आतंकवाद और संगठित अपराध से जुड़े मामलों की सुनवाई में हो रही देरी पर गंभीर रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में एक समर्पित राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत स्थापित करने का निर्णय लिया है। जिन राज्यों में ऐसे मामलों की संख्या 10 से अधिक है, वहां एक से ज्यादा एनआईए अदालतें बनाई जाएंगी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ को यह भी बताया गया कि दिल्ली में संगठित अपराध और आतंकी मामलों की सुनवाई के लिए 16 विशेष अदालतें गठित की जा रही हैं। सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार से पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिए महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) जैसे किसी सख्त कानून की संभावनाओं पर विचार करने को कहा, ताकि विभिन्न राज्यों की एजेंसियों के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर होने वाले टकराव से बचा जा सके।
यह टिप्पणी उस समय आई जब अदालत गैंगस्टर महेश खत्री की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। खत्री के खिलाफ एनसीआर के अलग-अलग इलाकों में कई मामले दर्ज हैं और उसने मुकदमे में देरी को जमानत का आधार बनाया है। पीठ नक्सल समर्थक कैलाश रामचंदानी की याचिका पर भी सुनवाई कर रही थी, जिसे 2019 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में हुए आईईडी विस्फोट मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें क्विक रिस्पॉन्स टीम के 15 जवानों की मौत हुई थी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि संगठित अपराध के मामलों में अपराध एक राज्य में जन्म लेता है और आरोपी दूसरे राज्य में जाकर छिप जाता है, जिससे यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि जांच कौन सी एजेंसी करेगी और मुकदमा किस अदालत में चलेगा। उन्होंने कहा कि इस स्थिति का फायदा अंततः आदतन अपराधियों को मिलता है, जो समाज और देश दोनों के हित में नहीं है।
न्यायमूर्ति बागची ने कई राज्यों में दर्ज अनेक एफआईआर वाले मामलों की ओर इशारा करते हुए केंद्र सरकार से कहा कि ऐसे मामलों में एनआईए अधिनियम के तहत एजेंसी को जांच सौंपने की संभावना पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एनआईए को ऐसे संगठित अपराध मामलों में सभी जांच अपने हाथ में लेने का व्यापक अधिकार प्राप्त है।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों के अधिकारियों के साथ एक वर्चुअल बैठक की थी, जिसमें एनआईए मामलों के लिए अतिरिक्त न्यायिक ढांचा, न्यायाधीशों और स्टाफ के पद सृजित करने पर सहमति बनी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अतिरिक्त एनआईए अदालतों की स्थापना के लिए एक करोड़ रुपये के व्यय का प्रस्ताव रखा है। केरल जैसे राज्यों में, जहां प्रतिबंधित पीएफआई से जुड़े मामलों की संख्या अधिक है, वहां एक से ज्यादा एनआईए अदालतें होंगी।
दिल्ली सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.डी. संजय ने बताया कि राजधानी में गैंगस्टर और आतंकवाद से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए प्रस्तावित 16 विशेष अदालतें तीन महीने के भीतर काम शुरू कर देंगी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि ये अदालतें दिन-प्रतिदिन के आधार पर केवल एनआईए और विशेष कानूनों से जुड़े मामलों की ही सुनवाई करेंगी और अन्य मामलों से इन्हें नहीं जोड़ा जाएगा। अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा अदालतों को विशेष अदालत घोषित कर न्यायिक तंत्र पर अतिरिक्त बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। दोनों कानून अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि इसके लिए नया ढांचा तैयार किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को अब तक की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में तय की है। इससे पहले भी अदालत ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि आतंकवाद और संगठित अपराध जैसे गंभीर मामलों के लिए अलग, समर्पित अदालतों का होना समय की जरूरत है।

