“मजदूर का पसीना सूखने से पहले मजदूरी मिले”; मद्रास हाईकोर्ट ने 18 साल से लंबित वकील की फीस चुकाने का दिया निर्देश

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने मदुरै नगर निगम को निर्देश दिया है कि वह अपने पूर्व स्थायी वकील (Standing Counsel) पी. थिरुमलाई की प्रोफेशनल फीस का भुगतान करे, जो पिछले एक दशक से अधिक समय से लंबित थी।

न्यायालय ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत को दोहराते हुए कहा, “मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए।” कोर्ट ने इस सिद्धांत को श्रम न्यायशास्त्र (Labour Jurisprudence) और वर्तमान मामले दोनों के लिए प्रासंगिक माना।

संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर इस रिट याचिका में मदुरै नगर निगम की 14 जुलाई 2008 की कार्यवाही को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने 13,05,770 रुपये की बकाया राशि का 18% ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की थी।

जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन की पीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Services Authority) को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को बिलों को प्रोसेस करने के लिए आवश्यक निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने में सहायता करें।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता पी. थिरुमलाई ने 1992 से 2006 तक, यानी 14 वर्षों से अधिक समय तक मदुरै नगर निगम के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य किया और मदुरै जिला न्यायालयों में निकाय का प्रतिनिधित्व किया।

विवाद उनकी फीस के बिलों का भुगतान न होने को लेकर उत्पन्न हुआ। याचिकाकर्ता ने इससे पहले 2006 में भी हाईकोर्ट (W.P.(MD)No.9282 of 2006) का दरवाजा खटखटाया था, जिसका निस्तारण 14 नवंबर 2006 को निगम को उनके अभ्यावेदन पर विचार करने के निर्देश के साथ किया गया था। इसके बाद ही विवादित आदेश पारित किया गया था।

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याचिकाकर्ता के अनुसार, कुल बकाया राशि 14,07,807 रुपये थी, जिसमें से केवल 1,02,037 रुपये का भुगतान किया गया, जिससे 13,05,770 रुपये की राशि शेष रह गई।

पक्षों की दलीलें

प्रतिवादी निगम की ओर से पेश स्थायी वकील श्री एस. विनायक ने दलील दी कि स्थानीय निकाय दावे का सम्मान करने के लिए तैयार है, बशर्ते बिल सही क्रम में हों। निगम का कहना था कि याचिकाकर्ता ने फीस बिलों के साथ निर्णयों और डिक्री की प्रतियां संलग्न नहीं की थीं।

अपने जवाबी हलफनामे में, निगम ने आरोप लगाया कि “समय पर निर्णय की प्रतियां जमा न करने के कारण, विशेष रूप से सार्वजनिक नीलामी के मामलों में, निगम को भारी नुकसान उठाना पड़ा और यही कारण था कि रिट याचिकाकर्ता को वकीलों के पैनल से हटा दिया गया था।”

याचिकाकर्ता के वकील श्री बी. विजय कार्तिकेयन ने 818 मामलों की सूची प्रस्तुत की, जिन्हें याचिकाकर्ता ने संभाला था। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता वर्तमान में “अत्यधिक आर्थिक तंगी” (penurious circumstances) में हैं और निगम की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सभी मामलों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने के लिए एडवोकेट क्लर्क द्वारा मांगी गई लागत (750 रुपये प्रति प्रति) वहन करने में असमर्थ हैं।

कोर्ट की टिप्पणियां और विश्लेषण

जस्टिस स्वामीनाथन ने इस आधार पर कार्यवाही आगे बढ़ाई कि याचिकाकर्ता का आर्थिक संघर्ष तथ्यात्मक रूप से सही है।

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कोर्ट ने सरकारी निकायों द्वारा कानूनी शुल्क के भुगतान में असमानता पर गंभीर टिप्पणी की। जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा:

“मैं सरकारी और अर्ध-सरकारी संस्थानों, जिसमें स्थानीय निकाय भी शामिल हैं, द्वारा कुछ विधि अधिकारियों और वरिष्ठ वकीलों को दी जाने वाली अत्यधिक राशि को देखकर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकता।”

एक विशिष्ट उदाहरण का हवाला देते हुए, कोर्ट ने नोट किया:

“मदुरै कामराजार विश्वविद्यालय वित्तीय संकट में है… मुझे बताया गया है कि विश्वविद्यालय द्वारा एक विशेष वरिष्ठ वकील को प्रति उपस्थिति 4,00,000 रुपये का भुगतान किया गया था। वह विश्वविद्यालय जो यह दलील दे रहा है कि उसकी वित्तीय स्थिति ऐसी है कि वह अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बकाया का भुगतान करने में असमर्थ है, उसे अपने वकील को अत्यधिक फीस देने में कोई कठिनाई नहीं है।”

कोर्ट ने विधि अधिकारियों की बड़ी संख्या में नियुक्ति की प्रथा की भी आलोचना की:

“विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को खुश करने के लिए, सत्तारूढ़ सरकारें अनावश्यक रूप से बड़ी संख्या में विधि अधिकारियों की नियुक्ति करती हैं… जब बहुत अधिक नियुक्तियां होती हैं, तो अनिवार्य रूप से उनमें से प्रत्येक को काम देना होता है। इससे उन मामलों का आवंटन होता है जिनमें उनकी सेवाओं की आवश्यकता भी नहीं होती है।”

निर्णय

गतिरोध को सुलझाने के लिए, हाईकोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. याचिकाकर्ता को मदुरै जिला न्यायालय के विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष/सचिव को 818 मामलों की सूची सौंपने की अनुमति दी गई है।
  2. याचिकाकर्ता की उपस्थिति के सत्यापन के बाद, विधिक सेवा प्राधिकरण दो महीने के भीतर प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने की व्यवस्था करेगा।
  3. विधिक सेवा प्राधिकरण लागत के लिए एक इनवॉइस (चालान) तैयार करेगा, जिसका भुगतान मदुरै निगम को सीधे प्राधिकरण को करना होगा।
  4. याचिकाकर्ता प्राप्त प्रतियों को संलग्न करते हुए फीस के बिल जमा करेंगे।
  5. इसके बाद निगम को दो महीने के भीतर बिलों का निपटान करना होगा।
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कोर्ट ने ब्याज के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, यह तर्क देते हुए कि याचिकाकर्ता ने 18 साल के अंतराल के बाद आदेश को चुनौती दी और शुरुआती बिल क्रम में नहीं थे।

केस विवरण

  • केस टाइटल: पी. थिरुमलाई बनाम मदुरै सिटी म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन
  • केस नंबर: W.P(MD)No.26707 of 2022
  • कोरम: जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन
  • याचिकाकर्ता के वकील: श्री बी. विजय कार्तिकेयन
  • प्रतिवादी के वकील: श्री एस. विनायक

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