सह-मालिकों की आपत्ति के कारण बिजली कनेक्शन देने से इनकार नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड (BSES) को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता के भाइयों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) की मांग किए बिना नए बिजली मीटर के आवेदन पर कार्रवाई करे। जस्टिस मिनी पुष्करणा की पीठ ने स्पष्ट किया कि केवल सह-मालिकों (co-sharers) के विरोध के आधार पर बिजली कनेक्शन से वंचित नहीं किया जा सकता, बशर्ते वहां एक अलग रिहायशी इकाई (dwelling unit) मौजूद हो।

कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या बिजली वितरण कंपनी (DISCOM) किसी आवेदक से अन्य सह-मालिकों (इस मामले में याचिकाकर्ता के भाई) की एनओसी (NOC) की जिद कर सकती है, जो कथित तौर पर बाधा उत्पन्न कर रहे थे। हाईकोर्ट ने इस विवाद का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को नया आवेदन करने का निर्देश दिया और बीएसईएस को आदेश दिया कि वह बिना एनओसी के इस पर कार्रवाई करे, लेकिन इसके लिए परिसर का निरीक्षण अनिवार्य होगा।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, अरविंद सिंह, ने दिल्ली के खिचड़ीपुर, पटपड़गंज स्थित अपनी संपत्ति (नंबर 5/204) की पहली मंजिल पर नया बिजली मीटर लगवाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उनके पिता इस संपत्ति के मूल आवंटी (original allottee) थे। आपसी बंटवारे और समझौते के तहत, संपत्ति की पहली मंजिल याचिकाकर्ता को मिली, जबकि उनके भाई (प्रतिवादी संख्या 3 से 5) ग्राउंड फ्लोर पर रहते हैं।

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याचिकाकर्ता ने इससे पहले 12 जून, 2018 को भी बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, लेकिन प्रतिवादी संख्या 2 (BSES) ने उनके भाइयों द्वारा जताई गई आपत्तियों के कारण मीटर लगाने से इनकार कर दिया था।

पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता का पक्ष: याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उनका मुवक्किल “उक्त परिसर का स्थायी निवासी है और कानूनी रूप से इसका सह-मालिक (co-owner/co-sharer) है”। यह दलील दी गई कि याचिकाकर्ता लंबे समय से पहली मंजिल पर रह रहा है, लेकिन प्रतिवादी यह जानते हुए भी कि उसके भाई “अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न कर रहे हैं”, बिजली कनेक्शन देने से इनकार कर रहे हैं।

बीएसईएस (BSES) का पक्ष: इसके जवाब में, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड के वकील ने कहा कि 2018 में किया गया पिछला आवेदन इसलिए खारिज किया गया था क्योंकि 12 जून, 2018 को एक ‘कमी पत्र’ (deficiency letter) जारी किया गया था। वकील ने बताया कि उस समय “पहली मंजिल पर एक कमरे को छोड़कर कोई रसोई और वॉशरूम उपलब्ध नहीं था”। चूंकि वहां कोई स्वतंत्र रिहायशी इकाई (dwelling unit) नहीं थी, इसलिए कनेक्शन नहीं दिया गया था।

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प्रतिउत्तर: इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने खंडन करते हुए कहा कि “अब पहली मंजिल पर रसोई और वॉशरूम मौजूद है और याचिकाकर्ता अपने परिवार के सदस्यों के साथ इसका उपयोग कर रहा है”

कोर्ट का विश्लेषण और फैसला

जस्टिस मिनी पुष्करणा ने बीएसईएस की इस दलील को नोट किया कि चूंकि पिछला आवेदन 2018 में किया गया था, इसलिए याचिकाकर्ता को अब नए सिरे से आवेदन करना होगा।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर बीएसईएस के समक्ष नया आवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने आदेश दिया:

“याचिकाकर्ता द्वारा प्रतिवादी संख्या 2 (BSES) के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करने पर, प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा प्रतिवादी संख्या 3 से 5 (भाइयों) से किसी भी एनओसी की मांग किए बिना उस पर कार्रवाई की जाएगी।”

कनेक्शन देने के लिए कोर्ट ने निम्नलिखित शर्तें निर्धारित कीं:

  1. याचिकाकर्ता को सभी कोडल और वाणिज्यिक औपचारिकताओं का पालन करना होगा।
  2. यदि बीएसईएस द्वारा बिजली खपत का कोई पुराना बकाया मांगा जाता है, तो याचिकाकर्ता को उसका भुगतान करना होगा।
  3. नियमित सुरक्षा जमा (security deposit) के अलावा, याचिकाकर्ता को 25,000 रुपये की अतिरिक्त सुरक्षा राशि जमा करनी होगी।
  4. याचिकाकर्ता को बिजली बिलों का भुगतान नियमित रूप से करना होगा।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह सुरक्षा जमा राशि “मौजूदा अवधि की मांगों के खिलाफ समायोजित (adjust) नहीं की जाएगी, बल्कि परिसर खाली करने पर याचिकाकर्ता को वापस कर दी जाएगी, जो उस समय किसी भी बकाया के समायोजन के अधीन होगी।”

अधिकारों पर स्पष्टीकरण: आदेश की प्रकृति के बारे में स्पष्ट करते हुए, जस्टिस पुष्करणा ने कहा:

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“वर्तमान आदेश को याचिकाकर्ता के पक्ष में किसी विशेष इक्विटी (special equities) या याचिकाकर्ता के पक्ष में किसी स्वामित्व/टाइटल/कब्जे के अधिकार के संकेत के रूप में नहीं माना जाएगा।”

निरीक्षण का आदेश: इसके अलावा, कोर्ट ने बीएसईएस को निर्देश दिया कि कोई भी आगे की कार्रवाई करने से पहले परिसर का निरीक्षण किया जाए। निर्णय में कहा गया:

“बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड प्रश्नगत परिसर का निरीक्षण करेगी और खुद को संतुष्ट करेगी कि याचिकाकर्ता अपने परिवार के साथ वहां रह रहा है और उसे एक रिहायशी इकाई (dwelling unit) के रूप में उपयोग कर रहा है।”

इन निर्देशों के साथ याचिका का निपटारा कर दिया गया।

केस विवरण

  • केस टाइटल: अरविंद सिंह बनाम स्टेट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली व अन्य
  • केस नंबर: W.P.(C) 17814/2025 & CM APPL. 76595/2025
  • बेंच: जस्टिस मिनी पुष्करणा
  • साइटेशन: 2025:DHC:10989

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