सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल इसलिए कि एक अभिभावक “वर्क फ्रॉम होम” (घर से काम) कर रहा है, यह मान लेना सही नहीं है कि वह बच्चे की बेहतर देखभाल कर सकता है। न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मां द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपने नाबालिग बेटे की कस्टडी की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें बच्चे की कस्टडी पिता को दी गई थी।
कोर्ट ने कहा कि यद्यपि हाईकोर्ट का “वर्क फ्रॉम होम” को आधार बनाना कानूनी रूप से पूरी तरह सही नहीं था, लेकिन बच्चे का हित सर्वोपरि है, और बच्चा अपने पिता से अलग होने को तैयार नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 1 जुलाई, 2024 के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में निचली अदालत के उन फैसलों को रद्द कर दिया था, जिनमें नाबालिग बेटे (अर्जुन) की कस्टडी मां को दी गई थी। जब निचली अदालत ने फैसला सुनाया था, तब बच्चा 5 साल से कम उम्र का था, लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही के दौरान उसकी उम्र 5 साल से अधिक हो गई।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले पक्षकारों को मध्यस्थता (Mediation) के जरिए विवाद सुलझाने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने नोट किया कि दोनों पक्ष आर्थिक रूप से स्वतंत्र और कामकाजी हैं, और उनके बीच का विवाद किसी कदाचार के बजाय “व्यावहारिक समस्याओं” (Attitudinal problems) का परिणाम है। सुलह की तमाम कोशिशों और अंतरिम व्यवस्थाओं के बावजूद, 25 नवंबर 2025 को कोर्ट को सूचित किया गया कि पति-पत्नी के बीच समझौता संभव नहीं है और पिता आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार नहीं हैं।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता (मां) का पक्ष: मां की ओर से पेश वकील ने हाईकोर्ट के आदेश में कई त्रुटियों का हवाला दिया:
- कामकाजी स्थिति: हाईकोर्ट ने नोट किया था कि पिता घर से काम (Work from home) करते हैं, जबकि मां को ऑफिस जाना पड़ता है और उनके काम के घंटे लंबे हैं। मां ने तर्क दिया कि इससे यह गलत धारणा बनती है कि घर से काम करने वाला अभिभावक बेहतर देखभाल करता है। उन्होंने कहा कि उनकी नौकरी में भी लचीलापन है।
- स्कूल से दूरी: मां ने तर्क दिया कि उनके घर से बच्चे के स्कूल (हेरिटेज स्कूल, वसंत कुंज) की दूरी पिता के घर की तुलना में बराबर या कम है, इसलिए हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष गलत था कि बच्चे को यात्रा में अधिक समय लगेगा।
- बहन का साथ: मां ने कहा कि बेटा अपनी बहन (जो मां की कस्टडी में है) के साथ रहने के लिए उत्सुक है। चूंकि बेटी पिता के साथ रहने को तैयार नहीं है, इसलिए भाई-बहन को साथ रखने के लिए बेटे की कस्टडी भी मां को दी जानी चाहिए।
- कोविड के दौरान यात्रा: हाईकोर्ट ने मां द्वारा कोविड-19 के दौरान विदेश यात्रा करने को “गैर-जिम्मेदाराना” बताया था। मां ने इसका विरोध करते हुए कहा कि वह पूरी तरह से वैक्सीनेटेड थीं और यात्रा काम के सिलसिले में थी।
प्रतिवादी (पिता) का पक्ष: पिता के वकील ने हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया। इसके अलावा, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 3 मई, 2024 को मां को दिए गए ‘मुलाकात के अधिकार’ (Visitation Rights) को रद्द करने की मांग की। पिता का तर्क था कि बच्चे को बार-बार एक घर से दूसरे घर ले जाने से उसके मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ता है।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने कस्टडी मामलों में कामकाजी माता-पिता के मूल्यांकन को लेकर स्थिति स्पष्ट की।
कामकाजी माता-पिता पर: सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण को खारिज कर दिया कि घर से काम करना बेहतर पेरेंटिंग की गारंटी है। पीठ ने कहा:
“हम इस विचार से सहमत नहीं हैं कि यदि एक अभिभावक घर से काम कर रहा है और दूसरा नहीं (यानी उसे ऑफिस जाना पड़ता है), तो यह मान लिया जाए कि बच्चे का हित उस अभिभावक के पास सुरक्षित है जो ऑफिस नहीं जाता।”
कोर्ट ने कहा कि दोनों अभिभावक अपने बच्चे के बेहतर भविष्य और शिक्षा के लिए ही काम करते हैं।
यात्रा और आचरण पर: हाईकोर्ट द्वारा मां की विदेश यात्रा पर प्रतिकूल टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा:
“छुट्टियां किसी भी व्यक्ति के मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक होती हैं। इसलिए, उस आधार पर अपीलकर्ता (मां) के खिलाफ कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता था।”
बच्चे का कल्याण (Welfare of the Child): तमाम दलीलों के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम निर्णय बच्चे की वर्तमान स्थिति और इच्छा पर आधारित रखा। कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर गौर किया:
- बच्चा अब 5 वर्ष से अधिक उम्र का है।
- पिता की कस्टडी में रहते हुए हेरिटेज स्कूल में उसकी पढ़ाई बिना किसी बाधा के चल रही है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जजों के साथ बातचीत के दौरान, बच्चे ने स्पष्ट किया कि वह “अपने पिता का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है।”
- पिता के घर पर बच्चे की देखभाल के लिए दादाजी सहित अन्य बुजुर्ग सदस्य मौजूद हैं।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बच्चे की शिक्षा और उसकी इच्छा को देखते हुए हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार, मां की अपील खारिज कर दी गई और कस्टडी पिता के पास ही बरकरार रखी गई।
हालांकि, कोर्ट ने पिता की उस अर्जी को भी खारिज कर दिया जिसमें मां के मिलने के अधिकार को समाप्त करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“प्रतिवादी (पिता) का विज़िटेशन राइट्स (मुलाकात के अधिकार) को डिस्चार्ज करने का आवेदन खारिज किया जाता है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने पक्षकारों के लिए फैमिली कोर्ट में कस्टडी के लिए उचित कानूनी उपाय तलाशने का रास्ता खुला रखा है।

