदि संबंधित आपराधिक अदालतों ने इसके लिए ‘नो ऑब्जेक्शन’ (अनापत्ति) दे दी हो।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अपीलकर्ता को पासपोर्ट नवीनीकरण (renewal) की राहत देने से इनकार कर दिया गया था। पीठ ने केंद्र सरकार और क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय, कोलकाता को निर्देश दिया है कि वे अपीलकर्ता को सामान्य प्रक्रिया के तहत 10 साल के लिए पासपोर्ट जारी करें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6(2)(f) के तहत पासपोर्ट जारी करने पर रोक निरपेक्ष (absolute) नहीं है, खासकर तब जब अदालतों ने नवीनीकरण की अनुमति दे दी हो और विदेश यात्रा पर उनका नियंत्रण बना हुआ हो।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता, महेश कुमार अग्रवाल, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जांच किए जा रहे एक मामले में आरोपी हैं। यह मामला झारखंड में जबरन वसूली और एक प्रतिबंधित संगठन को फंडिंग करने के आरोपों से जुड़ा है और एनआईए कोर्ट, रांची में लंबित है। इसके अलावा, दिल्ली में एक सीबीआई कोल ब्लॉक मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया था और चार साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने मई 2022 में उनकी सजा को निलंबित कर दिया था, लेकिन शर्त रखी थी कि वे कोर्ट की अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ेंगे।
अपीलकर्ता का पासपोर्ट 28 अगस्त 2023 को समाप्त हो गया था। उन्होंने एनआईए कोर्ट, रांची से संपर्क किया, जिसने 10 जुलाई 2023 को पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए ‘नो ऑब्जेक्शन’ दिया, लेकिन शर्त लगाई कि नवीनीकरण के तुरंत बाद पासपोर्ट कोर्ट में जमा करना होगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी 4 सितंबर 2023 को 10 साल के लिए पासपोर्ट नवीनीकरण पर ‘नो ऑब्जेक्शन’ दे दिया।
इन आदेशों के बावजूद, क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय, कोलकाता ने नियमित 10 साल का पासपोर्ट जारी करने से इनकार कर दिया। अधिकारियों ने पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6(2)(f) और 25 अगस्त 1993 की अधिसूचना जी.एस.आर. 570(E) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि जब तक आपराधिक कोर्ट विदेश यात्रा के लिए विशिष्ट अवधि की अनुमति नहीं देता, तब तक यह छूट लागू नहीं होती। कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ और खंडपीठ ने भी पासपोर्ट प्राधिकरण के निर्णय को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी थी।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने पासपोर्ट प्राधिकरण और कलकत्ता हाईकोर्ट के संकीर्ण दृष्टिकोण को खारिज कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए पीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“हमारी संवैधानिक व्यवस्था में स्वतंत्रता (Liberty) राज्य द्वारा दिया गया कोई उपहार नहीं है, बल्कि यह उसका प्रथम दायित्व है। कानून के अधीन रहते हुए, नागरिक की कहीं भी आने-जाने, यात्रा करने और आजीविका और अवसर तलाशने की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी का एक अनिवार्य हिस्सा है।”
धारा 6(2)(f) और अधिसूचना पर स्पष्टीकरण
कोर्ट ने कहा कि 1993 की अधिसूचना जी.एस.आर. 570(E) धारा 6(2)(f) के तहत लगी रोक से छूट प्रदान करती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस अधिसूचना का मतलब यह नहीं है कि आपराधिक कोर्ट को हर मामले में विशिष्ट तारीखों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति देनी ही होगी। यदि कोर्ट ने पासपोर्ट नवीनीकरण की अनुमति दी है और यात्रा पर अपना नियंत्रण बरकरार रखा है, तो वैधानिक आवश्यकता पूरी हो जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां जमानत की शर्तों में पहले से ही यह शामिल है कि अपीलकर्ता कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ेगा, वहां ‘भारत से प्रस्थान’ के लिए न्यायिक अनुमति की आवश्यकता पहले से ही छूट की शर्तों में निहित है।
पासपोर्ट प्राधिकरण की भूमिका पर
कोर्ट ने पासपोर्ट अधिकारियों के रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि वे केवल इस आशंका के आधार पर नवीनीकरण से इनकार नहीं कर सकते कि अपीलकर्ता पासपोर्ट का दुरुपयोग कर सकता है। कोर्ट ने कहा:
“इस काल्पनिक आशंका पर नवीनीकरण से इनकार करना कि अपीलकर्ता पासपोर्ट का दुरुपयोग कर सकता है, वास्तव में आपराधिक अदालतों के जोखिम मूल्यांकन पर सवाल उठाने जैसा है और पासपोर्ट प्राधिकरण द्वारा एक ऐसी पर्यवेक्षी भूमिका निभाना है जिसकी कानून परिकल्पना नहीं करता।”
दोषसिद्धि (Conviction) के मुद्दे पर
सीबीआई मामले में दोषसिद्धि के मुद्दे पर, कोर्ट ने अपने पिछले फैसले (वंगाला कस्तूरी रंगाचारुलु बनाम सीबीआई, 2021) का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि दिल्ली हाईकोर्ट ने सजा को निलंबित कर दिया है और 10 साल के नवीनीकरण के लिए अनापत्ति दे दी है, इसलिए दोषसिद्धि पासपोर्ट जारी करने में बाधा नहीं बन सकती।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। कोर्ट ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे आदेश की प्रति प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर अपीलकर्ता को जारी होने की तारीख से 10 साल की सामान्य अवधि के लिए पासपोर्ट फिर से जारी करें।
हालांकि, कोर्ट ने पासपोर्ट के उपयोग पर निम्नलिखित शर्तें लगाईं:
- जारी किया गया पासपोर्ट एनआईए कोर्ट, रांची और दिल्ली हाईकोर्ट के सभी मौजूदा और भविष्य के आदेशों के अधीन रहेगा।
- अपीलकर्ता संबंधित कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा।
- निर्देश दिए जाने पर अपीलकर्ता को पासपोर्ट कोर्ट में जमा करना होगा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में कोई सक्षम कोर्ट आदेश देता है या कोई नया घटनाक्रम होता है, तो पासपोर्ट प्राधिकरण के पास धारा 10 के तहत पासपोर्ट को जब्त या रद्द करने की शक्ति बनी रहेगी।
केस विवरण
- केस का नाम: महेश कुमार अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या ……. / 2025 (एस.एल.पी. (सिविल) संख्या 17769 / 2025 से उद्भूत)
- साइटेशन: 2025 INSC 1476
- कोरम: जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

