दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: PMLA की धारा 17 के तहत तलाशी के लिए पूर्व शिकायत में व्यक्ति का नाम होना अनिवार्य नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal) द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि PMLA की धारा 17 के तहत तलाशी (Search) केवल उन व्यक्तियों के परिसरों तक सीमित नहीं है जिनका नाम किसी पूर्व अनुसूचित अपराध की रिपोर्ट या शिकायत में आरोपी के रूप में दर्ज हो।

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की खंडपीठ ने 21 नवंबर, 2025 को दिए गए अपने फैसले में PMLA के तहत तलाशी और जब्ती के प्रावधानों के दायरे की व्याख्या की और मामले को दोबारा विचार के लिए ट्रिब्यूनल के पास भेज दिया। यह मामला दिवंगत अम्लेंदु पांडे के परिसर से हुई जब्ती से जुड़ा है।

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने PMLA, 2002 की धारा 42 के तहत अपील दायर कर PMLA अपीलीय न्यायाधिकरण के 21 मई, 2019 के आदेश को चुनौती दी थी। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में प्रतिवादी अम्लेंदु पांडे (अब दिवंगत, जिनका प्रतिनिधित्व उनके कानूनी प्रतिनिधि कर रहे हैं) की जब्त संपत्तियों को डी-फ्रीज (de-freezing) करने का निर्देश दिया था।

हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या जब्त संपत्ति को अपने पास रखने (retention) की पुष्टि करना सही था, जबकि ट्रिब्यूनल ने यह तर्क दिया था कि उस समय प्रतिवादी के खिलाफ कोई “अभियोजन शिकायत” (prosecution complaint) नहीं थी। हाईकोर्ट ने माना कि ट्रिब्यूनल का यह तर्क कानून के प्रावधानों, विशेष रूप से PMLA की धारा 17 को “गलत पढ़ने” (misreading) पर आधारित था।

मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले की जड़ें जनवरी 2007 में आयकर विभाग द्वारा हसन अली खान और उनके सहयोगियों के ठिकानों पर की गई छापेमारी से जुड़ी हैं। इन जांचों में कई विदेशी बैंक खातों का खुलासा हुआ था, जिसके बाद ED ने भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 420, 471 और भारतीय पासपोर्ट अधिनियम की धाराओं के तहत अनुसूचित अपराधों के लिए आपराधिक मामला दर्ज किया था।

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हसन अली खान और अन्य की गिरफ्तारी के बाद 2011 में अभियोजन शिकायत दर्ज की गई थी, लेकिन ED ने जांच जारी रखी। इसी क्रम में 9 फरवरी, 2016 को PMLA की धारा 17 के तहत प्रतिवादी अम्लेंदु पांडे के परिसर की तलाशी ली गई। इस तलाशी के दौरान एक लैपटॉप, पेन-ड्राइव, मोबाइल फोन और 26.30 लाख रुपये नकद बरामद किए गए।

न्यायनिर्णायक प्राधिकरण (Adjudicating Authority) ने 28 जून, 2016 को इन वस्तुओं की जब्ती की पुष्टि की। इसके खिलाफ पांडे ने अपीलीय न्यायाधिकरण में अपील की थी। अपील के लंबित रहने के दौरान 2017 में पांडे का निधन हो गया और उनकी बेटी को कानूनी प्रतिनिधि बनाया गया।

अपीलीय न्यायाधिकरण का आदेश

अपीलीय न्यायाधिकरण ने 21 मई, 2019 को अपील स्वीकार करते हुए संपत्ति को मुक्त करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में नोट किया कि ट्रिब्यूनल “जाहिर तौर पर इस तथ्य से प्रभावित हो गया कि प्रतिवादी अम्लेंदु पांडे के खिलाफ कोई ‘अभियोजन शिकायत’ नहीं थी।”

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि ट्रिब्यूनल ने इस आधार पर फैसला दिया, जबकि “विद्वान अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष दायर अपनी अपील में प्रतिवादी द्वारा ऐसी कोई दलील भी नहीं दी गई थी।”

