दिल्ली हाई कोर्ट ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के कथित उल्लंघन के तहत दर्ज उस शिकायत और एफआईआर को रद्द कर दिया है, जिसमें एक निजी स्कूल में छापे के दौरान नेवले के बाल से बने सात ब्रश मिलने पर एक व्यक्ति को आरोपी बनाया गया था।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने दीपेश गुप्ता की याचिका स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई को समाप्त कर दिया। यह मामला 2013 में लक्ष्मी नगर स्थित बाल भवन सीनियर सेकेंडरी स्कूल की बायोलॉजी लैब से ऐसे ब्रश बरामद होने के बाद दर्ज किया गया था।
गुप्ता की ओर से अधिवक्ता सुमीत वर्मा ने दलील दी कि ये बैच उन दिनों खरीदे गए थे, जब सितंबर 2002 में नेवले को संरक्षित प्रजाति घोषित नहीं किया गया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि शिकायत स्कूल या उसे संचालित करने वाली सोसाइटी के खिलाफ नहीं बल्कि केवल एक कथित प्रबंधन प्रभारी के खिलाफ दर्ज की गई, जो कानून के अनुसार आवश्यक पक्षकारों को शामिल करने की शर्त का उल्लंघन है।
अदालत ने यह स्वीकार किया कि ब्रश प्रतिबंध से पहले खरीदे गए थे, लेकिन यह भी कहा कि स्कूल द्वारा वैध कब्जे की घोषणा प्रस्तुत नहीं की गई, जो अधिनियम के तहत आवश्यक है। इसी आधार पर अदालत ने माना कि स्कूल के खिलाफ मामला दर्ज होना prima facie सही था।
इसके बावजूद अदालत ने पाया कि गुप्ता को इस कथित उल्लंघन से जोड़ने वाला एक भी रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया।
अदालत ने कहा कि “ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि याची 2002 में (जब नेवले को संरक्षित प्रजाति घोषित किया गया) स्कूल में कर्मचारी था या बाद में वह स्कूल प्रबंधन, विशेषकर बायोलॉजी लैब की जिम्मेदारी संभालता था।”
अदालत ने यह भी कहा कि शिकायत में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि गुप्ता स्कूल के प्रशासन, खर्च या सामान खरीद से जुड़े निर्णयों के लिए अधिकृत व्यक्ति थे।
अंत में 1 दिसंबर को पारित आदेश में, जिसका करिगेंडम शनिवार को उपलब्ध हुआ, हाई कोर्ट ने शिकायत और एफआईआर दोनों को रद्द करते हुए गुप्ता को राहत दे दी।

