कानून सहानुभूति पर आधारित नहीं हो सकता; एमवी एक्ट के तहत दायित्व तय करने के लिए वाहन की संलिप्तता के ठोस सबूत अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि मोटर दुर्घटना दावा मामलों में केवल सहानुभूति के आधार पर बीमा कंपनी पर दायित्व नहीं थोपा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यद्यपि ऐसे मामलों में सबूत का मानक “संभावनाओं की प्रबलता” (Preponderance of Probabilities) होता है, लेकिन यदि दुर्घटना में शामिल वाहन की संलिप्तता विश्वसनीय साक्ष्यों से स्थापित नहीं होती है, तो दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने दो मृतक युवकों के कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा दायर अपीलों को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट और मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के उन समवर्ती निष्कर्षों को बरकरार रखा, जिनमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे हैं कि कथित वाहन दुर्घटना में शामिल था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 14 अगस्त 2013 को हुई एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है। मृतक सुनील सिंह (26 वर्ष) और उसका मित्र शिवु (22 वर्ष) अपनी मोटरसाइकिल (KA-14-ED-9828) से होन्नाली से लौट रहे थे। रात करीब 11:30 बजे, सुगुर गांव के पास, कथित तौर पर एक कैन्टर लॉरी (KA-20-AA-6786) ने उतावलेपन और लापरवाही से चलाते हुए उन्हें टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में शिवु की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सुनील ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया।

मृतकों के परिजनों ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण-VII, शिमोगा के समक्ष दो अलग-अलग दावा याचिकाएं दायर कीं। 30 अप्रैल 2015 को अधिकरण ने दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके बाद, दावेदारों ने कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने भी 7 जून 2018 को उनकी अपीलें खारिज कर दीं। दोनों निचली अदालतों का मानना था कि दुर्घटना में कथित वाहन की संलिप्तता साबित नहीं हो पाई है।

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पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ताओं का पक्ष: अपीलकर्ताओं के वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि मामले में दुर्घटना और मौत “संभावनाओं की प्रबलता” के आधार पर साबित हो चुकी है। उन्होंने एफआईआर संख्या 277/2013, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, कथित वाहन चालक (प्रतिवादी संख्या 1) के खिलाफ दायर चार्जशीट और चार गवाहों (P.W.1 से P.W.4) की मौखिक गवाही का हवाला दिया।

उनका कहना था कि निचली अदालतों ने “संभावनाओं की प्रबलता” के बजाय “उचित संदेह से परे” (Beyond Reasonable Doubt) के मानक को लागू करके गलती की है और तकनीकी आधारों पर दावों को खारिज कर दिया है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पुलिस द्वारा तैयार किया गया स्पॉट महजर और रिकवरी पंचनामा चालक की लापरवाही को साबित करता है।

प्रतिवादी (बीमा कंपनी) का पक्ष: साई राम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (प्रतिवादी संख्या 3) की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत याचिका की स्वीकार्यता के लिए वाहन की संलिप्तता और चालक की लापरवाही साबित करना अनिवार्य शर्त (sine qua non) है।

बीमा कंपनी ने दलील दी कि केवल चार्जशीट दाखिल करना “पत्थर की लकीर” (Gospel Truth) नहीं माना जा सकता। उन्होंने मोटर वाहन निरीक्षक (MVI) की 5 अक्टूबर 2013 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कथित वाहन पर दुर्घटना का कोई निशान नहीं था। इसके अलावा, दुर्घटना के डेढ़ महीने बाद वाहन की बरामदगी और चार्जशीट दाखिल होने के अलावा, वाहन की संलिप्तता दिखाने के लिए कोई अन्य सबूत मौजूद नहीं है।

न्यायालय का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट द्वारा दर्ज किए गए तथ्यों की गहन जांच की। कलेक्टर सिंह बनाम एल.एम.एल. लिमिटेड, कानपुर (2015) के फैसले का हवाला देते हुए, पीठ ने दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत समवर्ती निष्कर्षों में हस्तक्षेप केवल “अपवादात्मक मामलों” में ही किया जा सकता है, जहां साक्ष्यों का मूल्यांकन पूरी तरह से असंतोषजनक हो या निष्कर्ष विकृत (Perverse) हों।

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गवाहों के बयानों में विरोधाभास: न्यायालय ने पाया कि गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास थे। मृतकों के पिता (P.W.1 और P.W.2) ने स्वीकार किया कि वे घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे और उनकी जानकारी सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थी। वहीं, कथित चश्मदीद गवाहों (P.W.3 और P.W.4) के इस दावे को कि चालक ने स्वेच्छा से उनके पास आकर अपना गुनाह कबूल किया, ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने “स्वाभाविक मानवीय आचरण के विपरीत” और अविश्वसनीय माना।

मोटर वाहन निरीक्षक की रिपोर्ट का महत्व: न्यायालय ने इस तथ्य पर विशेष जोर दिया कि कथित दुर्घटनाकारी वाहन पर क्षति के कोई निशान नहीं थे। जस्टिस मिश्रा ने फैसले में लिखा:

“सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मोटर वाहन निरीक्षक की 05.10.2013 की रिपोर्ट में कथित दुर्घटनाकारी वाहन को कोई क्षति नहीं दिखाई गई है। यह परिस्थिति उस दुर्घटना की गंभीरता के साथ पूरी तरह से असंगत है जिसमें दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गई हो। यह रिपोर्ट दावे के लिए कोई आधार प्रदान नहीं करती है।”

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सबूत का मानक: न्यायालय ने माना कि ऐसे मामलों में सबूत का मानक “संभावनाओं की प्रबलता” है और एफआईआर विश्वकोश नहीं होती, लेकिन दावेदारों को “ठोस और विश्वसनीय साक्ष्यों” के माध्यम से वाहन की विशिष्ट पहचान स्थापित करनी ही होगी।

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए अपीलें खारिज कर दीं कि अपीलकर्ता कथित वाहन की संलिप्तता साबित करने में विफल रहे हैं। न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया:

“हम मृतकों के परिवारों को हुई दुखद क्षति के प्रति पूरी तरह सचेत हैं। जवानी में ही खोई गई जिंदगियों का दर्द अथाह है। हालांकि, कानून के सिद्धांतों को केवल सहानुभूति के आधार पर दरकिनार नहीं किया जा सकता। मोटर वाहन अधिनियम के तहत दायित्व विश्वसनीय साक्ष्यों के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिए।”

केस विवरण:

  • केस का शीर्षक: सितारा एन.एस. व अन्य आदि बनाम साई राम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
  • केस संख्या: सिविल अपील संख्या 14718-14719 ऑफ 2025 (S.L.P. (C) संख्या 281-282/2019 से उत्पन्न)
  • साइटेशन: 2025 INSC 1425
  • कोरम: जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा

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