सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर, 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राजस्थान में शैक्षणिक सत्र 2016-17 के लिए बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (BDS) के उन छात्रों के प्रवेश को नियमित कर दिया है, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नीट (NEET) पर्सेंटाइल को अवैध रूप से कम करने के बाद प्रवेश दिया गया था।
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन छात्रों के करियर को बचाने के लिए यह कदम उठाया, जो अपनी डिग्री पूरी कर चुके हैं। हालांकि, कोर्ट ने इस अवैधता के लिए जिम्मेदार निजी डेंटल कॉलेजों और राज्य सरकार के प्रति कड़ा रुख अपनाया है। पीठ ने प्रत्येक अपीलकर्ता कॉलेज पर 10 करोड़ रुपये और राजस्थान राज्य पर 10 लाख रुपये का भारी जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस राशि का उपयोग वृद्धाश्रमों और बाल देखभाल संस्थानों जैसे सामाजिक कल्याण कार्यों के लिए किया जाएगा।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला शैक्षणिक सत्र 2016-17 में राजस्थान में बीडीएस (BDS) प्रवेशों की वैधता से जुड़ा था। उस समय, राज्य सरकार ने नीट (NEET) के लिए न्यूनतम योग्यता पर्सेंटाइल को पहले 10 पर्सेंटाइल और बाद में अतिरिक्त 5 पर्सेंटाइल कम कर दिया था। इसके अलावा, निजी कॉलेजों ने अपनी सीटें भरने के लिए इस 15 पर्सेंटाइल की छूट से भी आगे जाकर उन उम्मीदवारों को प्रवेश दे दिया, जिनके अंक शून्य या नकारात्मक (negative) थे।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि योग्यता अंकों को कम करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है, जिसे वह डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI) के परामर्श से प्रयोग कर सकती है। राज्य सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। हालांकि, चूंकि मामला लंबे समय से लंबित था और छात्र अपना कोर्स पूरा कर चुके थे, कोर्ट ने मानवीय आधार पर उनके प्रवेश को नियमित कर दिया, लेकिन इसके लिए एक अनिवार्य शर्त भी रखी।
छात्रों को करनी होगी 2 साल की समाज सेवा
कोर्ट ने डिग्री प्राप्त कर चुके छात्रों के प्रवेश को नियमित तो कर दिया, लेकिन यह शर्त लगाई कि उन्हें 2 साल तक अनिवार्य रूप से प्रो-बोनो (निःशुल्क) सेवा देनी होगी। प्रत्येक लाभार्थी छात्र को आठ सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर करना होगा, जिसमें यह वचन दिया जाएगा कि वे प्राकृतिक आपदाओं, स्वास्थ्य आपात स्थितियों या महामारियों के दौरान राजस्थान राज्य को बिना किसी पारिश्रमिक के अपनी सेवाएं देंगे।
राज्य और कॉलेजों की मनमानी पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
इस मामले की पृष्ठभूमि यह थी कि 2016-17 में बीडीएस सीटों के खाली रह जाने के कारण, निजी कॉलेजों के फेडरेशन ने केंद्र सरकार से पर्सेंटाइल कम करने का अनुरोध किया था। केंद्र ने यह आवेदन राज्य सरकार को भेजते हुए “आवश्यक कार्रवाई, जैसा उचित हो” (necessary action as deemed fit) करने को कहा।
राज्य सरकार ने इसे शक्ति का हस्तांतरण (delegation of power) मान लिया और पर्सेंटाइल घटा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा:
“केंद्र सरकार के पत्र में लिखे शब्दों ‘आवश्यक कार्रवाई, जैसा उचित हो’ का अर्थ किसी भी परिस्थिति में यह नहीं निकाला जा सकता कि राज्य सरकार को पर्सेंटाइल कम करने का अधिकार दे दिया गया था। राज्य का कृत्य स्पष्ट रूप से अवैध था।”
निजी कॉलेजों के आचरण पर कोर्ट ने और भी तीखी टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि राजस्थान के निजी कॉलेज हर आखिरी सीट को भरने के लालच में राज्य द्वारा दी गई छूट से भी आगे निकल गए। कोर्ट ने कहा कि यह पूरी कवायद देश में प्रभावी दंत चिकित्सा शिक्षा के लिए निर्धारित नियमों और विनियमों का मजाक उड़ाने के समान थी।
पक्षकारों की दलीलें
- छात्र: छात्रों की ओर से तर्क दिया गया कि उन्होंने अपना कोर्स पूरा कर लिया है और अनंतिम डिग्री प्राप्त कर ली है। लगभग एक दशक बाद उनकी डिग्री रद्द करने से उनके जीवन और करियर को अपूरणीय क्षति होगी। उन्होंने अनुच्छेद 142 के तहत राहत की मांग की।
- डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI): डीसीआई ने तर्क दिया कि नियमों के तहत पर्सेंटाइल कम करने की शक्ति केवल केंद्र सरकार में निहित है। राज्य की कार्रवाई शुरू से ही शून्य (void ab initio) थी और ये प्रवेश “पिछले दरवाजे” (backdoor entries) से किए गए थे।
- कॉलेज: कॉलेजों ने तर्क दिया कि उन्होंने खाली सीटों को भरने के लिए राज्य के आदेशों पर भरोसा किया था और उन पर जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने भारी बुनियादी ढांचा लागत वहन की है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने सभी अपीलों का निपटारा करते हुए निम्नलिखित प्रमुख निर्देश जारी किए:
- प्रवेश नियमितीकरण: जिन छात्रों ने बीडीएस पाठ्यक्रम उत्तीर्ण कर लिया है और अपनी डिग्री प्राप्त कर ली है, उनके प्रवेश को नियमित माना जाएगा।
- अपूर्ण कोर्स वालों को राहत नहीं: जो छात्र 9 साल की अधिकतम अवधि (2007 के विनियमों के अनुसार) में बीडीएस कोर्स पास नहीं कर पाए हैं, उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाएगा और वे किसी राहत के हकदार नहीं होंगे।
- भारी जुर्माना: प्रत्येक अपीलकर्ता कॉलेज को आठ सप्ताह के भीतर राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Rajasthan State Legal Services Authority) के पास 10 करोड़ रुपये जमा कराने होंगे।
- राज्य पर जुर्माना: राजस्थान राज्य को 10 लाख रुपये जमा कराने होंगे।
- फंड का उपयोग: जमा राशि से प्राप्त ब्याज का उपयोग राजस्थान हाईकोर्ट के पांच जजों की समिति (जिसमें कम से कम एक महिला जज शामिल हों) की देखरेख में ‘वन स्टॉप सेंटर’, ‘नारी निकेतन’, वृद्धाश्रमों और बाल देखभाल संस्थानों के रखरखाव और उन्नयन के लिए किया जाएगा।
केस विवरण
- केस का नाम: सिद्धांत महाजन और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य (तथा अन्य संबद्ध याचिकाएं)
- केस संख्या: सिविल अपील संख्या ____ / 2025 (SLP (Civil) No(s). 14014-14019 of 2023 से उद्भूत)
- साइटेशन: 2025 INSC 1458
- कोरम: जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई

