आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम मामले में पूर्व R&AW अधिकारी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने CBI से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) अधिकारी मेजर जनरल वी.के. सिंह (सेवानिवृत्त) की उस याचिका पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से जवाब मांगा है, जिसमें उन्होंने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत उनके खिलाफ दर्ज मामले में जांच एजेंसी द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराए जाने की मांग की है।

न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि CBI का जवाब प्राप्त होने के बाद इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध की।

याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के 19 सितंबर के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें ट्रायल कोर्ट के निर्देश में संशोधन करते हुए दस्तावेजों की प्रतियां देने के बजाय केवल उनका निरीक्षण (इंस्पेक्शन) करने की अनुमति दी गई थी, यह कहते हुए कि दस्तावेज संवेदनशील प्रकृति के हैं।

CBI ने 20 सितंबर 2007 को सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। एजेंसी का आरोप है कि उन्होंने अपनी पुस्तक India’s External Intelligence – Secrets of Research and Analysis Wing के प्रकाशन के जरिए गोपनीय जानकारी का खुलासा किया, जो आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत अपराध है।

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उसी दिन तलाशी वारंट जारी किए गए थे और 24 सितंबर 2007 को उनकी अनुपालन रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई। इसके बाद 7 अप्रैल 2008 को केंद्र सरकार ने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम की धारा 13(3) के तहत अभियोजन की मंजूरी दी। 11 अप्रैल 2008 को CBI ने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 की धारा 3 और 5 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 409 और 120B के तहत आरोपपत्र दाखिल किया, साथ ही वर्गीकृत दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में रखने का अनुरोध किया।

ट्रायल कोर्ट ने 31 जनवरी 2009 को आरोपपत्र का संज्ञान लिया।

12 दिसंबर 2009 को मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट (CMM) ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 207 के तहत सिंह की अर्जी स्वीकार करते हुए CBI को निर्देश दिया कि वह अभियोजन द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेज उपलब्ध कराए। हालांकि, दस्तावेजों की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि ये दस्तावेज सिंह की ओर से पेश वकील की व्यक्तिगत अभिरक्षा में रहेंगे और किसी भी रूप में प्रसारित नहीं किए जाएंगे।

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इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आदेश में संशोधन किया।हाईकोर्ट ने कहा कि CBI दस्तावेजों के निरीक्षण का विरोध नहीं कर रही है, लेकिन उनकी हार्ड कॉपी दिए जाने पर आपत्ति है। इस आधार पर अदालत ने प्रतियां देने के बजाय ट्रायल कोर्ट में रखे दस्तावेजों के निरीक्षण की अनुमति दी, ताकि अभियुक्त प्रभावी ढंग से अपना बचाव कर सके।

इस आदेश से आहत होकर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और दलील दी कि अभियोजन द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेजों की प्रतियां न देना निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार का उल्लंघन है।

इससे पहले 31 मई 2023 को दिल्ली हाईकोर्ट ने सिंह के खिलाफ दर्ज CBI मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा था कि पुस्तक में किए गए खुलासे देश की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा को प्रभावित करते हैं या नहीं, यह विचारणीय विषय है और राष्ट्रीय सुरक्षा को क्या नुकसान पहुंचता है, इसका फैसला ट्रायल के दौरान ही किया जा सकता है।

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भारत की बाह्य खुफिया एजेंसी में संयुक्त सचिव रह चुके सिंह का कहना है कि उन्होंने यह पुस्तक R&AW में जवाबदेही की कमी और कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने के उद्देश्य से लिखी थी। उनके अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने वाले रहस्यों के खुलासे का आरोप पूरी तरह निराधार है।

सिंह जून 2002 में सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी पुस्तक जून 2007 में प्रकाशित हुई थी, जबकि उनके खिलाफ प्राथमिकी 2008 में दर्ज की गई।

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