नई दिल्ली: अवैध प्रवासियों और रोहिंग्याओं के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाया है। एक याचिका पर सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने तीखा सवाल करते हुए कहा, “क्या आप चाहते हैं कि हम उनके लिए रेड कार्पेट बिछाएं?”
अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक भारत सरकार आधिकारिक तौर पर किसी व्यक्ति को ‘शरणार्थी’ (Refugee) घोषित नहीं करती, तब तक अवैध रूप से सीमा पार करने वाले लोग केवल ‘घुसपैठिए’ (Intruders) माने जाएंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि देश की सुरक्षा और सीमित संसाधनों को देखते हुए, ऐसे अवैध प्रवासियों को यहां रखने की कोई बाध्यता नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus petition) की सुनवाई के दौरान की। याचिकाकर्ता का आरोप था कि दिल्ली पुलिस ने इस साल मई में कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिया था, और अब उनका कोई पता नहीं चल रहा है। याचिका में कोर्ट से मांग की गई थी कि इन लोगों का पता लगाया जाए और उनकी हिरासत की वैधता की जांच की जाए।
रोहिंग्या प्रवासियों का मुद्दा भारत में लंबे समय से कानूनी और राजनीतिक बहस का विषय रहा है। केंद्र सरकार का स्पष्ट मत रहा है कि भारत 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, और राष्ट्रीय सुरक्षा अवैध प्रवासियों के मानवाधिकारों से ऊपर है।
कोर्ट की अहम टिप्पणियां और विश्लेषण
CJI सूर्य कांत की पीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलों पर कड़ा रुख अपनाते हुए कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया।
1. शरणार्थी बनाम घुसपैठिया: याचिकाकर्ता के वकील से सीधा सवाल करते हुए जस्टिस सूर्य कांत ने पूछा कि क्या उनके पास भारत सरकार का कोई ऐसा आदेश है जिसमें इन व्यक्तियों को शरणार्थी घोषित किया गया हो। CJI ने कहा, “भारत सरकार का वह आदेश कहां है जिसमें उन्हें शरणार्थी घोषित किया गया है? ‘शरणार्थी’ एक परिभाषित कानूनी शब्द है और सरकार के पास इसे घोषित करने के लिए एक निर्धारित प्राधिकरण है।”
कोर्ट ने आगे कहा: “यदि किसी के पास शरणार्थी का कानूनी दर्जा नहीं है और वह अवैध रूप से प्रवेश करता है, तो वह घुसपैठिया है। क्या हमारा यह दायित्व है कि हम ऐसे व्यक्ति को यहां रखें?”
2. “रेड कार्पेट” वाली टिप्पणी: जब याचिकाकर्ता ने इन लोगों की सुरक्षा के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की, तो पीठ ने वह टिप्पणी की जो अब चर्चा का विषय बन गई है: “क्या आप चाहते हैं कि हम उनके लिए रेड कार्पेट बिछाएं?” यह टिप्पणी यह दर्शाती है कि न्यायपालिका उन लोगों को असाधारण सुरक्षा देने के पक्ष में नहीं है जिन्हें राज्य की सक्षम एजेंसियों द्वारा मान्यता नहीं दी गई है।
3. राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न: पीठ ने उत्तर भारत की सीमाओं की संवेदनशीलता का उल्लेख करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि बिना जांच-पड़ताल के अवैध प्रवासियों को रहने देना सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। कोर्ट ने पूछा, “उत्तर भारत में हमारी सीमाएं बेहद संवेदनशील हैं। अगर कोई घुसपैठिया अवैध रूप से प्रवेश करता है, तो क्या हमें उसे यहां रखने की बाध्यता है?”
4. संसाधनों का बंटवारा: सुप्रीम कोर्ट ने देश के सीमित संसाधनों का भी जिक्र किया। पीठ ने सवाल उठाया कि क्या देश के संसाधन अवैध घुसपैठियों पर खर्च किए जाने चाहिए या भारत के बच्चों और नागरिकों के कल्याण पर। यह टिप्पणी इस बात को रेखांकित करती है कि कल्याणकारी योजनाओं और संसाधनों पर पहला हक देश के नागरिकों का है।
सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों ने यह साफ कर दिया है कि बिना वैध दस्तावेजों या सरकारी मान्यता के भारत में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिक इसे अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते। कोर्ट ने दोहराया कि किसी को शरणार्थी घोषित करने का अधिकार कार्यपालिका (Executive) के पास है, और इसके अभाव में न्यायपालिका अवैध घुसपैठियों को शरणार्थी मानकर राहत नहीं दे सकती।

