यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड समिति के गठन को चुनौती खारिज; कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल संभव नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार द्वारा यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) की आवश्यकता का आकलन करने के लिए गठित समिति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि समिति का गठन पूरी तरह कार्यपालिका का नीति-निर्माण संबंधी निर्णय है, जिसमें न्यायपालिका दखल नहीं दे सकती।

मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी. एन. रे की पीठ ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत राज्य सरकार को ऐसे निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि जब तक कार्यपालिका अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जाती या अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करती, तब तक न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित रहता है।

पीठ ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत सरकार को यह शक्ति प्राप्त है। इसलिए शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत लागू होगा। ऐसे कार्यकारी कार्यों में न्यायिक समीक्षा का हमारा कोई अधिकार नहीं है।”

अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा का दायरा “कार्यपालिका के उन कार्यों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देता जो शुद्ध रूप से अनुच्छेद 162 के तहत आते हैं, क्योंकि यह संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध होगा।”

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सूरत के निवासी अब्दुल वहाब सोपारीवाला ने समिति के गठन को चुनौती देते हुए कहा था कि पैनल में अल्पसंख्यक समुदायों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है तथा सरकार ने समिति गठन के लिए कोई औपचारिक अधिसूचना जारी नहीं की।

इससे पहले, जुलाई में न्यायमूर्ति निरल आर. मेहता की एकल पीठ ने भी उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि UCC समिति “पूरी तरह एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से” गठित की गई है और यह राज्य सरकार के “पूर्ण अधिकार-क्षेत्र” में आता है।

सोमवार को दो-न्यायाधीशीय पीठ के समक्ष सोपारीवाला की ओर से अधिवक्ता ज़मीर शेख़ ने दलील दी कि “किसी भी अधिसूचना के बिना सरकार समिति के गठन की घोषणा नहीं कर सकती।”

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पीठ इस तर्क से सहमत नहीं हुई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हम न्यायिक समीक्षा तभी करते हैं जब कार्यपालिका अपने कर्तव्य का पालन न करे या अपने अधिकार से आगे बढ़ जाए। यह पूरी तरह नीति संबंधी निर्णय है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।”

राज्य सरकार ने 4 फ़रवरी को UCC की आवश्यकता का आकलन करने और उसके लिए विधेयक का मसौदा तैयार करने हेतु समिति के गठन की घोषणा की थी। यह समिति सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजन Desai की अध्यक्षता में बनाई गई है, जिसमें पूर्व IAS अधिकारी सी. एल. मीणा, अधिवक्ता आर. सी. कोडेक़र, पूर्व कुलपति दक्षेश ठाकुर और सामाजिक कार्यकर्ता गीता बेन श्रोफ़ शामिल हैं।

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हाईकोर्ट के आदेश के साथ समिति के गठन को लेकर उठी चुनौती पूरी तरह समाप्त हो गई है।

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