मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत दायर मामले में, यदि आरोपी को बरी कर दिया जाता है, तो शिकायतकर्ता को हाईकोर्ट से अपील के लिए ‘विशेष अनुमति’ (Special Leave) लेने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता एक ‘पीड़ित’ (Victim) की श्रेणी में आता है और वह सीधे दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 372 के प्रावधान (Proviso) के तहत सत्र न्यायालय (Sessions Court) में अपील दायर कर सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि और कानूनी मुद्दा
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह की एकल पीठ शिकायतकर्ता नारायण चौहान द्वारा दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी। यह अपील प्रतिवादी, संतोष चौहान को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC), इंदौर द्वारा बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। निचली अदालत ने प्रतिवादी को चेक बाउंस (धारा 138 NI Act) के आरोपों से बरी कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 419(4) [जो पूर्व में CrPC की धारा 378(4) के समान है] के तहत हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की थी और अपील की अनुमति (Leave to Appeal) के लिए एक आवेदन भी लगाया था। कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या ‘पीड़ित’ के अपील के अधिकारों के संबंध में हालिया कानूनी नजीरों को देखते हुए यह अपील हाईकोर्ट के समक्ष पोषणीय (maintainable) है या नहीं।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति सिंह ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मेसर्स सेलेस्टियम फाइनेंशियल बनाम ए. ज्ञानसेकरन आदि (2025 INSC 804) के मामले में दिए गए हालिया फैसले पर व्यापक रूप से भरोसा जताया।
हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्थिति स्पष्ट कर दी है कि धारा 138 NI Act के मामले में शिकायतकर्ता CrPC की धारा 2(wa) [BNSS की धारा 2(y)] के तहत परिभाषित “पीड़ित” की श्रेणी में आता है। परिणामस्वरूप, ऐसा शिकायतकर्ता CrPC की धारा 372 [BNSS की धारा 413] के प्रावधान के तहत अपील दायर करने का हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट के तर्क को रेखांकित करते हुए, हाईकोर्ट ने उद्धृत किया:
“अधिनियम के तहत अपराधों के संदर्भ में, विशेष रूप से धारा 138 के तहत, शिकायतकर्ता स्पष्ट रूप से पीड़ित पक्ष है जिसे चेक के अनादरण (dishonour) के कारण आरोपी द्वारा भुगतान में चूक से आर्थिक नुकसान और क्षति हुई है, जो उस प्रावधान के तहत एक अपराध माना जाता है।”
कोर्ट ने आगे सुप्रीम कोर्ट के इस अवलोकन को नोट किया कि शिकायतकर्ता को पीड़ित मानना “न्यायसंगत, उचित और CrPC की भावना के अनुरूप” होगा। यह वर्गीकरण शिकायतकर्ता को CrPC की धारा 378(4) के तहत विशेष अनुमति मांगे बिना “अपने अधिकार में” बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ अपील करने में सक्षम बनाता है।
फैसले में धारा 378(4) के तहत दायर अपील और धारा 372 के प्रावधान के बीच के अंतर को स्पष्ट किया गया। जहां धारा 378(4) के लिए हाईकोर्ट से विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है, वहीं धारा 372 का प्रावधान पीड़ित को अपील का पूर्ण अधिकार प्रदान करता है।
सर्वोच्च न्यायालय का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति सिंह ने कहा:
“यदि शिकायतकर्ता भी पीड़ित है, तो वह धारा 372 के प्रावधान के तहत आगे बढ़ सकता है, ऐसी स्थिति में धारा 378 की उप-धारा (4) की कठोरता, जो अपील के लिए विशेष अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य करती है, बिल्कुल भी उत्पन्न नहीं होगी, क्योंकि वह एक पीड़ित के रूप में और अधिकार के मामले (matter of right) के रूप में अपील कर सकता है।”
निर्णय और निर्देश
मेसर्स सेलेस्टियम फाइनेंशियल मामले में स्थापित नजीर के आधार पर, हाईकोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता को BNSS की धारा 419(4) के तहत हाईकोर्ट से अपील की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह ने निम्नलिखित निर्देशों के साथ अपील का निपटारा किया:
- सत्र न्यायालय जाने की स्वतंत्रता: अपीलकर्ता को 10 दिसंबर, 2025 के बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ संबंधित सत्र न्यायाधीश (Sessions Judge) के समक्ष अपील करने की स्वतंत्रता दी गई है।
- समय सीमा: यह अपील हाईकोर्ट के आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 60 दिनों की अवधि के भीतर दायर की जा सकती है।
- परिसीमा (Limitation) से छूट: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि निर्धारित 60-दिवसीय अवधि के भीतर अपील दायर की जाती है, तो सत्र न्यायाधीश समय सीमा (Limitation) पर जोर नहीं देंगे और कानून के अनुसार मामले का निर्णय करेंगे।
रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि वह आक्षेपित फैसले की प्रमाणित प्रति अपीलकर्ता को वापस करे और केस रिकॉर्ड तुरंत संबंधित JMFC को भेजे।
केस विवरण:
- केस टाइटल: नारायण चौहान बनाम संतोष चौहान
- केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 12024 ऑफ 2025
- कोर्ट: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर पीठ
- कोरम: न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह
- साइटेशन: 2025:MPHC-IND:36952
- संबंधित कानून: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (धारा 419, 413, 2(y)); दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 378, 372, 2(wa)); परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (धारा 138).

