इलाहाबाद हाईकोर्ट: नेशनल हाईवे एक्ट के तहत अधिग्रहित भूमि वापस नहीं की जा सकती, भले ही उसका उपयोग न हुआ हो; मुआवजे का भुगतान जल्द करने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि नेशनल हाईवे एक्ट, 1956 के तहत एक बार अधिग्रहित की गई भूमि को मूल भूस्वामियों (tenure holders) को वापस नहीं लौटाया जा सकता, भले ही यह आरोप हो कि भूमि का उपयोग नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि एक्ट के तहत एक बार जब भूमि निहित (vest) हो जाती है, तो उसे वापस करने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि यदि मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया है, तो उसे तत्काल सुनिश्चित किया जाए।

यह आदेश जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने अमीर अहमद और अन्य द्वारा दायर एक रिट याचिका का निस्तारण करते हुए दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और अपनी भूमि वापस करने का निर्देश देने की मांग की थी। सरकार द्वारा यह भूमि नेशनल हाईवे 87 (रामपुर से काठगोदाम) के निर्माण के उद्देश्य से अधिग्रहित की गई थी।

याचिकाकर्ताओं की मुख्य शिकायत यह थी कि अधिग्रहित भूमि का उपयोग हाईवे के निर्माण के लिए नहीं किया गया है, इसलिए इसे उन्हें वापस कर दिया जाना चाहिए।

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पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं का तर्क: याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील श्री महावीर प्रसाद (श्री नजाकत अली की ओर से) ने तर्क दिया कि अनुपयोगी भूमि को भूस्वामी को वापस कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने दलील दी कि “जिलाधिकारी (District Magistrate) द्वारा व्यक्त की गई राय के मद्देनजर भूमि को दर्ज किया जाना बाध्यकारी था क्योंकि जिस उद्देश्य के लिए इसका अधिग्रहण किया गया था, उसके लिए इसका उपयोग नहीं किया गया था।”

प्रतिवादी (NHAI) का तर्क: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के वकील श्री प्रांजल मेहरोत्रा ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने निम्नलिखित कानूनी और तथ्यात्मक तर्क प्रस्तुत किए:

  1. वैधानिक निहितता (Statutory Vesting): उन्होंने तर्क दिया कि एक बार जब नेशनल हाईवे एक्ट, 1956 के तहत भूमि अधिग्रहित कर ली जाती है, तो यह उक्त अधिनियम की धारा 3D(2) के तहत सरकार में निहित हो जाती है।
  2. वापसी का कोई प्रावधान नहीं: उन्होंने कहा कि “कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो भूस्वामियों को अपनी भूमि वापस पाने का अधिकार देता हो, भले ही उसका उपयोग न किया गया हो।”
  3. विशेष अधिनियम की प्रधानता: यह तर्क दिया गया कि भूमि अधिग्रहण या भूमि की वापसी से संबंधित सामान्य कानून नेशनल हाईवे एक्ट जैसे विशेष अधिनियम के तहत किए गए विशेष अधिग्रहण पर लागू नहीं होंगे।
  4. उपयोग का दायरा: भूमि के अनुपयोगी होने के दावे का खंडन करते हुए, श्री मेहरोत्रा ने तर्क दिया कि “यह आवश्यक नहीं है कि भूमि का उपयोग केवल राजमार्गों के निर्माण के लिए ही किया जाए, बल्कि इसका उपयोग किनारे की यूटिलिटीज (utilities) विकसित करने और सर्विस लेन व ड्रेनेज (नाली) बिछाने के लिए भी किया जाता है।” उन्होंने याचिकाकर्ता के इस तर्क को “अत्यधिक गलत” (highly misplaced) करार दिया।
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सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं के वकील ने एक अतिरिक्त मुद्दा उठाया और कहा कि “याचिकाकर्ता को आज तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है।”

कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

पक्षों को सुनने के बाद, हाईकोर्ट ने भूमि की वापसी के संबंध में NHAI द्वारा प्रस्तुत कानूनी स्थिति को स्वीकार कर लिया, लेकिन मुआवजे का भुगतान न होने की बात को गंभीरता से लिया।

पीठ ने अपने आदेश में कहा:

“इन परिस्थितियों में, जहां हम याचिकाकर्ता को नेशनल हाईवे एक्ट के तहत अधिग्रहित उसकी भूमि वापस पाने के लिए परमादेश (mandamus) की प्रकृति में राहत देने से इनकार करते हैं, वहीं हम यह प्रावधान करते हैं कि यदि याचिकाकर्ता को नेशनल हाईवे एक्ट, 1956 के तहत अधिग्रहण के एवज में अवार्ड के तहत मुआवजे का वितरण नहीं किया गया है, तो प्रतिवादी संख्या 6 तत्काल कदम उठाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि याचिकाकर्ता को अवार्ड के तहत मुआवजे का भुगतान यथाशीघ्र, और प्राथमिकता के आधार पर इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तिथि से एक महीने की अवधि के भीतर किया जाए।”

कोर्ट ने प्रतिवादी संख्या 6 को निर्धारित समय सीमा के भीतर मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया।

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केस विवरण

  • केस टाइटल: अमीर अहमद और 2 अन्य बनाम भारत संघ और 5 अन्य
  • केस नंबर: WRIT-C No. 23117 of 2025
  • कोरम: जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस स्वरूपमा चतुर्वेदी
  • याचिकाकर्ताओं के वकील: श्री नजाकत अली, श्री महावीर प्रसाद
  • प्रतिवादियों के वकील: ए.एस.जी.आई., सी.एस.सी., श्री प्रांजल मेहरोत्रा

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