दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उन याचिकाकर्ताओं से सवाल किया जो 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों को लेकर विभिन्न राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कथित भड़काऊ भाषणों पर एफआईआर दर्ज कराने और स्वतंत्र एसआईटी जांच की मांग कर रहे हैं। अदालत ने पूछा कि जब इसी तरह की याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित है, तो वे वहां क्यों नहीं जा रहे।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि शीर्ष अदालत एक समान राहतों वाली याचिका पर विचार कर रही है, इसलिए दो अलग-अलग अदालतों में एक ही मुद्दे पर समानांतर सुनवाई की आवश्यकता नहीं है।
पीठ ने कहा, “क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आप सुप्रीम कोर्ट जाएं और वहीं अपनी दलीलें रखें? आप सभी एक ही सामग्री के आधार पर यही राहत चाहते हैं। फिर दो जगह सुनवाई क्यों हो? आप वहां पक्षकार बनकर अपनी बात रख सकते हैं। इसे यहां लंबित रखने की क्या जरूरत है?”
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक राजत नायर ने कहा कि सीपीएम नेता ब्रिंदा करात की याचिका—जिसमें समान प्रार्थनाएँ थीं—को पहले मजिस्ट्रेट ने धारा 156(3) दंड प्रक्रिया संहिता के तहत खारिज कर दिया था और हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और वह याचिका अब भी लंबित है।
उन्होंने बताया कि मौजूदा बैच की याचिकाओं में मांगी गई राहतें उसी लंबित याचिका में शामिल हैं।
याचिकाकर्ता शैख मुजतबा फ़ारूक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि वह राज्य के बाहर के अधिकारियों वाली स्वतंत्र एसआईटी की मांग कर रहे हैं, और ऐसी राहत सिर्फ एक संवैधानिक अदालत ही दे सकती है।
अदालत ने सभी याचिकाओं को 11 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
फरवरी 2020 में नागरिकता कानून (सीएए) विरोध प्रदर्शनों के बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हुई थी और करीब 700 लोग घायल हुए थे। इनसे संबंधित कई याचिकाएँ अभी हाईकोर्ट में लंबित हैं, जिनमें शामिल हैं:
- राजनीतिक नेताओं के खिलाफ एफआईआर की मांग — जिनमें भाजपा नेता अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा और अभय वर्मा का नाम शामिल है।
- लॉयर्स वॉयस की जनहित याचिका — जिसमें कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, आप विधायक अमानतुल्लाह खान, एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी, वॉरिस पठान, हर्ष मंदर, स्वरा भास्कर, उमर खालिद, पूर्व न्यायाधीश बीजी कोलसे पाटिल और अन्य के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
- अजय गौतम की याचिका — जिसमें यूएपीए के तहत एनआईए जांच की मांग की गई है ताकि सीएए विरोध के पीछे कथित “राष्ट्र-विरोधी तत्वों” की भूमिका पता चल सके।
- जमीयत उलेमा-ए-हिंद की पीआईएल — जो स्वतंत्र एसआईटी गठन की मांग करती है।
दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया कि उसने पहले ही अपराध शाखा के तहत तीन एसआईटी बनाई है और न तो पुलिसकर्मियों की संलिप्तता का कोई सबूत मिला है और न ही राजनीतिक नेताओं द्वारा हिंसा भड़काने के संकेत मिले हैं।
पुलिस का कहना है कि उसकी प्रारंभिक जांच से यह सामने आता है कि यह हिंसा कोई “आकस्मिक या स्वतःस्फूर्त” घटना नहीं थी, बल्कि सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की “सोची-समझी साज़िश” का हिस्सा थी।
पुलिस ने बताया कि 757 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें 273 मामलों में जांच लंबित है और 250 मामलों में मुकदमा चल रहा है।
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा था कि नेताओं के कथित भड़काऊ भाषणों पर एफआईआर दर्ज करने संबंधी याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर जल्द फैसला किया जाए। अब वही मुद्दा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों के समक्ष लंबित है।




