भूमि अधिग्रहण मुआवजे के बंटवारे का विवाद परमानेंट लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर, सिविल कोर्ट ही कर सकता है फैसला: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ (Division Bench) ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि नेशनल हाईवे एक्ट, 1956 के तहत अधिग्रहित भूमि के मुआवजे के भुगतान या उसके बंटवारे (Apportionment) से जुड़े विवादों का निपटारा करने का अधिकार ‘परमानेंट लोक अदालत’ (Permanent Lok Adalat) के पास नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे विवाद लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट, 1987 के तहत “जनोपयोगी सेवा” (Public Utility Service) की परिभाषा में नहीं आते हैं।

मामले नंद किशोर सिंह बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य (L.P.A. No. 98 of 2025) में, अदालत ने परमानेंट लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड को कोरम नॉन-जुडिस (अधिकार क्षेत्र से बाहर) और कानून की नजर में शून्य (Nullity) घोषित किया। इसके साथ ही, सक्षम प्राधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वे विवाद को निर्णय के लिए प्रधान सिविल कोर्ट (Principal Civil Court) के पास भेजें।

मामले की पृष्ठभूमि

यह पूरा विवाद नेशनल हाईवे-23 (NH-23) के चौड़ीकरण के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण से जुड़ा है। नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने अपीलकर्ता नंद किशोर सिंह और प्रतिवादी नंबर 7 रामधारी सिंह की जमीन का अधिग्रहण किया था, जो आपस में हिस्सेदार (Co-sharers) हैं।

मुआवजे का अवार्ड शुरुआत में नंद किशोर सिंह और अन्य हिस्सेदारों के नाम पर बनाया गया था। हालांकि, रामधारी सिंह ने मुआवजे की राशि में अपना हिस्सा होने का दावा किया और कहा कि बंटवारे में उनके पिता को कोई हिस्सा नहीं मिला था।

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विवाद को सुलझाने के लिए नंद किशोर सिंह ने लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट, 1987 की धारा 22-C के तहत गुमला स्थित परमानेंट लोक अदालत के चेयरमैन के समक्ष आवेदन दायर किया। रामधारी सिंह ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि संपत्ति का मूल्य 10 लाख रुपये से अधिक है, इसलिए परमानेंट लोक अदालत के पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

एकल पीठ (Writ Court) ने प्रतिवादी की दलील स्वीकार करते हुए परमानेंट लोक अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और पक्षों को सक्षम प्राधिकारी के पास जाने का निर्देश दिया। इस आदेश के खिलाफ नंद किशोर सिंह ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष यह लैटर पेटेंट अपील (LPA) दायर की थी।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता समावेश भंज देव ने तर्क दिया कि रिट कोर्ट का फैसला त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने दलील दी कि विवाद के निपटारे के समय परमानेंट लोक अदालत का वित्तीय अधिकार क्षेत्र (Pecuniary Jurisdiction) 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इसलिए, परमानेंट लोक अदालत के पास अपीलकर्ता के पक्ष में अवार्ड पारित करने का पूरा अधिकार था।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने अपीलकर्ता की वित्तीय सीमा संबंधी दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपना ध्यान परमानेंट लोक अदालत के ‘विषय-वस्तु क्षेत्राधिकार’ (Subject-matter jurisdiction) पर केंद्रित किया।

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अदालत ने लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट, 1987 की धारा 22-A और 22-B का विश्लेषण किया, जो परमानेंट लोक अदालतों और “जनोपयोगी सेवाओं” को परिभाषित करती हैं। धारा 22-A के तहत परिवहन, डाक, बिजली आपूर्ति, स्वच्छता, अस्पताल और बीमा जैसी सेवाओं को “जनोपयोगी सेवा” माना गया है।

खंडपीठ ने पाया कि भूमि अधिग्रहण मुआवजे का विवाद इन श्रेणियों में से किसी में भी नहीं आता है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा:

“उपरोक्त प्रावधानों को देखते हुए, अपीलकर्ता द्वारा उठाया गया विवाद ‘जनोपयोगी सेवा’ की परिभाषा में नहीं आता है और इसलिए, 1987 के अधिनियम की धारा 22-C के तहत ऐसे मामलों का संज्ञान लेने के लिए ‘परमानेंट लोक अदालत’ में कोई अधिकार क्षेत्र निहित नहीं था।”

परिणामस्वरूप, कोर्ट ने माना कि परमानेंट लोक अदालत द्वारा पारित आदेश कोरम नॉन-जुडिस है और कानून की नजर में इसकी कोई वैधता नहीं है।

निर्णय और निर्देश

खंडपीठ ने परमानेंट लोक अदालत के अवार्ड को रद्द करने के रिट कोर्ट के फैसले को सही ठहराया, लेकिन विवाद के समाधान की प्रक्रिया को लेकर एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण जारी किया।

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कोर्ट ने नेशनल हाईवे एक्ट, 1956 की धारा 3(a) के तहत जिला भूमि अधिग्रहण अधिकारी, गुमला को इस मामले में “सक्षम प्राधिकारी” (Competent Authority) के रूप में पहचाना।

नेशनल हाईवे एक्ट की धारा 3-H का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि चूँकि यह मामला मुआवजे के बंटवारे (Apportionment) से संबंधित है, इसलिए इसे सिविल कोर्ट भेजा जाना अनिवार्य है। कोर्ट ने निर्देश दिया:

“…सक्षम प्राधिकारी, किसी भी पक्ष यानी अपीलकर्ता या प्रतिवादी संख्या 7, जैसा भी मामला हो, से आवेदन प्राप्त होने पर, विवाद को प्रधान सिविल कोर्ट (Principal Civil Court) के निर्णय के लिए संदर्भित करेगा, जिसके अधिकार क्षेत्र की सीमा के भीतर भूमि स्थित है यानी गुमला।”

अदालत ने 6 दिसंबर 2024 के रिट कोर्ट के आदेश में इस संशोधन के साथ अपील का निपटारा कर दिया।

केस डीटेल्स:

  • केस का नाम: नंद किशोर सिंह बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य
  • केस नंबर: L.P.A. No. 98 of 2025
  • कोरम: चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर
  • अपीलकर्ता के वकील: श्री समावेश भंज देव
  • प्रतिवादियों के वकील: श्री पीयूष चित्रेश (AC to AG), श्री मिथिलेश कुमार पांडेय (CGC), श्रीमती स्वीटी टोपनो, श्री अमृत राज किस्कू, श्री अरुण कुमार

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