इलाहाबाद हाईकोर्ट: भ्रष्टाचार रोकने के लिए सेवानिवृत्त कर्मियों को भी जांच से छूट नहीं; सेवानिवृत्त अभियंता की याचिका खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी विभागों में बढ़ती भ्रष्टाचार-संबंधी अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी किसी तरह की प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने साफ़ किया कि सेवाकाल के दौरान की गई अनियमितताओं के लिए सेवानिवृत्ति के बाद भी जवाबदेही तय की जा सकती है।

न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने यह टिप्पणी एक तकनीकी जूनियर इंजीनियर विपिन चंद्र वर्मा की उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद उनके खिलाफ शुरू की गई जांच और जारी किए गए शो-कॉज नोटिस को चुनौती दी थी।

वर्मा 30 जून 2025 को सेवानिवृत्त हुए। उनके खिलाफ सितंबर 2025 में एक शो-कॉज नोटिस जारी हुआ, जिसमें 2015 से 2022 के बीच सेवा-संबंधी कथित अनियमितताओं पर जवाब मांगा गया था। यह नोटिस अप्रैल 2025 में विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष एक शिकायत दाख़िल होने के बाद आया था, जो एक विधायक के रिश्तेदार द्वारा दायर की गई थी। इसके बाद ज़िला मजिस्ट्रेट को जांच सौंप दी गई।

याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि शिकायत “राजनीतिक रूप से प्रेरित” है और यूपी विधानमंडल के नियम (1958) के तहत लोकप्रतिनिधियों द्वारा की गई शिकायतों के निस्तारण की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। यह भी कहा गया कि सेवानिवृत्ति के बाद न तो नियोक्ता-कर्मचारी संबंध बचा और न ही विभाग उन्हें इस तरह नोटिस दे सकता है।

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वर्मा ने यह भी दलील दी कि सिविल सेवा विनियमावली के रेगुलेशन 351-A के तहत चार साल से पुरानी घटनाओं पर सेवानिवृत्त अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही नहीं हो सकती। चूंकि जांच 2015 तक पीछे जा रही है, इसलिए कार्रवाई समय-सीमा के बाहर है।

राज्य की ओर से बताया गया कि 23 अगस्त 2025 की जांच रिपोर्ट में क्रमांक 15 पर दर्ज अनियमितता वर्ष 2022 से संबंधित है। इसलिए मामला चार साल की सीमा के भीतर है।

कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताई और कहा कि रेगुलेशन 351-A के तहत कार्यवाही को समय-बद्ध होने का दावा “बलहीन” है।

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अदालत ने कहा कि सरकारी सेवक केवल वेतन के लिए काम नहीं करते, बल्कि “राष्ट्र निर्माण” में योगदान देते हैं। इसलिए उन पर उच्च स्तर की जवाबदेही होती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जनता या उसके प्रतिनिधियों को यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे सेवा के दौरान हुई किसी भी लापरवाही या अनियमितता की ओर ध्यान दिला सकें, चाहे वह अधिकारी सेवारत हो या सेवानिवृत्त।

राजनीतिक प्रेरणा के तर्क को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि विधायक एक जनप्रतिनिधि है और जमीनी स्तर पर होने वाली अनेक शिकायतों से रूबरू होता है। “हर शिकायत को राजनीतिक प्रेरित नहीं कहा जा सकता,” अदालत ने कहा। इसलिए केवल इस आधार पर आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता कि शिकायत विधायक या उसके रिश्तेदार ने की है।

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न्यायालय ने यह भी कहा कि मात्र शो-कॉज नोटिस के खिलाफ रिट याचिका विचार योग्य नहीं है, क्योंकि इस चरण पर कोई कानूनी क्षति या प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। यह केवल जवाब मांगने की प्रक्रिया है।

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने वर्मा को निर्देश दिया कि वे जांच में उचित सहयोग दें और सेवानिवृत्त कर्मचारी पर लागू नियमों का पालन करें।

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