त्वरित सुनवाई का अधिकार एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की कठोरता को कम करता है: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दी जमानत

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि “आरोपी के त्वरित सुनवाई (Speedy Trial) के मौलिक अधिकार के परिप्रेक्ष्य में एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 37 की कठोर शर्तों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए।” न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए वाणिज्यिक मात्रा (Commercial Quantity) के मादक पदार्थ से जुड़े मामले में आरोपी को नियमित जमानत प्रदान की।

न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की पीठ ने बबलू उर्फ बल्लू बनाम पंजाब राज्य (CRM-M No.64857 of 2025) के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि बिना किसी उचित कारण के लंबी कैद, प्री-ट्रायल हिरासत को दंडात्मक कारावास में बदल देती है।

न्यायालय के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या मुकदमे के निष्कर्ष में देरी को देखते हुए, नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) की धारा 37 के तहत प्रतिबंध के बावजूद याचिकाकर्ता को नियमित जमानत दी जा सकती है। न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए व्यवस्था दी कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई का अधिकार धारा 37 के वैधानिक प्रतिबंध को कमजोर (Dilute) करता है, विशेषकर जब मुकदमा लंबा खिंच रहा हो।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता बबलू उर्फ बल्लू ने एफआईआर संख्या 60, दिनांक 25 जुलाई 2025 के संबंध में नियमित जमानत की मांग की थी। यह मामला पुलिस थाना डी-डिविजन, अमृतसर में एनडीपीएस एक्ट की धारा 21-सी (बाद में धारा 29, 61 और 85 जोड़ी गई) के तहत दर्ज किया गया था।

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अभियोजन पक्ष का आरोप था कि याचिकाकर्ता और उसके सह-आरोपी मिंटू को रेलवे क्वार्टर्स, पुरानी लकड़ी मंडी, अमृतसर के पास संदेह के आधार पर पकड़ा गया था। तलाशी के दौरान सह-आरोपी मिंटू के पास से कथित तौर पर 279 ग्राम हेरोइन बरामद हुई। याचिकाकर्ता को 25 जुलाई 2025 को गिरफ्तार किया गया था।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता का पक्ष: याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी 25 जुलाई 2025 से हिरासत में है। यह भी कहा गया कि एनडीपीएस एक्ट के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है, जिससे अभियोजन का मामला त्रुटिपूर्ण है। वकील ने जोर देकर कहा कि कथित रूप से बरामद 279 ग्राम हेरोइन, अधिनियम के तहत निर्दिष्ट गैर-वाणिज्यिक मात्रा (non-commercial quantity) की सीमा से “मामूली रूप से अधिक” है।

राज्य का पक्ष: सरकारी वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए आरोपों की गंभीरता और मादक पदार्थ की वाणिज्यिक मात्रा की बरामदगी का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यह याचिका एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की कठोरता से बाधित है। राज्य ने 20 नवंबर 2025 का हिरासत प्रमाण पत्र (Custody Certificate) भी पेश किया, जिसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता 8 अन्य मामलों में शामिल है।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति सुमीत गोयल ने नोट किया कि हालांकि चालान 17 नवंबर 2025 को पेश किया जा चुका है, लेकिन अभी आरोप तय (Charges framed) नहीं किए गए हैं और 13 अभियोजन गवाहों की गवाही होनी बाकी है। कोर्ट ने कहा, “यह निर्विवाद है कि मुकदमे के निष्कर्ष में लंबा समय लगेगा।”

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एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 बनाम त्वरित सुनवाई: न्यायालय ने अपने पिछले फैसले कुलविंदर बनाम पंजाब राज्य (2025:PHHC:002695) और मोहमद मुस्लिम @ हुसैन बनाम राज्य (NCT ऑफ दिल्ली) सहित सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया। न्यायमूर्ति गोयल ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की:

“आरोपी के त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार की पृष्ठभूमि में एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 37 की कठोर शर्तों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए। न्यायिक प्रक्रिया में अनुचित देरी से जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को निरर्थक नहीं किया जा सकता…”

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि किसी व्यक्ति को धारा 37 की आड़ में अनिश्चित काल तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता। जहां उचित समय के भीतर मुकदमा समाप्त होने में विफल रहता है, वहां “एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत बनाए गए वैधानिक प्रतिबंध को दरकिनार करते हुए सशर्त स्वतंत्रता पर विचार किया जाना चाहिए।”

आपराधिक इतिहास पर टिप्पणी: याचिकाकर्ता के 8 अन्य मामलों में शामिल होने की राज्य की दलील पर, न्यायालय ने कहा कि हालांकि जमानत पर विचार करते समय पूर्ववृत्त (Antecedents) का ध्यान रखा जाना चाहिए, लेकिन केवल यही तथ्य जमानत देने से इनकार करने के लिए पर्याप्त नहीं है, यदि गुण-दोष के आधार पर मामला बनता है। इस संबंध में कोर्ट ने मौलाना मोहम्मद अमीर रशादी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया।

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निर्णय

हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को नियमित जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, जो संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM)/ड्यूटी मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के अधीन होगा। न्यायालय ने निम्नलिखित कड़ी शर्तें भी लगाईं:

  • याचिकाकर्ता स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगा और न ही सबूतों के साथ छेड़छाड़ करेगा।
  • वह अपना पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में जमा कराएगा।
  • उसे हर महीने के पहले कार्यदिवस पर संबंधित कोर्ट में एक हलफनामा (Affidavit) देना होगा कि वह जमानत पर रिहा होने के बाद किसी भी अपराध में शामिल नहीं हुआ है।
  • यदि वह किसी नए अपराध में शामिल पाया जाता है, तो राज्य को तत्काल उसकी जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करना होगा।

मामले का विवरण:

  • केस शीर्षक: बबलू उर्फ बल्लू बनाम पंजाब राज्य
  • केस नंबर: CRM-M No.64857 of 2025
  • कोरम: न्यायमूर्ति सुमीत गोयल
  • साइटेशन: 2025:PHHC:163124

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