ब्रेकअप होने पर सहमति से बने संबंधों को ‘रेप’ नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने वकील के खिलाफ दर्ज बलात्कार का केस रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि दो वयस्कों के बीच लंबे समय तक सहमति से शारीरिक संबंध रहे हों, तो रिश्ता टूटने या शादी न होने पर इसे पूर्व-प्रभाव (retrospectively) से बलात्कार (Rape) की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि असफल रिश्तों को आपराधिक अपराधों में बदलने के लिए कानून का दुरुपयोग करना चिंताजनक है और इसकी निंदा की जानी चाहिए। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ एक वकील के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376, 376(2)(n) और 507 के तहत दर्ज एफआईआर (FIR) और चार्जशीट को रद्द कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) के 6 मार्च, 2025 के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने आरोपी (अपीलकर्ता) द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

मामले के तथ्यों के अनुसार, शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) एक विवाहित महिला है जो वैवाहिक विवादों के कारण मई 2020 से अपने पति से अलग रह रही थी। 27 जनवरी, 2022 को अपने पति के खिलाफ भरण-पोषण की कार्यवाही के दौरान वह अपीलकर्ता वकील से मिली। समय के साथ उनके बीच घनिष्ठ संबंध बन गए।

अभियोजन पक्ष का आरोप था कि अपीलकर्ता ने महिला को शादी का प्रस्ताव दिया, जिसे महिला ने शुरुआत में अपने वैवाहिक अतीत के कारण मना कर दिया। हालांकि, आरोप है कि 12 मार्च, 2022 को अपीलकर्ता ने शादी का आश्वासन देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। यह संबंध करीब तीन साल तक चला, जिसके दौरान महिला कई बार गर्भवती हुई और गर्भपात भी हुआ।

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31 अगस्त, 2024 को महिला ने सिटी चौक पुलिस स्टेशन, छत्रपति संभाजीनगर में एफआईआर दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि 20 मई, 2024 को अपीलकर्ता ने शादी करने से इनकार कर दिया और उसे धमकी दी। उसका दावा था कि उसकी सहमति शादी के “झूठे वादे” पर आधारित थी।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता का पक्ष: अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उन्हें झूठा फंसाया गया है। उनकी मुख्य दलीलें थीं:

  • शिकायतकर्ता एक उच्च-शिक्षित महिला है, जो पहले से विवाहित है और उसकी एक नाबालिग बेटी भी है। उसके और उसके पति के बीच कोई तलाक नहीं हुआ है।
  • दोनों के बीच तीन साल तक संबंध रहे, लेकिन इस दौरान कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई।
  • अगस्त 2024 में अपीलकर्ता द्वारा 1,50,000 रुपये की मांग पूरी करने से इनकार करने पर गुस्से में आकर यह एफआईआर दर्ज कराई गई।

राज्य और प्रतिवादी का पक्ष: राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का समर्थन करते हुए कहा कि आरोपों से प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध (cognizable offence) बनता है। यह तर्क दिया गया कि बचाव पक्ष के दावों की सच्चाई परीक्षण (Trial) का विषय है और इसे प्रारंभिक चरण में रद्द नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने मामले के तथ्यों और आईपीसी की धारा 376(2)(n) (एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार) के तहत लगाए गए आरोपों की विस्तार से जांच की।

रिश्ते की प्रकृति पर: पीठ ने पाया कि यह संबंध तीन साल तक चला और दोनों पक्ष भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे। कोर्ट ने कहा:

“हम पाते हैं कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां अपीलकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 2 को केवल शारीरिक सुख के लिए लुभाया और फिर गायब हो गया। यह संबंध तीन साल तक चला… ऐसे मामलों में, एक चलते हुए रिश्ते के दौरान हुई शारीरिक अंतरंगता को केवल इसलिए बलात्कार नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह रिश्ता शादी में नहीं बदल सका।”

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देरी और महिला की वैवाहिक स्थिति: कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि महिला ने शुरुआत में शादी के विचार का विरोध किया था, फिर भी वह अपीलकर्ता से मिलती रही और शारीरिक संबंध बनाती रही। एफआईआर दर्ज करने में देरी (अंतिम कथित घटना के लगभग 3 महीने बाद) को भी महत्वपूर्ण माना गया।

“यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रासंगिक समय पर प्रतिवादी नंबर 2 की शादी कायम थी (उसका तलाक नहीं हुआ था)। रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखने से यह स्पष्ट होता है कि पक्षों के बीच संबंध सहमति से थे…”

कानून के दुरुपयोग पर: जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने फैसले में लिखा कि टूटे हुए रिश्तों को अपराधीकरण के दायरे में लाना सही नहीं है:

“हर खटास भरे रिश्ते को बलात्कार के अपराध में बदलना न केवल अपराध की गंभीरता को कम करता है, बल्कि आरोपी पर कभी न मिटने वाला कलंक और घोर अन्याय भी थोपता है… इस संबंध में आपराधिक न्याय तंत्र का दुरुपयोग गहरी चिंता का विषय है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।”

महत्वपूर्ण पूर्व निर्णय (Precedents): कोर्ट ने अपने तर्क के समर्थन में हाल ही के कई फैसलों का हवाला दिया:

  1. महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024): शारीरिक संबंध और शादी के झूठे वादे के बीच सीधा संबंध होना चाहिए।
  2. प्रशांत बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य (2025): सहमति वाले जोड़ों के बीच महज ‘ब्रेकअप’ होने से आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती।
  3. रजनीश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025): यदि कोई महिला परिणामों को जानते हुए स्वेच्छा से यौन संबंध बनाने के लिए सहमत होती है, तो पुरुष को बलात्कार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि हाईकोर्ट द्वारा बीएनएसएस (BNSS) की धारा 528 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार करना सही नहीं था। पीठ ने कहा कि यह “सहमति से बने रिश्ते का बाद में खटास भरे रिश्ते में बदल जाने का एक क्लासिक उदाहरण है।”

अदालत ने अपील को स्वीकार करते हुए 6 मार्च, 2025 के हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर संख्या 294/2024 और चार्जशीट संख्या 143/2024 को रद्द (Quash) कर दिया गया।

साथ ही, कोर्ट ने मामले में न्याय मित्र (Amicus Curiae) के रूप में नियुक्त एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड सुश्री राधिका गौतम को 15,000 रुपये का मानदेय देने का निर्देश दिया।

केस विवरण

  • केस शीर्षक: समाधान बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य
  • केस संख्या: क्रिमिनल अपील नंबर 5001/2025
  • कोरम: जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन

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