इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार को सख्त शब्दों में फटकार लगाई, जब उसके सामने यह मामला आया कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए एक सैनिक की विधवा पिछले पाँच दशकों से अपने पूर्ण भूमि अधिकार के लिए संघर्ष कर रही है।
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने कहा कि यदि याचिका में किए गए दावे सही हैं, तो यह “समूचे समाज की स्थिति का एक चौंकाने वाला प्रमाण” है।
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार की ओर से युद्ध शहीदों के परिजनों को दी जाने वाली सुविधाओं के तहत उन्हें 5 बीघा भूमि दी जानी थी। लेकिन उन्हें केवल 2.5 बीघा ही आवंटित की गई और शेष भूमि दिलाने के लिए वे 1974 से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रही हैं।
अदालत ने इस लंबे विलंब और अधिकारियों की लापरवाही पर गहरी नाराज़गी जताई।
पीठ ने अपने आदेश में कहा:
“यह वह मामला है जहाँ 1971 युद्ध के एक शहीद की विधवा, जो 5 बीघा भूमि की हकदार है, उसे केवल 2.5 बीघा ही दी गई और वह वर्ष 1974 से संघर्ष कर रही है। यदि यह averments सही हैं, तो यह समूचे समाज की स्थिति का एक चौंकाने वाला प्रमाण है।”
अदालत ने कहा कि यदि एक युद्ध शहीद की विधवा को अपने अधिकार के लिए पाँच दशक तक लड़ना पड़े, तो यह शासन-प्रणाली की गंभीर विफलता को दर्शाता है।
हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी “आवश्यक” कदम उठाकर याचिकाकर्ता के दावे का निस्तारण “सबसे जल्द संभव” समय में सुनिश्चित करे।
अदालत ने अधिकारियों को अगली तारीख — 8 दिसंबर — को विस्तृत पालन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश भी दिया।
अब राज्य सरकार की रिपोर्ट के बाद इस मामले की अगली सुनवाई होगी।




