चेक बाउंस मामले में बरी किए जाने के खिलाफ अपील के लिए ‘स्पेशल लीव’ की जरूरत नहीं, सीधे सत्र न्यायालय में होगी सुनवाई: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चेक बाउंस के एक मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए स्पष्ट किया है कि आरोपी के बरी (Acquittal) होने पर शिकायतकर्ता को अपील करने के लिए हाईकोर्ट से ‘विशेष अनुमति’ (Special Leave) लेने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति मनीषा बत्रा की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता को दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 372 के अंतर्गत सत्र न्यायालय (Sessions Court) में अपील करने का पूर्ण अधिकार है।

कोर्ट ने इस आधार पर अपील की अनुमति मांगने वाली याचिका को सीधे संबंधित सत्र न्यायाधीश के पास भेज दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला योगेंद्र कुमार बनाम हिरदेश सिंह (CRM-A-3071-2019(O&M)) से संबंधित है। याचिकाकर्ता योगेंद्र कुमार ने धारा 378(4) Cr.P.C. के तहत हाईकोर्ट में आवेदन दायर कर अपील की अनुमति मांगी थी। यह अपील न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, फरीदाबाद के 1 नवंबर 2019 के फैसले के खिलाफ थी, जिसमें प्रतिवादी हिरदेश सिंह को धारा 138 एनआई एक्ट के तहत दर्ज शिकायत में बरी कर दिया गया था।

दलीलें और कानूनी आधार

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील अवनीश भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले मैसर्स सेलेस्टियम फाइनेंशियल बनाम ए. ज्ञानसेकरन आदि (2025(3) RCR (Criminal) 208) का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि शीर्ष अदालत के निर्णय के अनुसार, इस आवेदन को एक अपील के रूप में माना जाना चाहिए और धारा 372 Cr.P.C. (जो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 413 के समान है) के तहत निपटारे के लिए उचित न्यायालय में भेजा जाना चाहिए।

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हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति मनीषा बत्रा ने मैसर्स सेलेस्टियम फाइनेंशियल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा Cr.P.C. की धारा 372 और 378(4) की व्याख्या पर विचार किया। हाईकोर्ट ने नोट किया कि चेक बाउंस मामले में शिकायतकर्ता भी ‘पीड़ित’ (Victim) की श्रेणी में आता है और उसे अपील का वैधानिक अधिकार प्राप्त है।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य अंशों को उद्धृत किया:

  • पीड़ित का पूर्ण अधिकार: “अपराध के पीड़ित को अपील करने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए, जिसे किसी शर्त के अधीन नहीं रखा जा सकता।”
  • आरोपी के समान अधिकार: “जिस प्रकार दोषी ठहराए गए आरोपी को अपील का अधिकार है, उसी प्रकार पीड़ित को भी अपील का बिना शर्त अधिकार होना चाहिए।”
  • विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं: “यदि अपराध का पीड़ित (जो शिकायतकर्ता भी हो सकता है) धारा 372 के प्रावधान के तहत आगे बढ़ता है, तो उसे हाईकोर्ट से अपील के लिए विशेष अनुमति (Special Leave) लेने की आवश्यकता नहीं है।”
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न्यायमूर्ति बत्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए यह स्पष्ट है कि धारा 138 एनआई एक्ट की कार्यवाही में बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील धारा 372 Cr.P.C. के दायरे में आती है। कोर्ट ने इस संबंध में सतीश कुमार बनाम जुगल किशोर और राज कुमार बनाम राजेंद्र जैसे अन्य मामलों में दिए गए अपने पिछले आदेशों का भी जिक्र किया।

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फैसला

हाईकोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. मौजूदा आवेदन को अपील मानते हुए इसे फरीदाबाद के विद्वान सत्र न्यायाधीश (Sessions Judge) के पास भेजा (Remit) गया है। इसे धारा 372 Cr.P.C. के तहत दायर माना जाएगा।
  2. सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद या तो स्वयं इस अपील पर सुनवाई करें या इसे निपटारे के लिए किसी अन्य सक्षम न्यायालय को सौंप दें।
  3. हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष (merits) पर कोई विचार नहीं किया है, और सत्र न्यायालय स्वतंत्र रूप से इस पर निर्णय लेने के लिए खुला है।
  4. याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया है कि वह 15 जनवरी 2026 को व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के माध्यम से सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद के समक्ष उपस्थित हों।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: योगेंद्र कुमार बनाम हिरदेश सिंह
  • केस नंबर: CRM-A-3071-2019(O&M)
  • कोरम: न्यायमूर्ति मनीषा बत्रा

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