सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (अब सम्मान कैपिटल लिमिटेड) से जुड़े कथित संदिग्ध लेनदेन की जांच में CBI, SEBI और कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) की सुस्ती पर कड़ी नाराज़गी जताई। कोर्ट ने CBI निदेशक को SEBI, SFIO और ED के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक बुलाने का आदेश दिया है, ताकि एनजीओ ‘सिटिज़न्स व्हिसिल ब्लोअर फ़ोरम’ द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की जा सके।
यह आदेश जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भूयान और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने दिया। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण पेश हुए।
पीठ ने कहा कि CBI ने इस मामले में जिस तरह का “ठंडा” और “दोस्ताना” रवैया अपनाया है, वह हैरान करने वाला है।
जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा:
“हम हैरान हैं कि CBI ने इतना हल्का और दोस्ताना रवैया अपनाया है। हमने कभी ऐसा नहीं देखा। हमें इस पर खेद है।”
कोर्ट ने कहा कि यह मामला निजी धन का नहीं, बल्कि जनता के पैसे का है।
“अगर दस प्रतिशत आरोप भी सही हैं, तो लेनदेन बड़े पैमाने पर संदिग्ध लगते हैं,” पीठ ने कहा।
जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब संदेह पैदा होता है, तो CBI को FIR दर्ज करनी ही चाहिए — “किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि तफ्तीश शुरू करने के लिए।”
कोर्ट ने MCA द्वारा कई अपराधों को कम्पाउंड करने पर सवाल उठाया और ASG एस.वी. राजू से पूछा कि “मंत्रालय किस हित में सारे मामले ऐसे बंद कर रहा है?”
पीठ ने कहा कि प्रस्तावित संयुक्त बैठक में MCA द्वारा मामलों के बंद किए जाने को किसी भी तरह की बाधा नहीं माना जाएगा।
कोर्ट ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को आदेश दिया कि वे ED द्वारा की गई शिकायतों की मूल फाइलें प्रस्तुत करें, जिन्हें EOW ने जांच से मना कर दिया था। एक वरिष्ठ EOW अधिकारी को सभी मूल रिकॉर्ड के साथ 3 दिसंबर को मौजूद रहना होगा।
जब SEBI के वकील ने जांच से इनकार करते हुए “अधिकार क्षेत्र” की कमी का हवाला दिया, तो कोर्ट कठोर हो गया।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
“जब संपत्तियों को कब्जे में लेकर बेचने की बात आती है तो आप कहते हैं कि देश में आप ही एकमात्र प्राधिकारी हैं। लेकिन जब जांच की बात आती है, तो आप पीछे हट जाते हैं। क्यों? क्या आपके अधिकारियों का कोई निहित स्वार्थ है?”
उन्होंने एक पुराने मामले का जिक्र करते हुए कहा कि SEBI ने 30 करोड़ रुपये की संपत्ति सिर्फ 2 लाख रुपये में नीलाम कर दी थी।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
“आप कहते हैं आपके पास शक्ति नहीं है। फिर आपके अधिकारियों को वेतन किसलिए दिया जा रहा है?”
प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि इंडियाबुल्स ने बड़े कॉर्पोरेट समूहों को संदिग्ध लोन दिए, जिनसे पैसे घुमाकर प्रमोटरों की कंपनियों में पहुंचाए गए और व्यक्तिगत संपत्ति बढ़ाई गई।
उन्होंने दावा किया कि पूर्व प्रमोटर समीर गहलौत लंदन में रह रहे हैं और महंगी संपत्तियाँ खरीद रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे गलत बताते हुए कहा कि गहलौत 2022–23 में कंपनी से बाहर हो चुके हैं और एक भी शेयर उनके पास नहीं है। अब कंपनी का नाम सम्मान कैपिटल है और इसमें कई विदेशी कंपनियों की हिस्सेदारी है।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी भूषण के आरोपों का खंडन किया।
कोर्ट ने CBI निदेशक को निर्देश दिया कि वे संयुक्त बैठक में हुई चर्चा पर हलफनामा दाखिल करें।
मामले की अगली सुनवाई 3 दिसंबर को होगी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने आरोपों की मेरिट पर कोई राय नहीं दी है — केवल यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि सभी एजेंसियां मिलकर जांच के प्रारंभिक पहलुओं को देखें।




