झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने गुरुवार को राज्य की राजधानी रांची स्थित “प्रेमाश्रय”—बचाई गई नाबालिग लड़कियों के आश्रय गृह—का अचानक निरीक्षण किया और संस्थान की निगरानी, पुनर्वास तथा बालिकाओं के प्रति संवेदनशील व्यवहार को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए।
मुख्य न्यायाधीश शाम के समय आश्रय गृह पहुंचे। उनके साथ हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल, न्यायिक आयुक्त, सामाजिक सुरक्षा निदेशक और जिला बाल संरक्षण अधिकारी (DCPO) भी मौजूद थे। निरीक्षण के दौरान जस्टिस चौहान ने शेल्टर होम में रह रही प्रत्येक बालिका से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की और उनकी दिनचर्या तथा संस्थान की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी ली।
निरीक्षण के बाद उन्होंने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) की सचिव को निर्देश दिया कि महिला अधिकारियों की एक टीम गठित की जाए, जो नियमित रूप से आश्रय गृह का दौरा करे, प्रत्येक बालिका से व्यक्तिगत रूप से बात करे और आवश्यक फॉलो-अप सुनिश्चित करे।
जस्टिस चौहान ने DCPO को यह भी निर्देश दिया कि बालिकाओं के मामले संवेदनशीलता के साथ संभाले जाएं और उन्हें उनके परिवारों तक वापस ले जाने में किसी भी तरह की देरी न हो। जिन बालिकाओं के माता-पिता उपलब्ध नहीं हैं, उनके लिए उन्होंने तुरंत फॉस्टर केयर या किसी उपयुक्त वैकल्पिक देखभाल व्यवस्था की खोज करने को कहा।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन लड़कियों और उनके परिवारों की वापसी के प्रति सहमति है, उनके सामने कोई अनावश्यक प्रक्रियात्मक बाधा नहीं आनी चाहिए।
प्रेमाश्रय उन नाबालिग लड़कियों के लिए आश्रय गृह है जिन्हें दुरुपयोग, शोषण या तस्करी से बचाया जाता है। यहां उन्हें परामर्श, सुरक्षा, देखभाल और मनोवैज्ञानिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है।




