इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर में दुकानों के किरायेदारों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए साफ कर दिया है कि वे उत्तर प्रदेश किराया नियंत्रण कानून की सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते। अदालत ने ट्रायल कोर्ट को लंबित बेदखली कार्यवाही दो महीने के भीतर निपटाने का भी निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने यह आदेश सोमवार को दिया, जब तीन दुकानदारों ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान द्वारा शुरू की गई बेदखली कार्रवाइयों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया। संस्थान, जो मथुरा स्थित मंदिर का प्रबंधन करता है, ने दुकानदारों के 11 महीने के लाइसेंस की अवधि समाप्त होने और परिसर खाली करने से इनकार करने के बाद तीन दुकानों के खिलाफ बेदखली वाद दायर किए थे।
दुकानदारों का तर्क था कि सेवा संस्थान कोई सार्वजनिक धार्मिक या परोपकारी ट्रस्ट नहीं है और इसलिए उनके मामले में उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराया, नियंत्रण एवं बेदखली विनियमन) अधिनियम, 1972 लागू होना चाहिए।
अदालत ने संस्थान के दस्तावेजों की जांच की और कहा कि इसका उद्देश्य विश्वभर के हिंदुओं के लिए धार्मिक और कल्याणकारी कार्य करना है। इसी आधार पर न्यायमूर्ति अग्रवाल ने संस्थान को “सार्वजनिक धार्मिक और परोपकारी संस्था” माना।
अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी संस्थाओं की संपत्तियाँ 1972 के किराया नियंत्रण कानून से बाहर रहती हैं। इसलिए दुकानदार इस कानून के तहत किसी तरह की सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते।
याचिका को निराधार मानते हुए हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया और ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि दुकानदार पद्मा राघव और अन्य दो के खिलाफ लंबित बेदखली कार्यवाही दो महीने के भीतर पूरी की जाए।




