सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत की गई हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 7 जनवरी, 2026 तक के लिए स्थगित कर दी। यह याचिका उनकी पत्नी गितांजलि जे अंगमो द्वारा दायर की गई है।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने समयाभाव के कारण मामले की सुनवाई टाल दी।
याचिका में वांगचुक की 26 सितंबर को की गई हिरासत को अवैध और मनमाना बताते हुए इसे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया गया है। इससे पहले 24 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई तब स्थगित की थी, जब केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अंगमो द्वारा दायर प्रत्युत्तर पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था। वहीं, 29 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने अंगमो की संशोधित याचिका पर केंद्र और लद्दाख प्रशासन से जवाब तलब किया था।
सोनम वांगचुक को कड़े एनएसए के तहत 26 सितंबर को हिरासत में लिया गया था। यह हिरासत लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों के दो दिन बाद हुई थी, जिनमें चार लोगों की मौत हो गई थी और करीब 90 लोग घायल हुए थे। सरकार का आरोप है कि वांगचुक ने हिंसा भड़काई।
हालांकि, संशोधित याचिका में अंगमो ने कहा है कि हिरासत आदेश “पुराने एफआईआर, अस्पष्ट आरोपों और अटकलबाजी पर आधारित” है और कथित हिरासत के आधारों से इसका कोई “तत्काल या प्रत्यक्ष संबंध” नहीं है। याचिका के अनुसार, यह आदेश किसी भी कानूनी या तथ्यात्मक आधार से रहित है।
याचिका में कहा गया है, “निवारक शक्तियों का ऐसा मनमाना प्रयोग संवैधानिक स्वतंत्रताओं और विधिक प्रक्रिया के मूल पर प्रहार करता है और यह अधिकार का घोर दुरुपयोग है,” जिससे हिरासत आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।
अंगमो ने यह भी कहा कि यह “पूरी तरह से असंगत” है कि तीन दशकों से अधिक समय से लद्दाख और देशभर में जमीनी शिक्षा, नवाचार और पर्यावरण संरक्षण के लिए राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित वांगचुक को अचानक इस तरह निशाना बनाया जाए।
याचिका में यह भी कहा गया कि 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा के लिए वांगचुक के किसी भी बयान या कृत्य को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अंगमो ने बताया कि वांगचुक ने स्वयं सोशल मीडिया के जरिए हिंसा की निंदा की थी और स्पष्ट कहा था कि हिंसा से लद्दाख की पिछले पांच वर्षों की शांतिपूर्ण “तपस्या” विफल हो जाएगी। उन्होंने इसे अपने जीवन का सबसे दुखद दिन बताया था।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम केंद्र और राज्यों को यह अधिकार देता है कि वे किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य करने से रोकने के लिए हिरासत में लें, जो “भारत की रक्षा के लिए प्रतिकूल” हों। इस कानून के तहत अधिकतम हिरासत अवधि 12 महीने की होती है, हालांकि इसे पहले भी निरस्त किया जा सकता है।

