सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस पमिदिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर शामिल हैं, ने बंबई हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसके तहत एक अवमानना याचिका (Contempt Petition) को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि मूल अदालती आदेश “दो अर्थों वाला” (Ambiguous) था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट का यह दृष्टिकोण गलत था क्योंकि संबंधित आदेश में स्पष्ट और श्रेणीबद्ध निर्देश शामिल थे। इसके परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना कार्यवाही को नए सिरे से विचार के लिए बहाल कर दिया है।
कानूनी मुद्दा यह था कि क्या बंबई हाईकोर्ट का 17 जनवरी, 2003 के आदेश को अस्पष्ट बताकर अवमानना याचिका को खारिज करना उचित था? सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने इस मूल्यांकन में त्रुटि की है। कोर्ट ने कहा कि 2003 के आदेश में जमीन का कब्जा सौंपने के लिए स्पष्ट निर्देश थे, और याचिकाकर्ता की विशिष्ट शिकायतों की जांच किए बिना याचिका खारिज करना गलत था।
मामले की पृष्ठभूमि (Background)
यह अपील एक पुराने भूमि विवाद से उत्पन्न हुई थी, जिसे अपीलकर्ताओं के पूर्वज, श्री भास्कर गोविंद गवते ने शुरू किया था। उन्होंने 1992 में एक रिट याचिका (Writ Petition No. 3412 of 1992) दायर की थी, जिसमें तालुका और जिला ठाणे के गांव चिंचवली में स्थित गैट नंबर 78 (क्षेत्रफल 12 एकड़ 24 गुंठा) की भूमि अधिग्रहण कार्यवाही को पूरा करने के लिए ‘मैंडेमस’ (Mandamus) की मांग की गई थी।
17 जनवरी, 2003 को बंबई हाईकोर्ट ने इस याचिका का निपटारा चार अन्य मामलों के साथ एक सामान्य आदेश के माध्यम से किया। इस आदेश में सहायक सरकारी प्लीडर और प्रतिवादी, महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (MIDC) के वरिष्ठ वकील के बयानों को दर्ज किया गया था। विशेष रूप से, आदेश में विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) को निर्देश दिया गया था कि “वह भूमि, जो आज राज्य सरकार के कब्जे में है, उसका कब्जा याचिकाकर्ताओं को तत्काल सौंप दें।”
आदेश में यह भी स्पष्ट रूप से दर्ज था कि याचिकाकर्ताओं या उनके प्रतिनिधियों को कब्जा प्राप्त करने के लिए 22 जनवरी, 2003 को SLAO के कार्यालय में उपस्थित होना था।
दलीलें और अवमानना कार्यवाही
अपीलकर्ताओं ने आरोप लगाया कि 17 जनवरी, 2003 के आदेश का पालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि SLAO के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से जाने और बाद में कई अनुस्मारक (Reminders) भेजने के बावजूद, गैट नंबर 78 का कब्जा नहीं सौंपा गया। इसके चलते उन्होंने 2003 में अवमानना याचिका संख्या 315 दायर की।
अवमानना आरोपों के जवाब में:
- विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी (SLAO): ने एक हलफनामा दायर कर कहा कि राज्य सरकार के पास मौजूद जमीनों का कब्जा 22 जनवरी, 2003 को सौंप दिया गया था। हालांकि, गैट नंबर 78 के संबंध में, अधिकारी ने तर्क दिया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत 7 अक्टूबर, 1970 को ही एक अवार्ड पारित किया गया था और कब्जा MIDC को स्थानांतरित कर दिया गया था।
- कलेक्टर, ठाणे जिला: ने इस रुख का समर्थन किया और कहा कि चूंकि कब्जा MIDC को सौंप दिया गया था, इसलिए इसे मूल याचिकाकर्ता को वापस सौंपने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
अपीलकर्ताओं ने अपने प्रत्युत्तर (Rejoinder) में 1970 के अवार्ड के अस्तित्व से इनकार किया और कहा कि इसे पहली बार अवमानना कार्यवाही में उठाया गया था और यह रिट याचिका के दौरान रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं था।
बंबई हाईकोर्ट ने 26 फरवरी, 2022 के अपने फैसले में अवमानना याचिका को खारिज कर दिया। खंडपीठ ने देखा कि 2003 का आदेश “अस्पष्ट और दो व्याख्याओं में सक्षम” था, यह स्पष्ट नहीं था कि कब्जे वाला बयान विशेष रूप से अपीलकर्ताओं पर लागू होता है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट की पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर ने रिकॉर्ड की जांच की और हाईकोर्ट के तर्क से असहमति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश को अस्पष्ट मानकर याचिका खारिज करना “सही नहीं” था।
2003 के आदेश की स्पष्टता पर: शीर्ष अदालत ने कहा कि जब 17 जनवरी, 2003 के सामान्य आदेश को समग्रता में पढ़ा जाता है, तो इसमें विशिष्ट निर्देश निहित हैं। कोर्ट ने कहा:
“17.01.2003 के सामान्य आदेश को समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिए और जब इसे ऐसा पढ़ा जाता है, तो यह स्पष्ट होता है कि खंडपीठ द्वारा 22.01.2003 को विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी के कार्यालय में उपस्थित होने और उस दिन राज्य सरकार के कब्जे वाली भूमि का कब्जा सौंपने के मामले में एक स्पष्ट और श्रेणीबद्ध निर्देश जारी किया गया था।”
याचिकाकर्ता की विशिष्ट शिकायत पर: कोर्ट ने इस बात की आलोचना की कि हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका में किए गए कथनों के आलोक में गैट नंबर 78 के संबंध में मूल याचिकाकर्ता की विशिष्ट शिकायत की जांच नहीं की। पीठ ने टिप्पणी की:
“अन्य भूस्वामियों द्वारा किसी शिकायत का अभाव यह नहीं दर्शाता कि मूल याचिकाकर्ता के पक्ष में जारी निर्देशों का अनुपालन किया गया था या वे महत्वहीन थे।”
1970 के अवार्ड पर: प्रतिवादियों द्वारा 1970 के मौजूदा अवार्ड के दावे के संबंध में, कोर्ट ने रिकॉर्ड के लिए नोट किया:
“रिकॉर्ड के लिए, हम यह कह सकते हैं कि 07.10.1970 का अवार्ड प्रतिवादियों द्वारा इस न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया था।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और बंबई हाईकोर्ट के 26 फरवरी, 2022 के फैसले को रद्द कर दिया।
- कार्यवाही की बहाली: कोर्ट ने अवमानना याचिका संख्या 315 (वर्ष 2003) को नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट के समक्ष बहाल करने का आदेश दिया।
- गुण-दोष पर स्पष्टीकरण: पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने प्रतिवादियों के 1970 के अवार्ड संबंधी तर्कों सहित किसी भी पक्ष की दलीलों के गुण-दोष (Merits) पर कोई राय व्यक्त नहीं की है। इन मुद्दों पर रिमांड पर हाईकोर्ट द्वारा विचार किया जाएगा।
केस विवरण (Case Details)
- केस टाइटल: भास्कर गोविंद गवते (अब मृतक) उनके कानूनी वारिसों के माध्यम से बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या 10346 वर्ष 2024
- कोरम: जस्टिस पमिदिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर
- अपीलकर्ताओं के वकील: श्री शोएब आलम (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री श्रेयश ललित
- महाराष्ट्र राज्य के वकील: सुश्री रुक्मिणी बोबडे
- MIDC के वकील: श्री दीपक नारगोलकर (वरिष्ठ अधिवक्ता)

