सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11(6) के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय, कोर्ट को केवल इस बात से संतुष्ट होना आवश्यक है कि पक्षकारों के बीच ‘प्रथम दृष्टया’ (prima facie) मध्यस्थता समझौता मौजूद है। न्यायालय ने कहा कि जटिल प्रश्न, जैसे कि क्या किसी कंसोर्टियम (Consortium) का कोई अकेला सदस्य एकतरफा मध्यस्थता की मांग कर सकता है, का निर्णय मध्यस्थ न्यायाधिकरण (Arbitral Tribunal) द्वारा किया जाना चाहिए।
जस्टिस पमिडिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश पावर जनरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (APGENCO) और मेसर्स वीए टेक वाबैग लिमिटेड द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें मेसर्स टेकरो सिस्टम्स लिमिटेड द्वारा उठाए गए विवादों को हल करने के लिए एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण का गठन किया गया था।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह मामला APGENCO द्वारा रायलसीमा थर्मल पावर प्लांट में इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC) कार्यों के लिए जारी एक टेंडर से जुड़ा है। मेसर्स टेकरो सिस्टम्स लिमिटेड (प्रतिवादी संख्या 1), मेसर्स वीए टेक वाबैग लिमिटेड और मेसर्स गैमन इंडिया लिमिटेड के एक कंसोर्टियम को यह अनुबंध दिया गया था। शुरुआत में, टेकरो सिस्टम्स को लीड मेंबर (प्रमुख सदस्य) नामित किया गया था।
परियोजना के निष्पादन के दौरान, टेकरो सिस्टम्स को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा और बाद में उसे कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) में स्वीकार कर लिया गया, जिसके बाद परिसमापन (liquidation) के आदेश दिए गए। परियोजना में देरी के कारण, 2014 में कंसोर्टियम समझौते में संशोधन किया गया और टेकरो के स्थान पर वीए टेक वाबैग लिमिटेड को लीड मेंबर बना दिया गया।
लीड मेंबर न रहने के बावजूद, टेकरो सिस्टम्स ने 2017 में APGENCO को नोटिस जारी कर कथित उल्लंघन के लिए लगभग 1951.59 करोड़ रुपये का दावा किया। जब APGENCO ने मध्यस्थता के आह्वान का जवाब नहीं दिया, तो टेकरो ने हाईकोर्ट के समक्ष अधिनियम की धारा 11(6) के तहत आवेदन दायर किया। APGENCO ने यह तर्क देते हुए आवेदन का विरोध किया कि मध्यस्थता समझौता सामूहिक रूप से “कंसोर्टियम” के साथ था, और कोई भी व्यक्तिगत्त सदस्य एकतरफा इसे लागू नहीं कर सकता। हालांकि, तेलंगाना हाईकोर्ट ने आवेदन स्वीकार कर लिया और विवाद को मध्यस्थता के लिए भेज दिया, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ताओं (APGENCO और वीए टेक वाबैग लिमिटेड) ने तर्क दिया कि APGENCO और टेकरो सिस्टम्स के बीच उसकी व्यक्तिगत क्षमता में कोई मध्यस्थता समझौता मौजूद नहीं था। उन्होंने कहा:
- अनुबंध की सामान्य शर्तों (GCC) के तहत “ठेकेदार” (Contractor) शब्द का अर्थ सामूहिक रूप से कंसोर्टियम है।
- एक अकेला सदस्य अन्य सदस्यों के अधिकार या सहमति के बिना मध्यस्थता शुरू करने में सक्षम नहीं है।
- कॉक्स एंड किंग्स लिमिटेड बनाम एसएपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (2024) मामले का हवाला देते हुए, उन्होंने तर्क दिया कि इरादा कंसोर्टियम के साथ अनुबंध करने का था, न कि किसी एक सदस्य के साथ।
- टेकरो, जो एक डिफ़ॉल्ट करने वाला और दिवालिया सदस्य है और जिसने नेतृत्व खो दिया है, स्वतंत्र रूप से मध्यस्थता खंड को लागू नहीं कर सकता।
प्रतिवादी (टेकरो सिस्टम्स लिमिटेड) ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा:
- जीसीसी (GCC) में मध्यस्थता खंड को खरीद आदेशों (Purchase Orders) में शामिल किया गया था।
