दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को निर्देश दिया कि वे एप्पल इंक की उस याचिका पर दायर अपने जवाब औपचारिक रूप से रिकॉर्ड पर प्रस्तुत करें, जिसमें कंपनी ने अपने ऑडिटेड वित्तीय विवरण मांगे जाने और वैश्विक टर्नओवर के आधार पर जुर्माना लगाए जाने के प्रावधानों को चुनौती दी है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ को बताया गया कि कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय और CCI ने एप्पल की याचिका के जवाब में सोमवार को काउंटर एफिडेविट दाखिल कर दिया है, लेकिन वह अभी अदालत के रिकॉर्ड पर नहीं आया है। इस पर पीठ ने कहा कि आवश्यक कदम उठाकर जवाब को रिकॉर्ड पर लाया जाए।
अदालत ने एप्पल को भी सरकार और CCI के जवाब पर प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी।
सुनवाई के दौरान एप्पल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने अदालत को बताया कि कंपनी को मंत्रालय और CCI की संयुक्त जवाबी प्रति सोमवार देर रात प्राप्त हुई है, इसलिए प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए कुछ समय दिया जाए। अदालत ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
इसी दौरान एलायंस ऑफ डिजिटल इंडिया फाउंडेशन ने अदालत को बताया कि उसने मामले में पक्षकार बनाए जाने के लिए आवेदन दायर किया है, क्योंकि वही इस मामले में मूल शिकायतकर्ता और सूचना देने वाली संस्था है। हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को इस इम्प्लीडमेंट आवेदन पर यदि कोई आपत्ति हो तो चार सप्ताह के भीतर दाखिल करने का निर्देश दिया।
यह मामला CCI द्वारा एप्पल से कई वर्षों के ऑडिटेड वित्तीय विवरण मांगे जाने और प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 में किए गए संशोधन से जुड़ा है। एप्पल ने इन संशोधनों को चुनौती दी है, जिनके तहत आयोग को कंपनियों के खिलाफ जुर्माना तय करते समय केवल संबंधित उत्पाद या सेवा के बजाय पूरी कंपनी के वैश्विक टर्नओवर को आधार बनाने की अनुमति मिलती है।
एप्पल ने अपनी याचिका में कहा है कि संशोधित प्रावधानों के कारण किसी कंपनी के सभी उत्पादों और सेवाओं से होने वाले कारोबार को जोड़कर जुर्माने की गणना की जा सकती है, जबकि पहले यह गणना केवल प्रभावित प्रासंगिक उत्पाद या सेवा और भारतीय बाजार तक सीमित रहती थी। कंपनी का तर्क है कि अब CCI भारत के बाहर के बाजारों से अर्जित वैश्विक टर्नओवर को भी जुर्माने की गणना में शामिल कर सकता है।
एप्पल ने यह भी कहा है कि संशोधन के बाद, प्रभुत्व के दुरुपयोग या प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण के मामलों में कंपनियों पर पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत टर्नओवर का 10 प्रतिशत तक जुर्माना लगाया जा सकता है। कंपनी के अनुसार, यदि यह गणना वैश्विक टर्नओवर के आधार पर की जाए, तो वित्त वर्ष 2022 से 2024 के लिए उसका संभावित अधिकतम जुर्माना करीब 38 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है।
इससे पहले हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी सवाल किया था कि यदि कथित प्रभुत्व का दुरुपयोग कंपनी के कई उत्पादों में से केवल एक से संबंधित है, तो फिर वैश्विक टर्नओवर के आधार पर जुर्माना कैसे उचित ठहराया जा सकता है। इस पर सरकार और CCI की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता बलबीर सिंह ने दलील दी थी कि यह प्रावधान इसलिए जरूरी है ताकि ऐसी कंपनियों को भी CCI के दायरे में लाया जा सके, जिनका भारत में प्रत्यक्ष कारोबार न हो।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि एप्पल ने CCI की जांच को बाधित करने के उद्देश्य से याचिका दायर की है। सरकार का कहना था कि आयोग ने कंपनी से केवल भारत में हुए टर्नओवर की जानकारी मांगी है, न कि वैश्विक टर्नओवर की। इसके अनुसार, एप्पल को 8 दिसंबर तक भारत से संबंधित टर्नओवर का विवरण देने को कहा गया था, जिसकी जांच में लगभग तीन से चार सप्ताह का समय लगेगा।
गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 1 दिसंबर को एप्पल की याचिका पर केंद्र सरकार और CCI को नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। अब मामले की आगे की सुनवाई जनवरी के अंत में होगी।

