इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जीएसटी अधिकारियों द्वारा व्यापारियों का जीएसटी पंजीकरण बिना ठोस कारण बताए बार-बार रद्द करने की प्रवृत्ति पर कड़ी नाराज़गी जताई है। अदालत ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई किसी व्यवसायिक इकाई की “आर्थिक मृत्यु” की घोषणा करने जैसी है, क्योंकि ऐसे आदेश व्यापारियों पर असंगत रूप से भारी पड़ते हैं और वैध कारोबार को बाधित करते हैं।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की खंडपीठ ने अनिल आर्ट एंड क्राफ्ट द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए 15 अक्टूबर को राज्य कर सहायक आयुक्त, भदोही द्वारा पारित वह आदेश रद्द कर दिया, जिसके तहत याची का जीएसटी पंजीकरण 8 अक्टूबर से प्रभावी रूप से रद्द कर दिया गया था।
अदालत ने कहा कि किसी व्यापारी को उसकी यह वैधानिक जीवनरेखा बिना कारण बताए या त्रुटि सुधारने का उचित अवसर दिए बिना छीन लेना जीएसटी कानून की मूल भावना और प्रावधानों के विपरीत है।
इस मामले में, पहले जीएसटी अधिनियम की धारा 16 के उल्लंघन में फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने-देने का आरोप लगाते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। मगर अंतिम आदेश में अधिकारी ने केवल यह लिख दिया कि व्यापारी का उत्तर “संतोषजनक नहीं” है—बिना यह बताए कि किस कारण इसे असंतोषजनक माना गया।
पीठ ने कहा कि इस प्रकार का आदेश केवल निष्कर्ष बताता है, तर्क नहीं, और इस कारण यह एक अस्पष्ट और गैर-कारणयुक्त प्रशासनिक आदेश माना जाएगा। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि अधिकारी ने “लापरवाही” और “मूलभूत प्रक्रिया-सुरक्षाओं की पूर्ण अवहेलना” करते हुए शक्ति का प्रयोग किया।
अदालत ने रेखांकित किया कि जीएसटी पंजीकरण रद्द होने से व्यापारी औपचारिक आपूर्ति श्रृंखला में भाग लेने में असमर्थ हो जाता है, जबकि उसके पुराने कर दायित्व और अनुपालन की जिम्मेदारियाँ बनी रहती हैं।
ऐसे में पंजीकरण रद्द करना किसी व्यवसाय के लिए लगभग आर्थिक मृत्यु की घोषणा के समान है, और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
हाईकोर्ट ने आदेश रद्द करने के साथ निम्न निर्देश भी दिए—
- निर्णय की प्रति और याचिका की प्रति वाणिज्य कर आयुक्त को भेजी जाए।
- आयुक्त 15 दिनों के भीतर सभी जीएसटी अधिकारियों को स्पष्ट प्रशासनिक निर्देश जारी करें।
- इन निर्देशों में ऐसे अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान हो, जो बिना कारण बताए (non-speaking orders) या उचित अवसर दिए बिना पंजीकरण रद्द करते हैं।
पीठ ने कहा, “इन निर्देशों में यह अवश्य स्पष्ट हो कि गैर-कारणयुक्त आदेश पारित करने या उचित अवसर न देने वाले अधिकारियों के विरुद्ध दंडात्मक परिणाम तय किए जाएँ, ताकि भविष्य में ऐसी त्रुटियाँ न दोहराई जाएँ।”




