सुप्रीम कोर्ट ने ‘भ्रमित जांच’ वाले मामले में थाना प्रभारी पर लगाई गई ₹1 लाख की लागत पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें एक पुलिस अधिकारी पर दो नाबालिग लड़कियों के अपहरण और हत्या के मामले में “भ्रमित जांच” करने के लिए ₹1 लाख की लागत व्यक्तिगत रूप से वसूलने का निर्देश दिया गया था। हाई कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ आरोपी को बरी कर दिया था।

जस्टिस के वी विश्वनाथन और जस्टिस पी बी वराले की पीठ पुलिस इंस्पेक्टर चेन सिंह उइके की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उन्होंने हाई कोर्ट के उन प्रतिकूल टिप्पणियों और लगाए गए जुर्माने को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने एमपी पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।

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पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत हाई कोर्ट के फैसले के पैरा 55 और 57(iii) में की गई टिप्पणियों तक सीमित है, जिनमें जांच को दुर्भावनापूर्ण बताया गया था और ₹1,00,000 वसूलने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने निर्देश दिया, “अगले आदेश तक हाई कोर्ट के पैरा 57(iii) का संचालन स्थगित रहेगा।”

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी दुबे ने दलील दी कि हाई कोर्ट ने बिना किसी ठोस सामग्री, बिना विभागीय जांच और बिना सुनवाई का अवसर दिए गंभीर और व्यापक टिप्पणियां कर दीं, जिससे अधिकारी को भारी नुकसान हुआ है।

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यह मामला 4 अप्रैल 2022 से जुड़ा है, जब बालाघाट जिले के तिरोड़ी थाना क्षेत्र के महाकेपार चौकी के अंतर्गत राजीव सागर डैम की कुड़वा नहर से पांच और तीन वर्ष की दो बच्चियों के शव मिले थे।

पुलिस की जांच के अनुसार, दोनों बच्चियां आखिरी बार अपने चाचा के साथ देखी गई थीं। इसी आधार पर पुलिस ने चाचा को गिरफ्तार कर अपहरण और हत्या का आरोप लगाया। बालाघाट की विशेष अदालत ने 31 जनवरी 2024 को आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी।

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लेकिन हाई कोर्ट ने इस सजा को पलटते हुए जांच को दुर्भावनापूर्ण और लापरवाह बताया। अदालत ने कहा कि दोषपूर्ण जांच के कारण एक निर्दोष व्यक्ति ने साढ़े तीन साल जेल में बिताए।

सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद इंस्पेक्टर उइके से वसूली का निर्देश अगली सुनवाई तक स्थगित रहेगा।

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