सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मोटर दुर्घटना में जान गंवाने वाले 14 वर्षीय छात्र के माता-पिता को दिए जाने वाले मुआवजे की राशि को बढ़ाकर 8,65,400 रुपये कर दिया है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने ‘उचित मुआवजे’ (Just Compensation) का निर्धारण करते हुए न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के तहत काल्पनिक मासिक आय को आधार बनाया। इसके साथ ही, कोर्ट ने पीड़ित द्वारा मृत्यु से पहले सहे गए दर्द और पीड़ा (Pain and Suffering) के लिए भी अतिरिक्त मुआवजा प्रदान किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि मृत्यु के मामलों में मुआवजे की गणना स्थायी विकलांगता (Permanent Disability) के मामलों से भिन्न होती है, विशेषकर ‘मल्टीप्लायर’ (Multiplier) लागू करने के संदर्भ में।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक दुखद सड़क दुर्घटना से संबंधित है, जिसमें एक 14 वर्षीय लड़का अपने दो सहपाठियों के साथ स्कूल जा रहा था। एक ट्रक ने लापरवाही और तेज गति से चलते हुए उन्हें टक्कर मार दी, जिससे दो सहपाठियों की मौके पर ही मौत हो गई। अपीलकर्ताओं (माता-पिता) का बेटा दुर्घटना के बाद जीवित था, लेकिन एक दिन बाद अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई।
प्रारंभ में, मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने 6% ब्याज के साथ केवल 1,29,500 रुपये का मुआवजा दिया था। इस राशि से असंतुष्ट होकर माता-पिता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने मुआवजे को बढ़ाकर 4,70,000 रुपये कर दिया, लेकिन ब्याज दर 6% ही रखी। इसे भी अपर्याप्त मानते हुए, माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ताओं का तर्क: अपीलकर्ताओं की ओर से पेश विद्वान वकील श्री जॉन मैथ्यू ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट द्वारा अपनाये गए मानदंड पूरी तरह से अपर्याप्त थे। उन्होंने बेबी साक्षी ग्रेओला बनाम मंजूर अहमद साइमन और अन्य (2024 INSC 963) के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में भी 18 का मल्टीप्लायर लागू किया जाना चाहिए। बेबी साक्षी के मामले में, कोर्ट ने 7 साल के बच्चे की गंभीर चोटों और स्थायी विकलांगता के लिए 18 का मल्टीप्लायर लागू किया था।
प्रतिवादियों का तर्क: ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी की ओर से पेश वकील श्री रंजन कुमार पांडे ने आय की गणना के लिए न्यूनतम वेतन को आधार बनाने पर कोई आपत्ति नहीं जताई। हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि रेशमा कुमारी बनाम मदन मोहन (2013) के फैसले के अनुसार, मृत्यु के मामले में मल्टीप्लायर को 15 तक ही सीमित रखा जाना चाहिए।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों और नजीरों (Precedents) का विश्लेषण किया। पीठ ने बेबी साक्षी ग्रेओला वाले फैसले को वर्तमान मामले से अलग बताया। कोर्ट ने कहा:
“बेबी साक्षी ग्रेओला (सुप्रा) के तथ्य वर्तमान मामले से बिल्कुल भिन्न हैं। यहां बच्चे की मृत्यु हो गई है और माता-पिता द्वारा मुआवजे का दावा निश्चित रूप से उस विकलांग बच्चे द्वारा दायर दावे से अलग होगा, जिसे मानसिक मंदता और गंभीर असंयम (severe incontinence) जैसी दुर्बल स्थिति के साथ अपना शेष जीवन व्यतीत करना है।“
कोर्ट ने मुआवजे की पुनर्गणना के लिए निम्नलिखित मापदंड अपनाए:
- मासिक आय: न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत 5,400 रुपये (क्लास बी शहर के लिए)।
- भविष्य की संभावनाएं (Future Prospects): 40% की वृद्धि।
- मल्टीप्लायर: 15 (रेशमा कुमारी मामले के अनुसार)।
- कटौती: व्यक्तिगत खर्चों के लिए आधी (1/2) राशि की कटौती।
एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, कोर्ट ने नोट किया कि चूंकि दुर्घटना के बाद बच्चा एक दिन तक जीवित रहा था, इसलिए माता-पिता बच्चे द्वारा सहे गए दर्द और पीड़ा के लिए मुआवजे के हकदार हैं। कोर्ट ने कहा:
“वर्तमान मामले में, बच्चे की मृत्यु एक दिन बाद हुई थी, इसलिए माता-पिता बच्चे की मृत्यु पर उसके द्वारा सहे गए दर्द और पीड़ा के लिए कुछ मुआवजे के हकदार होंगे; जो कानूनी वारिसों के लाभ के लिए होगा, जिसकी गणना हम 25,000 रुपये करते हैं।“
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए कुल मुआवजे को संशोधित कर 8,65,400 रुपये कर दिया। मुआवजे का विवरण इस प्रकार है:
| दावे का शीर्ष (Head) | राशि (रुपये में) |
| आश्रितता की हानि (Loss of Dependency) | 6,80,400/- |
| संपदा की हानि (Loss of Estate) | 15,000/- |
| कंसोर्टियम की हानि (Loss of Consortium) | 80,000/- (40,000 x 2) |
| चिकित्सा व्यय | 50,000/- |
| अंतिम संस्कार व्यय | 15,000/- |
| दर्द और पीड़ा के लिए मुआवजा | 25,000/- |
| कुल राशि | 8,65,400/- |
कोर्ट ने प्रतिवादी बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह पहले से भुगतान की गई राशि को घटाकर शेष राशि का भुगतान दो महीने के भीतर करे। इस राशि पर 7.5% की दर से ब्याज भी देय होगा।
केस डिटेल्स
- केस टाइटल: देवेंद्र कुमार त्रिपाठी और अन्य बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या 2025 (@ SLP (C) No. 2195 of 2024)
- साइटेशन: 2025 INSC 1429
- कोरम: जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन
- अपीलकर्ताओं के वकील: श्री जॉन मैथ्यू
- प्रतिवादियों के वकील: श्री रंजन कुमार पांडे

