सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लेखिका अरुंधति रॉय की पुस्तक मदर मैरी कम्स टू मी की बिक्री, प्रसार और प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया। याचिका में दावा किया गया था कि पुस्तक के कवर पर रॉय की बीड़ी या सिगरेट पीते हुए तस्वीर कानून का उल्लंघन है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता राजसीमन की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें केरल हाई कोर्ट द्वारा जनहित याचिका को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि कवर पर धूम्रपान का चित्रण सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स (विज्ञापन और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का नियमन) अधिनियम, 2003 यानी COTPA की धारा 5 का उल्लंघन है, जो तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन, प्रचार और प्रायोजन पर प्रतिबंध लगाती है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिका की मंशा पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की:
“वह एक प्रसिद्ध लेखिका हैं। उन्होंने ऐसी किसी चीज़ को प्रमोट नहीं किया है। पुस्तक में चेतावनी भी है, और वह एक प्रमुख व्यक्तित्व हैं। सिर्फ पब्लिसिटी के लिए ऐसा क्यों? शहर में किताब के कवर वाली कोई होर्डिंग नहीं लगी है। यह उन लोगों के लिए है जो इसे खरीदकर पढ़ेंगे। उनका चित्र ऐसा कोई संदेश नहीं देता।”
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि यह “गांजा बीड़ी” हो सकती है और पुस्तक पर बहुत छोटा डिस्क्लेमर है, लेकिन अदालत ने इसे तंबाकू विज्ञापन के दायरे से बाहर माना।
अदालत ने कहा कि न तो लेखिका और न ही प्रकाशक पेंगुइन हैमीश हैमिल्टन ने COTPA की धारा 5 का उल्लंघन किया है, क्योंकि यह प्रावधान तंबाकू उत्पादों के सीधे, परोक्ष और मीडिया प्रचार, डिस्प्ले, लीफलेट्स या प्रायोजन पर रोक लगाता है, जबकि यह मामला किसी भी प्रकार के विज्ञापन का नहीं है।
पीठ ने स्पष्ट किया:
“बुक, प्रकाशक या लेखक का सिगरेट आदि के विज्ञापन से कोई संबंध नहीं है। यह विज्ञापन नहीं है। आप लेखक के विचारों से असहमत हो सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ऐसी याचिका दायर की जा सकती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने अंत में कहा:
“हम impugned हाई कोर्ट आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं देखते।”
यह पुस्तक अरुंधति रॉय द्वारा लिखित एक संस्मरण (memoir) है।

