सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: 20 मई 2025 से पहले नियुक्त जजों को दूसरे राज्यों की न्यायिक सेवा परीक्षा के लिए 3 साल की वकालत से छूट

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों के लिए दूसरे राज्यों की न्यायिक सेवाओं में आवेदन करने की योग्यता को लेकर एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण जारी किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन न्यायिक अधिकारियों (Judicial Officers) की नियुक्ति 20 मई 2025 के फैसले से पहले हो चुकी है, उन पर 3 साल की वकालत (Bar Practice) का अनिवार्य नियम लागू नहीं होगा।

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन बनाम भारत संघ (रिट याचिका (सिविल) संख्या 1022/1989) के मामले में पारित किया।

संक्षिप्त विवरण

सुप्रीम कोर्ट ने एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह राहत दी, जिसमें सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद पर नियुक्ति के लिए वकील के रूप में तीन साल के अनुभव की अनिवार्य शर्त से छूट मांगी गई थी। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई न्यायिक अधिकारी 20 मई 2025 के फैसले से पहले नियुक्त हुआ है और वह किसी अन्य राज्य में न्यायिक सेवा के लिए आवेदन करना चाहता है, तो उसे बार में 3 साल की प्रैक्टिस की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, इसके लिए शर्त यह है कि उन्होंने अपने वर्तमान राज्य में 3 साल की सेवा पूरी कर ली हो। इसके अलावा, कोर्ट ने ई-कोर्ट टेक्निकल स्टाफ (e-Court Technical Staff) के नियमितीकरण के संबंध में भी निर्देश जारी किए हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक न्यायिक अधिकारी द्वारा दायर आवेदन (I.A. Nos. 278517 & 278518 of 2025) से उपजा था। आवेदिका ने सुप्रीम कोर्ट के 20 मई 2025 के फैसले में दिए गए निर्देशों से छूट की मांग की थी। उस फैसले के पैरा 89 (ii), (vii) और (viii) के तहत सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए आवेदन करने हेतु वकील के रूप में तीन साल का अनुभव अनिवार्य कर दिया गया था।

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आवेदिका ने अपने मामले में “विशिष्ट तथ्यों” (peculiar facts) का हवाला दिया:

  • वे 28 जुलाई, 2018 को बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में अनंतिम रूप से (provisionally) पंजीकृत हुई थीं।
  • उस समय, न्यायिक सेवा में जाने के लिए वकालत के पूर्व अनुभव की कोई आवश्यकता नहीं थी।
  • उनका चयन मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में हुआ और 19 नवंबर, 2019 को उन्हें सिविल जज (एंट्री लेवल) के रूप में नियुक्त किया गया।
  • वे पिछले छह वर्षों से एक न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्य कर रही हैं।
  • समस्या तब उत्पन्न हुई जब उन्होंने अन्य राज्यों में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए आवेदन करना चाहा, लेकिन नए नियमों के तहत वह अयोग्य हो गईं क्योंकि उनके पास न्यायपालिका में शामिल होने से पहले 3 साल की वकालत का अनुभव नहीं था।

दलीलें और कोर्ट की टिप्पणी

आवेदिका के सामने मुख्य कानूनी बाधा 20 मई 2025 के फैसले में तय किए गए योग्यता मानदंडों का भूतलक्षी प्रभाव (retrospective application) था। चूंकि वह नामांकन के तुरंत बाद सेवा में शामिल हो गई थीं, इसलिए वह तकनीकी रूप से “वकील के रूप में तीन साल के अभ्यास” की शर्त को पूरा नहीं कर सकती थीं, भले ही उनके पास एक सिटिंग जज के रूप में बेहतर अनुभव था।

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पीठ ने कहा कि यह आवेदन “20.05.2025 के फैसले में इस कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के कारण दायर किया गया है… क्योंकि उक्त फैसले के माध्यम से सिविल जज, जूनियर डिवीजन के पद पर आवेदन करने के लिए वकील के रूप में तीन साल का अनुभव अनिवार्य कर दिया गया है।”

कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने आवेदिका के अनुभव की वैधता को स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा, “हम पाते हैं कि चूंकि आवेदिका पहले ही छह साल की अवधि के लिए न्यायिक अधिकारी के रूप में काम कर चुकी हैं, इसलिए उक्त शर्त उन पर लागू नहीं होगी।”

यह मानते हुए कि यह मुद्दा अन्य समान रूप से स्थित न्यायिक अधिकारियों को भी प्रभावित कर सकता है, कोर्ट ने केवल व्यक्तिगत राहत देने के बजाय एक सामान्य स्पष्टीकरण जारी किया।

मुख्य निर्देश:

  1. वकालत के अनुभव से छूट: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 20 मई 2025 के फैसले से पहले नियुक्त किए गए न्यायिक अधिकारियों को बार में तीन साल के अभ्यास की आवश्यकता नहीं है।
  2. छूट की शर्त: यह छूट तब लागू होगी जब ऐसे अधिकारी किसी अन्य राज्य में न्यायिक सेवाओं के लिए आवेदन करते हैं।
  3. सेवा अवधि की अनिवार्यता: कोर्ट ने एक परंतु (proviso) जोड़ते हुए कहा: “हालांकि, यह इस शर्त के अधीन है कि वे अपने वर्तमान राज्य में तीन साल की सेवा पूरी कर लें।”

सुप्रीम कोर्ट ने इन शर्तों के साथ I.A. No. 278517 of 2025 को अनुमति प्रदान की।

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अन्य महत्वपूर्ण निर्देश

ई-कोर्ट टेक्निकल स्टाफ का नियमितीकरण (I.A. No. 184071/2025): कोर्ट ने विभिन्न हाईकोर्ट्स और ट्रायल कोर्ट्स में काम करने वाले ई-कोर्ट टेक्निकल स्टाफ के अवशोषण (absorption) और नियमितीकरण से संबंधित मामले पर भी सुनवाई की।

  • दलीलें: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गोपाल शंकरनारायणन ने आवेदकों की ओर से दलील दी कि 14 हाईकोर्ट्स पहले ही ऐसे कर्मचारियों को नियमित कर चुके हैं। उन्होंने 16 मई, 2025 के फैसले (2025 SCC Online SC 1146) के संदर्भ में आवेदन के निपटारे की प्रार्थना की।
  • निर्देश: कोर्ट ने पाया कि उचित निर्देश जारी करने के लिए सभी पक्षों का जवाब आवश्यक है। कोर्ट ने उन सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और हाईकोर्ट्स को, जिन्होंने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है, छह सप्ताह के भीतर अपना हलफनामा (affidavit) दाखिल करने का निर्देश दिया।

रजिस्ट्रार को इस आदेश की सूचना सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/प्रशासकों और सभी हाईकोर्ट्स के रजिस्ट्रार जनरल को भेजने का निर्देश दिया गया है।

रिकॉल एप्लिकेशन: कोर्ट ने 14 अगस्त, 2025 के आदेश को वापस लेने (recall) की मांग करने वाले आवेदन (I.A. No. 286093 of 2025) को स्वीकार कर लिया।

ई-कोर्ट स्टाफ के मामले को आठ सप्ताह बाद आगे के निर्देशों के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

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