इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शुक्रवार को लोक गायिका नेहा सिंह राठौर को बड़ी कानूनी शिकस्त देते हुए उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह मामला सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आधारहीन, धर्म विरोधी और राष्ट्र विरोधी टिप्पणियां करने से जुड़ा है। अदालत ने राहत देने से इनकार करते हुए जांच एजेंसी के साथ उनके असहयोग को एक प्रमुख आधार माना है।
न्यायमूर्ति बी.आर. सिंह की एकल पीठ ने राठौर की याचिका को अस्वीकार करते हुए कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि समन्वय पीठ (Coordinate Bench) द्वारा पहले ही एफआईआर (FIR) रद्द करने की उनकी याचिका खारिज की जा चुकी थी और जांच में सहयोग के निर्देश दिए गए थे। इसके बावजूद, गायिका ने जांच प्रक्रिया में अपेक्षित सहयोग नहीं किया।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी पिछले न्यायिक आदेशों की आड़ में सुरक्षा का दावा नहीं कर सकतीं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें कोई अंतरिम सुरक्षा (Interim Protection) नहीं दी थी, बल्कि उन्हें केवल उचित स्तर पर ‘डिस्चार्ज’ (Discharge) अर्जी दाखिल करने की छूट दी गई थी।
अग्रिम जमानत का पुरजोर विरोध करते हुए, सरकारी अधिवक्ता वी.के. सिंह ने अदालत में तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार असीमित नहीं हैं और इन पर उचित प्रतिबंध लागू होते हैं। उन्होंने दलील दी कि राठौर ने संवैधानिक पदों पर बैठे उच्च अधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करके इन सीमाओं का उल्लंघन किया है।
अभियोजन पक्ष ने मामले की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा कि ये पोस्ट ऐसे समय में किए गए जब पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ तनाव चरम पर था। सरकारी वकील ने एक महत्वपूर्ण और गंभीर आरोप लगाते हुए कोर्ट को बताया कि नेहा सिंह राठौर की इन टिप्पणियों को पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर काफी सराहा गया, जो इनके ‘राष्ट्रविरोधी’ स्वरूप को दर्शाता है। इसके अलावा, बिहार चुनावों को लेकर की गई उनकी टिप्पणियों को भी कानूनी दायरे से बाहर बताया गया।
राज्य सरकार ने कोर्ट को सूचित किया कि जांच अधिकारी द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बावजूद राठौर पूछताछ के लिए पुलिस के सामने उपस्थित नहीं हुईं, जिससे जांच प्रभावित हो रही है।
यह पूरा विवाद 27 अप्रैल को लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर से शुरू हुआ था। अभियोजन के अनुसार, नेहा सिंह राठौर ने कश्मीर के पहलगाम में 26 पर्यटकों की दुखद हत्या के संदर्भ में सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी (BJP) को निशाना बनाते हुए टिप्पणियां की थीं। पुलिस का आरोप है कि ये पोस्ट न केवल तथ्यों से परे थे, बल्कि इनकी प्रकृति सांप्रदायिक और राष्ट्रविरोधी थी।
अंततः, आरोपों की गंभीरता और जांच में आरोपी के असहयोगात्मक रवैये को देखते हुए, हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत देने का कोई औचित्य नहीं पाया और याचिका खारिज कर दी।

