इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िताओं के गर्भपात से जुड़े मामलों में प्रक्रियात्मक देरी को गंभीर मानते हुए स्वतः संज्ञान लेकर जनहित याचिका दर्ज की है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी देरी समय पर चिकित्सा सहायता में बड़ी बाधा बनती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िताओं के गर्भसमापन मामलों में विभिन्न स्तरों पर होने वाली देरी को लेकर स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दर्ज की है। कोर्ट का कहना है कि प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक अड़चनें अक्सर समयबद्ध चिकित्सा हस्तक्षेप में बाधा डालती हैं, जिससे पीड़िताओं की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।
यह मामला “In Re Framing Of Guidelines For Sensitizing All Concerned In Cases Of Termination Of Pregnancies” शीर्षक से दर्ज किया गया है। इस संबंध में आदेश सितंबर माह में न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अरुण कुमार की खंडपीठ द्वारा पारित किया गया था।
खंडपीठ ने यह रेखांकित किया कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के मामलों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में संवेदनशीलता की कमी और अनावश्यक विलंब के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ऐसे मामलों में समय पर निर्णय और समन्वित कार्रवाई बेहद जरूरी है।
कोर्ट की सहायता के लिए अधिवक्ता महिमा मौर्य को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया है। 27 नवंबर को एमिकस क्यूरी महिमा मौर्य और राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता राजीव गुप्ता ने अदालत के समक्ष अपने-अपने सुझाव रखे। इन सुझावों का उद्देश्य संबंधित अधिकारियों को संवेदनशील बनाना और पूरी प्रक्रिया को सरल व प्रभावी बनाना है।
अब हाईकोर्ट इन प्रस्तावों पर विचार करते हुए ऐसे दिशा-निर्देश तय करने पर मंथन करेगा, जिससे गर्भपात से जुड़े मामलों में पीड़िताओं को समय पर और मानवीय तरीके से सहायता मिल सके। मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को निर्धारित की गई है।

