सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में क्षेत्राधिकार स्पष्ट किया; शिकायत वहीं दायर होगी जहाँ पेयी की होम ब्रांच स्थित है

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत चेक बाउंस के मामलों में क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) को लेकर चल रही कानूनी बहस पर विराम लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘अकाउंट पेयी चेक’ (Account Payee Cheque) से जुड़े मामलों की सुनवाई का अधिकार उस कोर्ट के पास होगा, जहाँ शिकायतकर्ता (Payee) की “होम ब्रांच” (Home Branch) स्थित है, यानी जहाँ वह अपना खाता रखता है।

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने जय बालाजी इंडस्ट्रीज लिमिटेड व अन्य बनाम मेसर्स एचईजी लिमिटेड (2025 INSC 1362) के मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य समन्वय पीठ (Coordinate Bench) द्वारा योगेश उपाध्याय बनाम अटलांटा लिमिटेड (2023) मामले में दिए गए निर्णय को ‘Per Incuriam’ (कानून की अनदेखी करने वाला) करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि पिछला फैसला एनआई एक्ट की धारा 142(2)(a) की वैधानिक योजना और उसके स्पष्टीकरण (Explanation) पर विचार करने में विफल रहा था।

मामले का सार

सुप्रीम कोर्ट एक ट्रांसफर याचिका (Transfer Petition) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें चेक बाउंस की शिकायत को भोपाल के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) की अदालत से कोलकाता के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (MM) की अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

कोर्ट ने 2015 के संशोधन अधिनियम के बाद क्षेत्राधिकार की कानूनी स्थिति का विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाला कि धारा 142(2)(a) के तहत क्षेत्राधिकार उस कोर्ट में निहित है जहाँ पेयी (Payee) अपना बैंक खाता रखता है। हालाँकि, दशरथ रूपसिंह राठौड़ बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014) के फैसले में दी गई व्यवस्था का सहारा लेते हुए, कोर्ट ने मामले को कोलकाता ट्रांसफर करने की अनुमति दे दी, क्योंकि शिकायत वापस किए जाने से पहले वहां गवाही दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद जय बालाजी इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरोपी) द्वारा मेसर्स एचईजी लिमिटेड (शिकायतकर्ता) के पक्ष में जारी किए गए लगभग 19.94 लाख रुपये के चेक से जुड़ा है। आरोपी ने यह चेक स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, कोलकाता पर जारी किया था, जिसे शिकायतकर्ता ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, भोपाल स्थित अपनी शाखा में जमा कराया। फंड की कमी के कारण चेक बाउंस हो गया।

READ ALSO  आधुनिक समाज में महिलाएं बलात्कार कानून का एक हथियार की तरह दुरुपयोग कर रही हैं: उत्तराखंड हाईकोर्ट

शिकायतकर्ता ने शुरू में 2014 में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, कोलकाता के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी। समन जारी हुए, आरोप तय हुए और मुख्य परीक्षा का हलफनामा (Affidavit of Evidence-in-Chief) रिकॉर्ड पर लिया गया। लेकिन, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (संशोधन) अधिनियम, 2015 के लागू होने के बाद, एमएम कोलकाता ने 2016 में यह कहते हुए शिकायत वापस कर दी कि उनके पास क्षेत्राधिकार नहीं है। इसके बाद शिकायतकर्ता ने जेएमएफसी, भोपाल के समक्ष मामला दायर किया।

आरोपी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दशरथ रूपसिंह राठौड़ मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि जिन मामलों में एनआई एक्ट की धारा 145(2) के तहत गवाही दर्ज होना शुरू हो चुका है, उन्हें मूल अदालत में ही जारी रहना चाहिए।

कोर्ट का विश्लेषण: क्षेत्राधिकार की पहेली

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्षेत्राधिकार के कानून के विकास का विस्तार से विश्लेषण किया और के. भास्करन, हरमन इलेक्ट्रॉनिक्स और ऐतिहासिक दशरथ रूपसिंह राठौड़ जैसे मामलों पर चर्चा की।

मुख्य कानूनी मुद्दा 2015 के संशोधन द्वारा लाई गई धारा 142(2)(a) की व्याख्या का था। यह धारा कहती है कि अपराध का विचारण उस स्थानीय क्षेत्राधिकार वाले कोर्ट द्वारा किया जाएगा जहाँ “बैंक की वह शाखा स्थित है जहाँ पेयी… खाता रखता है,” यदि चेक किसी खाते के माध्यम से संग्रह (Collection) के लिए दिया गया है।

1. “खाता रखता है” (Maintains an Account) का अर्थ

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “खाता बनाए रखने” (Maintains an Account) का अर्थ खाताधारक और उस विशिष्ट शाखा (होम ब्रांच) के बीच एक आंतरिक संबंध है जहाँ खाता खोला गया है। धारा में “शाखा” (Branch) शब्द का समावेश क्षेत्राधिकार तय करने के लिए एक “अतिरिक्त शर्त” जोड़ता है।

