सक्षम कोर्ट द्वारा धारा 8 की याचिका खारिज होने पर धारा 11 की याचिका पर लागू होगा ‘रेस जुडिकाटा’: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएसडब्ल्यू (JSW) एमजी मोटर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि विशाखापत्तनम की एक सक्षम दीवानी अदालत (Civil Court) ने पहले ही मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (“आर्बिट्रेशन एक्ट”) की धारा 8 के तहत कंपनी के आवेदन को खारिज कर दिया था, इसलिए अब धारा 11 के तहत उसी राहत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर नहीं की जा सकती।

न्यायमूर्ति पुरुशेन्द्र कुमार कौरव की पीठ ने फैसला सुनाया कि यह याचिका ‘रेस जुडिकाटा’ (Res Judicata) और ‘इश्यू एस्टोपल’ (Issue Estoppel) के सिद्धांतों से बाधित है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जो एक ऑटोमोबाइल कंपनी है, ने 17 जुलाई, 2023 को प्रतिवादी मेसर्स ट्राइस्टार ऑटो एजेंसीज (विजाग) प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक डीलरशिप समझौता किया था। कथित उल्लंघनों के चलते, याचिकाकर्ता ने 29 नवंबर, 2024 को एक पत्र के माध्यम से इस समझौते को समाप्त कर दिया।

जनवरी 2025 में, प्रतिवादी ने इस समाप्ति (termination) को चुनौती देते हुए प्रधान जिला न्यायाधीश (PDJ), विशाखापत्तनम के समक्ष एक दीवानी मुकदमा (O.S. No. 6 of 2025) दायर किया और घोषणा की मांग की कि समाप्ति पत्र कानूनन मान्य नहीं है।

इसके जवाब में, जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर ने 20 जनवरी, 2025 को आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 8 के तहत एक अंतरिम आवेदन (I.A. No. 470 of 2025) दायर किया, जिसमें समझौते के क्लॉज 63 के आधार पर विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने का अनुरोध किया गया। इस आवेदन के लंबित रहने के दौरान ही, याचिकाकर्ता ने 1 मई, 2025 को एकमात्र मध्यस्थ (Sole Arbitrator) की नियुक्ति के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में धारा 11 के तहत वर्तमान याचिका दायर कर दी।

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बाद में, 27 अक्टूबर, 2025 को प्रधान जिला न्यायाधीश, विशाखापत्तनम ने धारा 8 के आवेदन को खारिज कर दिया (“PDJ का आदेश”), यह निष्कर्ष निकालते हुए कि क्लॉज 63 एक अनिवार्य मध्यस्थता समझौता नहीं है।

पक्षों की दलीलें

हाईकोर्ट के समक्ष, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि समझौते के संबंध में विवाद उत्पन्न हुए हैं जिन्हें क्लॉज 63 के तहत मध्यस्थ द्वारा सुलझाया जाना चाहिए। उन्होंने दलील दी कि PDJ का आदेश हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र या याचिकाकर्ता के संदर्भ (reference) मांगने के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है, क्योंकि “PDJ के समक्ष विवाद वर्तमान याचिका में उठाए गए विवादों से अलग थे।”

इसके विपरीत, प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि समझौता ही अस्तित्व में नहीं है और दावा किया कि उस पर प्रतिवादी के हस्ताक्षर “जाली/गढ़े हुए/कानूनन अमान्य” हैं। इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि क्लॉज 63 वास्तव में एक मध्यस्थता समझौता नहीं है क्योंकि यह “विवादों को मध्यस्थता के लिए निपटाने के पक्षों के इरादे को स्पष्ट नहीं करता है।”

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कोर्ट का विश्लेषण

न्यायमूर्ति कौरव ने PDJ के आदेश का परीक्षण किया, जिसमें देखा गया था कि क्लॉज 63.1 में “…किसी भी या सभी विवादों को… बाध्यकारी मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है (may refer)” शब्दावली का उपयोग किया गया था। जिला न्यायाधीश का मत था कि मध्यस्थता का संदर्भ वैकल्पिक था, अनिवार्य नहीं, और इस प्रकार यह एक बाध्यकारी मध्यस्थता समझौता नहीं बनाता।

हाईकोर्ट ने नोट किया कि PDJ के आदेश को किसी अपील में रद्द नहीं किया गया है और इसलिए यह पक्षों पर बाध्यकारी है। कोर्ट ने कहा:

“इसलिए, याचिकाकर्ता के लिए PDJ के आदेश में दिए गए निष्कर्ष के विपरीत रुख अपनाना खुला नहीं है।”

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि हाईकोर्ट को क्लॉज 63 की स्वतंत्र रूप से व्याख्या करनी चाहिए। न्यायमूर्ति कौरव ने कहा कि ऐसा करना “PDJ के आदेश के खिलाफ होगा, जिससे वर्तमान याचिका के पक्ष बाध्य हैं।”

कानूनी सिद्धांतों को संबोधित करते हुए, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अनिल बनाम राजेंद्र (2015) के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें स्थापित किया गया था कि एक बार जब कोई न्यायिक प्राधिकरण धारा 8 के तहत संदर्भ से इनकार कर देता है और वह निर्णय अंतिम हो जाता है, तो बाद में धारा 11 का सहारा लेना ‘इश्यू एस्टोपल’ के कारण अस्वीकार्य है। कोर्ट ने एंटीक आर्ट एक्सपोर्ट प्रा. लि. बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. और सुरेंद्र बजाज बनाम दिनेश चंद गुप्ता में अपने हालिया फैसलों का भी हवाला दिया।

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हाईकोर्ट ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि धारा 11 याचिका में विवाद—सेवा मानकों, चालान विसंगतियों और प्रोत्साहनों से संबंधित—दीवानी मुकदमे से अलग थे। कोर्ट ने कहा कि PDJ के आदेश का मूल मुद्दा क्लॉज 63 की व्याख्या और यह तय करना था कि क्या यह एक मध्यस्थता समझौता है।

फैसला

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिका ‘रेस जुडिकाटा’ द्वारा बाधित है और याचिकाकर्ता ‘इश्यू एस्टोपल’ के कारण मध्यस्थता के लिए संदर्भ मांगने से प्रतिबंधित है।

न्यायमूर्ति कौरव ने आदेश दिया, “वर्तमान याचिका खारिज की जाती है।”

केस विवरण:

  • केस शीर्षक: जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर इंडिया प्रा. लि. बनाम मेसर्स ट्राइस्टार ऑटो एजेंसीज (विजाग) प्रा. लि.
  • केस नंबर: ARB.P. 682/2025
  • पीठ: न्यायमूर्ति पुरुशेन्द्र कुमार कौरव

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