दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पति को ‘क्रूरता’ (Cruelty) के आधार पर तलाक की मंजूरी दे दी है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस रेणु भटनागर की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता ने क्रूरता के आरोपों को साबित कर दिया है, तो केवल प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा लगाए गए अप्रमाणित आरोपों के आधार पर “Clean Hands” (साफ हाथों) के सिद्धांत का हवाला देकर उसे राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट के समक्ष मुख्य सवाल यह था कि क्या फैमिली कोर्ट ने क्रूरता को न मानकर और ‘Clean Hands’ के सिद्धांत का उपयोग करके पति की याचिका को खारिज कर सही किया था। हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 23(1)(a), जिसमें ‘Clean Hands’ का सिद्धांत निहित है, का उद्देश्य किसी पक्ष को अपनी ही गलती का लाभ उठाने से रोकना है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि यदि तलाक का आधार स्थापित हो चुका है और याचिकाकर्ता ने विवाह टूटने में कोई वैधानिक अपराध नहीं किया है, तो भी उसे तलाक न दिया जाए। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और विवाह विच्छेद का आदेश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) का विवाह 1 मार्च 2016 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। वैवाहिक जीवन में कलह के कारण, पति ने 24 मार्च 2021 को क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका दायर की। पति ने पत्नी पर मानसिक क्रूरता के कई गंभीर आरोप लगाए, जिनमें शामिल हैं:
- दिसंबर 2016 में पत्नी द्वारा यह खुलासा करना कि यह शादी उसकी मर्जी के खिलाफ थी।
- जुलाई 2017 में पति के बुजुर्ग माता-पिता से अलग रहने की मांग को लेकर आत्महत्या की धमकी देना।
- अगस्त 2018 में अपने नाम पर नया घर खरीदने की मांग करना और पति पर चाय का कप फेंकना।
- पति की मां को ‘लंगड़ी’ कहकर अपमानित करना और घर छोड़ने की धमकी देना।
- अक्टूबर 2019 से शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना।
- जनवरी 2020 में बिना किसी कारण के ससुराल छोड़कर चले जाना।
फैमिली कोर्ट ने 20 मार्च 2025 को पति की याचिका को खारिज कर दिया था। निचली अदालत का तर्क था कि पति ‘साफ हाथों’ (Clean Hands) से कोर्ट नहीं आया है क्योंकि वह पत्नी द्वारा लगाए गए दहेज की मांग के आरोपों का संतोषजनक खंडन नहीं कर सका।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता (पति) का पक्ष: पति के वकील ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने उन “निर्विवाद और निरंतर साक्ष्यों” की अनदेखी की जो पत्नी द्वारा की गई मानसिक क्रूरता को साबित करते थे। उन्होंने कहा कि निचली अदालत ने घटनाओं को समग्र रूप से देखने के बजाय उन्हें अलग-थलग करके देखा, जिससे न्याय नहीं हो सका। ‘Clean Hands’ के मुद्दे पर, पति ने तर्क दिया कि लिखित बयान में केवल दहेज के आरोप लगा देना, बिना किसी सबूत के, उसके दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।
प्रतिवादी (पत्नी) का पक्ष: पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले का समर्थन किया और आरोप लगाया कि पति अपनी गलतियों को छिपाने के लिए तलाक मांग रहा है। उसने दावा किया कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और ससुर ने उसकी गरिमा भंग करने का प्रयास किया, जिसके कारण उसे ससुराल छोड़ना पड़ा।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
1. मानसिक क्रूरता पर: हाईकोर्ट ने कहा कि ‘क्रूरता’ शब्द को कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के वी. भगत बनाम डी. भगत और समर घोष जैसे फैसलों के अनुसार, इसमें ऐसा आचरण शामिल है जो इतना मानसिक कष्ट दे कि साथ रहना असंभव हो जाए। कोर्ट ने पाया कि दुर्व्यवहार, आत्महत्या की धमकियां और शारीरिक संबंधों से इनकार करने के संबंध में पति की गवाही “निरंतर और जिरह में अडिग” रही।
2. बाद में लगाए गए आपराधिक आरोप: कोर्ट ने पाया कि पत्नी द्वारा दहेज और छेड़छाड़ के आरोप बिना किसी समकालीन सबूत के थे। कोर्ट ने विशेष रूप से नोट किया कि एफआईआर (FIR) और धारा 125 सीआरपीसी (CrPC) के तहत मुकदमे तलाक की याचिका दायर होने के बाद शुरू किए गए थे। ए. जयचंद्र बनाम अनिल कौर मामले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा:
“मुकदमेबाजी शुरू होने के बाद आपराधिक कार्यवाही शुरू करना यह दर्शाता है कि आरोप प्रतिक्रियावादी और बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए हैं… ऐसे अप्रमाणित और देरी से लगाए गए आरोप स्वयं मानसिक क्रूरता का गठन कर सकते हैं।”
3. ससुर पर गंभीर आरोप: पत्नी द्वारा अपने ससुर पर लगाए गए छेड़छाड़ के आरोप पर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की:
“यह महत्वपूर्ण है कि प्रतिवादी ने स्वयं अपने ससुर पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। भले ही तर्क के लिए इसे सच मान लिया जाए, इसके बाद साथ रहना लगभग असंभव हो जाता है… एक बार जब कोई जीवनसाथी दूसरे पक्ष के करीबी रिश्तेदारों पर यौन दुराचार के आरोप लगाता है, तो वैवाहिक सामंजस्य की बहाली की संभावना समाप्त हो जाती है।”
4. ‘Clean Hands’ का सिद्धांत: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 23(1)(a) तभी लागू होती है जब याचिकाकर्ता का आचरण वैवाहिक अपराध की श्रेणी में आता हो। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट का यह निष्कर्ष कि पति ‘Clean Hands’ से नहीं आया, सबूतों के बजाय अनुमान पर आधारित था।
फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि शादी “पूरी तरह से टूट चुकी है” (Irretrievably broken down) और दोनों पक्षों को जबरदस्ती इस रिश्ते में बांधे रखना केवल मानसिक पीड़ा को बढ़ाएगा।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा:
“विवाह का विच्छेद (तलाक) किसी एक की दूसरे पर जीत नहीं है, बल्कि यह एक कानूनी मान्यता है कि रिश्ता अब उस मोड़ पर पहुंच गया है जहां से लौटना संभव नहीं है।”
अपील स्वीकार की गई और फैमिली कोर्ट के 20 मार्च 2025 के फैसले को रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग करने का आदेश दिया।