- “ठेकेदार” की परिभाषा में “शीर्षक में कानूनी उत्तराधिकारी” शामिल हैं, और दिवालियापन पर, कंसोर्टियम समझौता समाप्त हो गया, जिससे सदस्य व्यक्तिगत उत्तराधिकारी बन गए।
- एक कंसोर्टियम अपने सदस्यों से अलग कोई कानूनी इकाई नहीं है (न्यू होराइजन्स लिमिटेड बनाम भारत संघ)।
- अपीलकर्ताओं द्वारा उठाई गई आपत्ति समझौते के “अस्तित्व” के बजाय “लागू करने की क्षमता” से संबंधित है, जो कि ट्रिब्यूनल द्वारा तय किया जाने वाला विषय है।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की धारा 11(6-A) के तहत रेफरेल चरण (referral stage) पर न्यायिक जांच के सीमित दायरे पर ध्यान केंद्रित किया। पीठ ने दोहराया कि यह जांच केवल “मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व” तक ही सीमित है।
संविधान पीठ के फैसले इन्टरप्ले बिटवीन आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट्स अंडर आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट 1996 एंड स्टाम्प एक्ट 1899, इन री (2024) और एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम कृष स्पिनिंग मिल्स प्राइवेट लिमिटेड (2024) का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने कहा कि रेफरेल कोर्ट को अधिकार, क्षमता या रखरखाव (maintainability) के संबंध में विवादास्पद तथ्यात्मक या कानूनी मुद्दों में प्रवेश करने से बचना चाहिए।
कोर्ट ने कहा:
“हालांकि, रेफरेल कोर्ट अपनी जांच को केवल इस प्रथम दृष्टया (prima facie) संतुष्टि तक सीमित रखेगा कि क्या कंसोर्टियम का कोई सदस्य मध्यस्थता समझौते के लिए ‘पक्षकार’ के रूप में योग्य है या नहीं। यह प्रथम दृष्टया संतुष्टि रेफरेल कोर्ट के लिए ट्रिब्यूनल का गठन करने और विवाद को उसके पास भेजने के लिए पर्याप्त है। इसके बाद, यह ट्रिब्यूनल का काम है कि वह विस्तृत जांच करे कि कंसोर्टियम का सदस्य वास्तव में मध्यस्थता समझौते का पक्षकार है या नहीं।”
पीठ ने कॉक्स एंड किंग्स लिमिटेड का हवाला देते हुए नोट किया कि क्या कोई गैर-हस्ताक्षरकर्ता या विशिष्ट इकाई एक “वास्तविक पक्ष” (veritable party) है, इसमें जटिल तथ्यात्मक और कानूनी प्रश्न शामिल हैं जो धारा 16 के तहत मध्यस्थ न्यायाधिकरण के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
कंसोर्टियम के सदस्यों के विशिष्ट मुद्दे को संबोधित करते हुए, कोर्ट ने कहा:
“यह प्रश्न कि क्या कंसोर्टियम का कोई सदस्य स्वयं अधिनियम, 1996 की धारा 11 को लागू कर सकता है, ऐसा नहीं है जिसका कोई एक समान उत्तर हो। उस प्रश्न का उत्तर आवश्यक रूप से मुख्य अनुबंध के साथ-साथ कंसोर्टियम समझौते की शर्तों की जांच पर निर्भर करेगा।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि तेलंगाना हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया निष्कर्ष के आधार पर मध्यस्थ न्यायाधिकरण का गठन करने में कोई गलती नहीं की है। कोर्ट ने अपीलों को खारिज कर दिया लेकिन स्पष्ट किया कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण सभी आपत्तियों की जांच करने के लिए सशक्त है।
कोर्ट ने निर्देश दिया:
“ट्रिब्यूनल मध्यस्थता की पोषणीयता (maintainability) से संबंधित प्रारंभिक आपत्तियों सहित सभी प्रश्नों पर उनके गुण-दोष के आधार पर विचार करेगा।”
मामले का विवरण:
- मामले का शीर्षक: मेसर्स आंध्र प्रदेश पावर जनरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (APGENCO) बनाम मेसर्स टेकरो सिस्टम्स लिमिटेड और अन्य (तथा अन्य जुड़ी अपील)
- मामला संख्या: 2023 की एसएलपी (सी) संख्या 8998 से उत्पन्न सिविल अपील
- साइटेशन: 2025 INSC 1447
- कोरम: जस्टिस पमिडिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर

