सुप्रीम कोर्ट ने असम में केवल ‘विशेष पुनरीक्षण’ से मतदाता सूची अद्यतन करने के फैसले पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा; अगली सुनवाई 16 दिसंबर को

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग से उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें असम में 2026 विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के अद्यतन के लिए केवल विशेष पुनरीक्षण (Special Revision – SR) किए जाने को चुनौती दी गई है, जबकि अन्य राज्यों में Special Intensive Revision (SIR) यानी अधिक कठोर सत्यापन प्रक्रिया अपनाई जा रही है।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए मामले को 16 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने पक्ष रखा।

हंसारिया ने दलील दी कि असम को “अलग-थलग” कर कम कठोर प्रक्रिया अपनाई जा रही है, जबकि दशकों से इस राज्य में अवैध प्रवासन को लेकर गंभीर चिंताएं दर्ज की जाती रही हैं।
उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में SIR के तहत दस्तावेज़ प्रस्तुत करना अनिवार्य है, जबकि असम में SR के दौरान मतदाताओं को कोई प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने कहा— “असम में कुछ भी आवश्यक नहीं। कोई दस्तावेज़ नहीं। समझ नहीं आता असम को क्यों अलग किया गया।”
उन्होंने यह भी बताया कि पहले की कार्यवाही में चुनाव आयोग ने अदालत को सूचित किया था कि विशेष गहन पुनरीक्षण पूरे देश में किया जाएगा।

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इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि आयोग ने “असम के विशेष कानूनों” और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की व्यवस्था को देखते हुए अलग दृष्टिकोण अपनाया हो सकता है, पर इस पर आयोग की दलील सुने बिना अदालत कोई अंतरिम आदेश नहीं देगी।

यह याचिका पूर्व गुवाहाटी हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष मृणाल कुमार चौधरी द्वारा अधिवक्ता अंसाउया चौधरी के माध्यम से दायर की गई है।
याचिका में कहा गया है कि SR के तहत नागरिकता, आयु और निवास के दस्तावेज़ अनिवार्य नहीं होते, जबकि SIR में ये दस्तावेज़ प्रस्तुत करना आवश्यक है।

याचिका में 1997 में असम के तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल एस के सिन्हा की रिपोर्ट और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता के उन बयानों का उल्लेख किया गया है जिनमें असम में “40–50 लाख अवैध प्रवासियों” की बात कही गई थी।

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याचिका का कहना है कि “जमीनी हालात” अन्य राज्यों जैसे ही हैं और चुनाव आयोग के पिछले आदेशों व हलफनामों में राष्ट्रीय स्तर पर SIR की बात दर्ज है।

पिछले महीने, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने SR के फैसले का स्वागत करते हुए कहा था कि यह प्रक्रिया “स्वच्छ, अद्यतन और सटीक मतदाता सूची” सुनिश्चित करेगी और राज्य सरकार पूरा सहयोग देगी।

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि SR अपनाने का निर्णय राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) और ‘D-Voters’ — जिनकी नागरिकता तय नहीं हुई है — को ध्यान में रखते हुए लिया गया।
D-Voters का नाम मसौदा सूची में रहेगा और उनकी स्थिति केवल विदेशी न्यायाधिकरण या अदालत के आदेश के बाद ही बदलेगी।

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ECI ने यह भी अंतर बताया कि SIR में मुद्रित एन्यूमरेशन फॉर्म के साथ दस्तावेज़ देना अनिवार्य होता है, जबकि SR और SSR में प्री-फिल्ड रजिस्टर और फॉर्म 6, 7 और 8 पर काम होता है और दस्तावेज़ अनिवार्य नहीं हैं।

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