लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े को सुरक्षा का अधिकार, भले ही एक पार्टनर पहले से विवाहित हो: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े द्वारा दायर सुरक्षा याचिका का निपटारा करते हुए स्पष्ट किया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा एक मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति जसजीत सिंह बेदी की एकल पीठ ने यह आदेश उस मामले में दिया जहां लिव-इन में रह रहे जोड़े में से एक पार्टनर पहले से किसी और से विवाहित है।

अदालत ने याचिकाकर्ताओं के रिश्ते की वैधता पर कोई टिप्पणी किए बिना अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे जोड़े की जान को खतरे की आशंका (threat perception) का आकलन करें और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करें।

याचिकाकर्ताओं ने अपनी जान को खतरे का हवाला देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही याचिकाकर्ताओं का रिश्ता सामाजिक या कानूनी रूप से स्वीकार्य न हो, लेकिन किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए मांग पत्र (representation) पर विचार करें।

मामले की पृष्ठभूमि (Background)

याचिकाकर्ता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सुरक्षा की मांग लेकर हाईकोर्ट पहुंचे थे। याचिका के अनुसार:

  • याचिकाकर्ता नंबर 1 (महिला): उनकी जन्म तिथि 22 सितंबर 2000 बताई गई है। उन्होंने पहले प्रतिवादी नंबर 4 के साथ विवाह किया था और उस शादी से उनकी एक बच्ची भी है।
  • याचिकाकर्ता नंबर 2 (पुरुष): उनकी जन्म तिथि 3 नवंबर 2001 है और वे अविवाहित हैं।
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याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे वर्तमान में “लिव-इन रिलेशनशिप” में रह रहे हैं और उन्हें निजी प्रतिवादियों से अपनी जान का खतरा है। इसी खतरे को देखते हुए उन्होंने सुरक्षा के लिए अदालत से गुहार लगाई थी।

पक्षों की दलीलें (Arguments)

याचिकाकर्ताओं का पक्ष: याचिकाकर्ताओं के वकील मुनीश राज चौधरी ने तर्क दिया कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले वयस्कों को सुरक्षा पाने का अधिकार है, भले ही उनमें से एक शादीशुदा हो। अपने दावे के समर्थन में उन्होंने हाईकोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला दिया:

  1. प्रदीप सिंह और अन्य बनाम हरियाणा राज्य: जिसमें कोर्ट ने लिव-इन में रह रहे जोड़ों को सुरक्षा प्रदान की थी।
  2. परमजीत कौर और अन्य बनाम पंजाब राज्य: जहां तलाक की याचिका खारिज होने के बावजूद सुरक्षा दी गई थी।
  3. अमनदीप कौर और अन्य बनाम पंजाब राज्य: इस मामले में एक पक्ष के विवाहित होने के बावजूद लिव-इन पार्टनर के साथ रहने पर सुरक्षा का आदेश दिया गया था।

वकील ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 16 नवंबर 2025 को पुलिस को एक मांग पत्र भेजा था और वे संतुष्ट होंगे यदि पुलिस को उस पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाए।

राज्य का पक्ष: पंजाब राज्य की ओर से पेश हुए सहायक महाधिवक्ता (Assistant Advocate General) ने कहा कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं है यदि संबंधित पुलिस अधिकारी को खतरे की आशंका को देखते हुए कानून के अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाए।

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न्यायालय का विश्लेषण और टिप्पणियां (Court’s Analysis)

न्यायमूर्ति जसजीत सिंह बेदी ने प्रस्तुत दलीलों और नजीरों पर विचार करते हुए अनुच्छेद 21 की व्यापकता पर जोर दिया।

व्यक्तिगत स्वायत्तता और सामाजिक बदलाव पर: अदालत ने प्रदीप सिंह मामले का हवाला देते हुए कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा पश्चिमी देशों से हमारे समाज में आई है और अब छोटे शहरों व गांवों में भी फैल रही है। कोर्ट ने दोहराया कि कानून के तहत ऐसा रिश्ता निषिद्ध नहीं है और न ही यह कोई अपराध है।

वैवाहिक विवाद और सुरक्षा का अधिकार: अदालत ने इशरत बानो बनाम पंजाब राज्य मामले में खंडपीठ (Division Bench) के फैसले का विशेष रूप से उल्लेख किया। उस मामले में एकल पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह “कामुक और व्यभिचारी जीवन” (lustful and adulterous life) पर मुहर लगवाने जैसा है। हालांकि, खंडपीठ ने उस आदेश को पलटते हुए कहा था कि जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा सर्वोपरि है।

न्यायमूर्ति बेदी ने उस सिद्धांत को लागू करते हुए कहा:

“इस न्यायालय का विचार है कि भले ही याचिकाकर्ता ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में रह रहे हों, वे अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के हकदार हैं… जब भी इस न्यायालय को प्रथम दृष्टया (prima-facie) यह संतुष्टि होती है कि रिश्ते से नाखुश रिश्तेदार या अन्य लोग याचिकाकर्ताओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं, तो न्यायालय को उनकी सुरक्षा के लिए आवश्यक निर्देश देने होते हैं।”

फैसला (Decision)

हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. प्रतिवादी नंबर 2 (पुलिस अधिकारी) को 16 नवंबर 2025 के मांग पत्र (representation) पर विचार करने का निर्देश दिया गया।
  2. अधिकारी याचिकाकर्ताओं को जान के खतरे का आकलन करेंगे और उसके बाद कानून के अनुसार उचित कदम उठाएंगे।
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अदालत ने अपने आदेश में यह साफ कर दिया कि सुरक्षा देने का अर्थ उनके रिश्ते को कानूनी मान्यता देना नहीं है। आदेश में कहा गया:

“यह स्पष्ट किया जाता है कि यह आदेश राज्य या किसी भी पीड़ित व्यक्ति को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू करने से नहीं रोकेगा, यदि उनके एक साथ रहने से या किसी मामले में शामिल होने से कोई कानूनी कारण (cause of action) उत्पन्न होता है।”

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