READ ALSO  विदेशी विधि स्नातकों को भारत में प्रैक्टिस करने के लिए BCI परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी, भले ही उन्होंने ब्रिज कोर्स पूरा कर लिया हो: दिल्ली हाईकोर्ट

2. ‘योगेश उपाध्याय’ मामले में त्रुटि

पीठ ने योगेश उपाध्याय बनाम अटलांटा लिमिटेड (2023) के फैसले की आलोचनात्मक जांच की। उस फैसले में कहा गया था कि क्षेत्राधिकार वहां होता है जहां चेक “संग्रह के लिए दिया गया” (Delivered for collection) है, जिससे ‘खाता रखने’ के स्थान के बजाय ‘चेक जमा करने’ के स्थान को प्राथमिकता दी गई थी।

इस दृष्टिकोण से असहमति जताते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा:

“हमारा सुविचारित मत है कि योगेश उपाध्याय (सुप्रा) में धारा 142(2)(a) के तहत क्षेत्राधिकार की व्याख्या 1881 के अधिनियम की वैधानिक योजना से मेल नहीं खाती… स्पष्टीकरण (Explanation) को इस तरह समझना धारा 142(2)(a) की स्पष्ट भाषा को विकृत करने जैसा है।”

कोर्ट ने नोट किया कि योगेश उपाध्याय के फैसले में धारा 142(2)(a) के स्पष्टीकरण पर ध्यान नहीं दिया गया, जो एक “कानूनी परिकल्पना” (Legal Fiction) बनाता है। यह स्पष्टीकरण प्रावधान करता है कि भले ही चेक संग्रह के लिए किसी भी शाखा में दिया गया हो, इसे उस शाखा में दिया गया माना जाएगा जहाँ पेयी अपना खाता रखता है।

कोर्ट ने कहा:

“हमारा दृढ़ मत है कि विधायिका का इरादा दुरुपयोग को जारी रखने देने का नहीं हो सकता… यदि हम योगेश उपाध्याय (सुप्रा) के निर्णय द्वारा धारा 142(2)(a) की व्याख्या को स्वीकार करते हैं, तो हम पेयी (Payee) को अपनी सुविधा के अनुसार क्षेत्राधिकार तय करने की छूट दे देंगे, जहाँ वह अपनी मर्जी से चेक जमा करके क्षेत्राधिकार चुन सकता है।”

नतीजतन, कोर्ट ने योगेश उपाध्याय में प्रतिपादित कानून को ‘Per Incuriam’ घोषित कर दिया।

निर्णय

क्षेत्राधिकार पर: कोर्ट ने आधिकारिक रूप से कहा:

“यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि किसी खाते के माध्यम से संग्रह के लिए दिए गए चेक, यानी ‘अकाउंट पेयी चेक’, के संबंध में धारा 138 के तहत शिकायत पर सुनवाई का अधिकार क्षेत्र उस कोर्ट में निहित है, जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार में बैंक की वह शाखा स्थित है जहाँ पेयी खाता रखता है, यानी पेयी की होम ब्रांच।”

इस प्रकार, कानूनी तौर पर, 2015 के संशोधन के तहत एमएम कोलकाता के पास क्षेत्राधिकार नहीं था, क्योंकि शिकायतकर्ता का खाता भोपाल में था।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्ग महिला को दी राहत, 1971 की जमीन बिक्री विलेख मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट को लगाई फटकार

ट्रांसफर याचिका पर: क्षेत्राधिकार पर यह निष्कर्ष निकालने के बावजूद, कोर्ट ने ट्रांसफर के मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने दशरथ रूपसिंह राठौड़ मामले का हवाला दिया, जिसमें निर्देश दिया गया था कि जिन मामलों में कार्यवाही धारा 145(2) (साक्ष्य की रिकॉर्डिंग) के चरण तक पहुंच गई है, उन्हें “किसी भी कानूनी जटिलता से बचने और उसे समाप्त करने के लिए” उसी कोर्ट में रहना चाहिए जहाँ वे लंबित थे।

यह देखते हुए कि एमएम कोलकाता ने साक्ष्य दर्ज करने के चरण के बाद शिकायत वापस की थी, कोर्ट ने कहा:

“मामले के इस पहलू को देखते हुए, हमारा सुविचारित मत है कि पार्टियों को जेएमएफसी, भोपाल के समक्ष नए सिरे से शिकायत लड़ने की अनुमति देना एक प्रक्रियात्मक अनौचित्य (Procedural Impropriety) होगा जो आरोपी के मामले के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।”

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर याचिका स्वीकार कर ली। मामले को जेएमएफसी, भोपाल से एमएम, कोलकाता में स्थानांतरित कर दिया गया है, साथ ही निर्देश दिया गया है कि कार्यवाही उसी चरण से शुरू की जाए जहाँ वह 28 जुलाई, 2016 को शिकायत वापस करने के आदेश से पहले थी।

केस विवरण:

  • केस शीर्षक: जय बालाजी इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य बनाम मेसर्स एचईजी लिमिटेड
  • केस नंबर: ट्रांसफर याचिका (आपराधिक) संख्या 1099/2025
  • साइटेशन: 2025 INSC 1362
  • पीठ: जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles