“ऑडियो में वैवाहिक झगड़े दिखे, दहेज़ की मांग नहीं”: दिल्ली हाईकोर्ट ने दहेज़ मृत्यु मामले में पति को जमानत दी

दिल्ली हाईकोर्ट ने दहेज़ मृत्यु (Dowry Death) के एक मामले में आरोपी पति को नियमित जमानत दे दी है। कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा साक्ष्य के रूप में पेश की गई ऑडियो रिकॉर्डिंग में प्रथम दृष्टया (prima facie) पति-पत्नी के बीच झगड़े तो दिख रहे हैं, लेकिन इसमें दहेज़ की किसी विशिष्ट मांग का जिक्र नहीं है।

जस्टिस संजीव नरूला की पीठ ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 483 के तहत दायर जमानत याचिका को स्वीकार किया। यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (क्रूरता), 304B (दहेज़ मृत्यु) और 34 के तहत दर्ज किया गया था।

कोर्ट ने माना कि यद्यपि महिला की मृत्यु विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में हुई है, लेकिन यह साबित करना कि मृत्यु से “ठीक पहले” दहेज़ की मांग को लेकर क्रूरता की गई थी, यह ट्रायल का विषय है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता रोहित और मृतका शिवानी का विवाह 8 दिसंबर, 2022 को हुआ था। शादी के कुछ महीनों बाद ही, 3 जून, 2023 को शिवानी को डॉ. बीएसए अस्पताल में मृत लाया गया, जहाँ उसकी मृत्यु का कारण कथित तौर पर फांसी लगाना बताया गया।

मृत्यु के बाद दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 176 के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही की गई। इस दौरान मृतका के पिता ने आरोप लगाया कि रोहित और उसके परिवार ने दहेज़ के लिए शिवानी को प्रताड़ित किया, जिससे तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। इन आरोपों के आधार पर पुलिस थाना शाहबाद डेयरी में एफआईआर संख्या 564/2023 दर्ज की गई।

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शिकायतकर्ता ने पुलिस को कुछ तस्वीरें और एक ऑडियो क्लिप सौंपी, जो कथित तौर पर मृतका द्वारा भेजी गई थी। रोहित को 6 जून, 2023 को गिरफ्तार किया गया था।

पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता का पक्ष: रोहित की ओर से पेश हुए अधिवक्ता मनोज कुमार दुग्गल और आर्यन दुग्गल ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचा कि अभियोजन पक्ष जिस ऑडियो रिकॉर्डिंग और तस्वीरों पर निर्भर है, उसमें दहेज़ की कोई विशिष्ट मांग नहीं दिखाई देती।

बचाव पक्ष ने कहा कि यह सामग्री ज्यादा से ज्यादा “सामान्य वैवाहिक कलह या झगड़ों” की ओर इशारा करती है। उन्होंने तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 304B के तहत अपराध साबित करने के लिए कथित क्रूरता और मृत्यु के बीच जो “निकटवर्ती संबंध” (live link) होना चाहिए, वह यहाँ मौजूद नहीं है। साथ ही, यह भी बताया गया कि आरोपी पिछले दो वर्षों से अधिक समय से जेल में है और मामले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है।

अभियोजन पक्ष (राज्य) का तर्क: राज्य की ओर से एपीपी युद्धवीर सिंह चौहान ने जमानत का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह एक नवविवाहिता की असामान्य मृत्यु का मामला है जो शादी के सात साल के भीतर हुई है, इसलिए धारा 304B और 498A के कड़े प्रावधान लागू होते हैं।

सरकारी वकील ने तर्क दिया कि ऑडियो क्लिप और तस्वीरों में “लगातार उत्पीड़न और शारीरिक हिंसा” दिखाई दे रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सह-आरोपियों (ससुराल वालों) को मिली अग्रिम जमानत का लाभ पति को नहीं मिलना चाहिए क्योंकि वह मुख्य आरोपी है।

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हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

जस्टिस नरूला ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B के तहत ‘दहेज़ मृत्यु’ की उपधारणा (presumption) पर विचार किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस उपधारणा को लागू करने के लिए अभियोजन पक्ष को प्रथम दृष्टया तीन बातें साबित करनी होती हैं:

  1. मृत्यु असामान्य परिस्थितियों में हुई हो।
  2. मृत्यु विवाह के सात वर्षों के भीतर हुई हो।
  3. मृत्यु से “ठीक पहले” महिला के साथ दहेज़ की मांग के संबंध में क्रूरता या उत्पीड़न किया गया हो।

कोर्ट ने पाया कि पहले दो तत्वों पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन तीसरे तत्व पर विचार करना आवश्यक है।

ऑडियो क्लिप पर कोर्ट की टिप्पणी: अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत ऑडियो क्लिप के ट्रांसक्रिप्ट का विश्लेषण करते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

“हालांकि, ऑडियो क्लिप के ट्रांसक्रिप्ट को प्रथम दृष्टया पढ़ने पर, जैसा कि अभियोजन पक्ष ने भी स्वीकार किया है, दहेज़ से संबंधित मांगे सामने नहीं आती हैं। ट्रांसक्रिप्ट झगड़ों और मारपीट के आरोपों को दर्शाता है, लेकिन इसमें आवेदक (पति) द्वारा दहेज़ की मांग का कोई स्पष्ट या विशिष्ट संदर्भ नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि मृत्यु से पहले दहेज़ की मांग को लेकर पुलिस या किसी अन्य प्राधिकरण के पास कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई थी।

लंबे समय तक हिरासत: कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आवेदक 1 अक्टूबर, 2025 तक लगभग दो साल और पांच महीने जेल में बिता चुका है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए जस्टिस नरूला ने कहा कि जब जांच पूरी हो चुकी हो और आरोपी से अब पूछताछ की आवश्यकता न हो, तो लंबे समय तक जेल में रखना उचित नहीं है। जमानत को सजा के तौर पर नहीं रोका जाना चाहिए।

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फैसला

तमाम तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहित की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने उसे 25,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने का निर्देश दिया।

जमानत की शर्तों में शामिल हैं:

  • आरोपी गवाहों को डराएगा या धमकाएगा नहीं।
  • वह ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ेगा।
  • उसे हर तीन महीने में एक बार संबंधित पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा।

कोर्ट ने अंत में स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां केवल जमानत याचिका पर निर्णय लेने के लिए हैं और इनका ट्रायल के गुण-दोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

केस विवरण:

  • केस शीर्षक: रोहित बनाम राज्य (एन.सी.टी. ऑफ दिल्ली)
  • केस नंबर: Bail Appln. 3329/2025
  • साइटेशन: 2025:DHC:10412
  • पीठ: जस्टिस संजीव नरूला

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