पक्षों की दलीलें

ED की ओर से पेश विशेष वकील श्री जोहेब हुसैन ने तर्क दिया कि अपील के लंबित रहने के दौरान 17 जुलाई, 2018 को एक पूरक शिकायत (supplementary complaint) दायर की गई थी, जिसमें यह उल्लेख था कि प्रतिवादी ने हसन अली खान की मदद करने की बात स्वीकार की थी।

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वहीं, प्रतिवादी ने मूल रूप से न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के समक्ष तर्क दिया था कि बरामद नकदी खेती और आम के बगीचे से हुई वैध कमाई थी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं थी।

हाईकोर्ट का विश्लेषण: PMLA की धारा 17 का दायरा

खंडपीठ ने PMLA की धारा 17 (तलाशी और जब्ती) और धारा 5 (संपत्ति की कुर्की) के बीच के अंतर का विस्तृत विश्लेषण किया।

अदालत ने कहा कि धारा 17 का दायरा धारा 5 से व्यापक है। जजों ने कहा: “PMLA की धारा 17 के तहत किसी भी तलाशी और जब्ती का दायरा बहुत व्यापक है क्योंकि यह केवल अपराध की आय (proceeds of crime) रखने से संबंधित नहीं है, बल्कि यह किसी भी ऐसे व्यक्ति को अपने दायरे में लेता है जिसने कोई ऐसा कार्य किया है जो मनी लॉन्ड्रिंग का गठन करता है या जो मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित कोई रिकॉर्ड रखता है या अपराध से संबंधित कोई संपत्ति रखता है।”

ट्रिब्यूनल के इस तर्क पर कि प्रतिवादी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया: “PMLA की धारा 17 यह निर्धारित नहीं करती है कि तलाशी केवल उस व्यक्ति के परिसर में की जा सकती है जिसके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज की गई हो या संबंधित मजिस्ट्रेट अदालत को रिपोर्ट भेजी गई हो। पूर्व-शर्त ‘शिकायत के पूर्व संस्थान या धारा 157 Cr.P.C के तहत रिपोर्ट भेजने’ की है। ऐसा कोई अनिवार्य नियम नहीं है कि तलाशी भी उसी व्यक्ति की होनी चाहिए जिसे ऐसी रिपोर्ट या शिकायत में आरोपी दिखाया गया है।”

अदालत ने आगे कहा: “एक व्यक्ति अपराध की आय (proceeds of crime) के कब्जे में हो सकता है, लेकिन फिर भी वह किसी अनुसूचित अपराध या मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का आरोपी नहीं हो सकता है। किसी दी गई स्थिति में, एक व्यक्ति बिना किसी आपराधिक इरादे के अपराध की आय का प्राप्तकर्ता हो सकता है और इसलिए, यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा कोई भी व्यक्ति पिछली शिकायत या रिपोर्ट में आरोपी हो।”

अदालत ने पाया कि चूंकि कथित सह-आरोपियों के खिलाफ 2011 में शिकायत दर्ज की जा चुकी थी, इसलिए 2016 की तलाशी के लिए कानूनी शर्तें पूरी थीं। प्रतिवादी का यह तर्क कि मृतक के खिलाफ कोई शिकायत लंबित नहीं थी, अदालत द्वारा “पूरी तरह से भ्रामक और गलत” करार दिया गया।

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फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 मई, 2019 के विवादित आदेश को रद्द कर दिया।

हालांकि, प्रतिवादी के वकील श्री एस.के. दास ने निवेदन किया कि ट्रिब्यूनल ने नकदी के कब्जे की वैधता और अपराध से उसके संबंध के बारे में अन्य आधारों पर विचार नहीं किया था। ED के वकील ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई कि मामले पर गुणों-दोषों (merits) के आधार पर पुनर्विचार किया जाए।

नतीजतन, हाईकोर्ट ने मामले को अपीलीय न्यायाधिकरण को वापस (remand) भेज दिया ताकि “अपील पर नए सिरे से विचार किया जा सके और दोनों पक्षों को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद कानून के अनुसार निर्णय लिया जा सके।”

उपरोक्त शर्तों के साथ अपील का निपटारा किया गया।

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