पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए स्पष्ट किया है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (एनआई एक्ट) की धारा 138 के तहत निजी क्षमता में जारी चेक के अनादरण (Dishonour) के लिए हुई सजा को “नैतिक अधमता” (Moral Turpitude) का अपराध नहीं माना जा सकता। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की पीठ ने एक मृतक कर्मचारी के बर्खास्तगी आदेशों को रद्द करते हुए पंजाब स्टेट सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन को निर्देश दिया है कि उसकी विधवा को सभी सेवानिवृत्ति लाभ जारी किए जाएं और उसके बेटे की अनुकंपा नियुक्ति पर विचार किया जाए।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि धारा 138 एनआई एक्ट के तहत अपराध को तब तक गंभीर “नैतिक अधमता” वाले अपराधों के समान नहीं माना जा सकता, जब तक कि वह आधिकारिक क्षमता में या नियोक्ता की संपत्ति के संबंध में न किया गया हो। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने मृतक कर्मचारी धर्मपाल सिंह के खिलाफ पारित बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया और लाभ जारी करने के उद्देश्य से उन्हें मृत्यु की तारीख तक सेवा में माना है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह याचिका पंजाब स्टेट सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन में चौकीदार के रूप में कार्यरत रहे स्वर्गीय धर्मपाल सिंह की विधवा और पुत्र द्वारा दायर की गई थी।
- पहली बर्खास्तगी: मृतक को शुरुआत में 15 अप्रैल, 2015 को एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत सजा होने के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने इस सजा को चुनौती दी और 19 जनवरी, 2016 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फिरोजपुर द्वारा उन्हें बरी कर दिया गया। इसके बाद, एक सिविल कोर्ट ने उनकी बर्खास्तगी को अवैध घोषित करते हुए 19 जुलाई, 2017 को उनकी बहाली का आदेश दिया, जिसे अपीलीय अदालत ने भी बरकरार रखा।
- दूसरी सजा और बर्खास्तगी: हालांकि, मृतक एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत एक दूसरी शिकायत में भी शामिल थे। उन्हें 7 फरवरी, 2017 के फैसले के तहत दोषी ठहराया गया और एक साल की कैद की सजा सुनाई गई, जिसे 22 मार्च, 2018 को बरकरार रखा गया। इस दूसरी सजा के आधार पर, कॉरपोरेशन ने 6 अक्टूबर, 2020 को आदेश जारी कर उन्हें फिर से सेवा से बर्खास्त कर दिया।
- कर्मचारी की मृत्यु: धर्मपाल सिंह का 15 जून, 2022 को निधन हो गया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सेवा लाभ और अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, जिसे 16 सितंबर, 2022 को खारिज कर दिया गया। इसी आदेश को चुनौती देने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ताओं के वकील, मिस्टर मनिंदर अरोड़ा ने तर्क दिया कि मृतक को पहले आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया था। दूसरी सजा के संबंध में, यह दलील दी गई कि 2015 में अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी के कारण आजीविका का साधन न होने पर मृतक को जीवित रहने के लिए पैसे उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उन्होंने तरसेम सिंह बनाम पंजाब राज्य और जगरूप सिंह बनाम पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड सहित अन्य फैसलों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि निजी कारणों से चेक बाउंस का विवाद निजी प्रकृति का है और यह “नैतिक अधमता” की श्रेणी में नहीं आता है।
इसके विपरीत, प्रतिवादियों के वकील, मिस्टर मनबीर सिंह बैथ ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य को छुपाया कि मृतक को उनकी दूसरी सजा के कारण बर्खास्त किया गया था। पंजाब सरकार के कार्मिक विभाग द्वारा जारी 5 अगस्त, 1998 के निर्देशों का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराए गए कर्मचारी को बर्खास्त किया जा सकता है। यह भी कहा गया कि चूंकि बर्खास्तगी नैतिक अधमता वाले अपराध के लिए थी, इसलिए कानूनी वारिस ग्रेच्युटी या लीव एनकैशमेंट (छुट्टी के बदले नकद भुगतान) के हकदार नहीं हैं।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने सेवा न्यायशास्त्र (Service Jurisprudence) के संदर्भ में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध की प्रकृति का विश्लेषण किया। कोर्ट ने पंजाब सरकार के कार्मिक विभाग द्वारा 24 जनवरी, 2023 को जारी स्पष्टीकरण का उल्लेख किया, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, पॉक्सो (POCSO) एक्ट और एनडीपीएस (NDPS) एक्ट जैसे नैतिक अधमता वाले अपराधों को सूचीबद्ध किया गया था।
जस्टिस बराड़ ने कहा:
“एनआई एक्ट के तहत अपराध को ऊपर सूचीबद्ध कानूनों के तहत अपराधों के समान नहीं माना जा सकता।”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बनाम पी. सौप्रमानिए (2019) का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि नैतिक अधमता में “नीचता, दुष्टता या भ्रष्टता” शामिल होती है।
ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1971 की धारा 4(6) के मुद्दे पर, कोर्ट ने नोट किया कि प्रतिवादियों ने यह दावा नहीं किया है कि चेक आधिकारिक क्षमता में जारी किए गए थे या कॉरपोरेशन को नुकसान पहुंचाने के लिए जारी किए गए थे। जस्टिस बराड़ ने कहा:
“यह प्रतिवादियों का मामला नहीं है कि जिन चेक के संबंध में मृतक के खिलाफ आपराधिक शिकायतें दर्ज की गई थीं, वे उन्होंने अपने लिए गैरकानूनी लाभ कमाने या प्रतिवादी-निगम को गैरकानूनी नुकसान पहुंचाने के लिए आधिकारिक क्षमता में जारी किए थे। इस प्रकार, मृतक पर कोई नैतिक अधमता का आरोप नहीं लगाया जा सकता।”
फैसला
हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि निजी क्षमता में जारी चेक के अनादरण के मामले को “नैतिक अधमता” वाले अपराध के रूप में वर्गीकृत करना उचित नहीं है।
कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- आदेश रद्द: 6 अक्टूबर, 2020 का बर्खास्तगी आदेश और 16 सितंबर, 2022 का अस्वीकृति आदेश रद्द और निरस्त किया जाता है।
- डीम्ड सर्विस: मृतक को 15 जून, 2022 को उनकी मृत्यु की तारीख तक सेवा में माना जाएगा।
- लाभों का भुगतान: प्रतिवादी-निगम को निर्देश दिया गया है कि वह याचिकाकर्ता नंबर 1 (विधवा) को ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट सहित सभी स्वीकार्य सेवा लाभ जारी करे। इसमें से पहले ही वितरित की जा चुकी 9,76,602 रुपये की राशि को समायोजित किया जाएगा।
- ब्याज: याचिका दायर करने की तारीख से वास्तविक भुगतान तक अंतर राशि पर 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज दिया जाएगा।
- अनुकंपा नियुक्ति: निगम को निर्देश दिया गया है कि वह याचिकाकर्ता नंबर 2 (पुत्र) के मामले पर मृतक कर्मचारी की मृत्यु के समय लागू नीति के अनुसार सख्ती से विचार करे।
केस टाइटल: राजविंदर कौर और अन्य बनाम पंजाब स्टेट सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन और अन्य
कोरम: जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़
केस नंबर: CWP-16093-2023 निर्णय की तिथि: 21 नवंबर, 2025




