सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) विरोध प्रदर्शनों से जुड़े 2020 के दिल्ली दंगा साज़िश मामले में आरोपियों उमर ख़ालिद, शरजील इमाम और अन्य की बेल याचिकाओं पर सुनवाई हुई। दिल्ली पुलिस ने बेल का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह हिंसा किसी “आकस्मिक प्रतिक्रिया” का नतीजा नहीं थी, बल्कि “पूर्व-नियोजित, सुनियोजित और संगठित” हमला था, जिसका उद्देश्य समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटना था।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई अधूरी रही और अब 20 नवंबर को जारी रहेगी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश होते हुए कहा कि पेश किए गए सबूतों से साफ है कि यह हिंसा अचानक नहीं हुई।
उन्होंने कहा कि यह मानना “एक मिथक” है कि सीएए/एनआरसी के विरोध से स्वतः दंगे भड़के।
मेहता के अनुसार, शरजील इमाम के एक भाषण में कथित रूप से कहा गया कि मुसलमान जो आबादी का लगभग 30% हैं, “सशस्त्र विद्रोह” के लिए एकजुट नहीं हो पा रहे हैं, और ‘चक्का जाम’ देशभर में होना चाहिए।
मेहता ने अदालत से कहा:
“यह एक सुविचारित, सुसंगठित और पूर्व-नियोजित दंगा था। भाषण दर भाषण, बयान दर बयान समाज को बांटने की कोशिश की गई। यह सिर्फ एक कानून के खिलाफ आंदोलन नहीं था।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि आरोपियों से प्राप्त एक फ़ोटो में सभी को “साज़िश रचते हुए” एक साथ बैठे देखा जा सकता है।
लंबी अवधि की हिरासत के तर्क पर SG ने कहा कि आरोपी स्वयं मुकदमे को लंबा खींच रहे हैं।
“हम छह महीने में ट्रायल पूरा करने को तैयार हैं। लेकिन हर चार्ज पर आरोपी पांच-पांच साल बहस करेंगे। ट्रायल में देरी कर वे बेल का आधार बनाना चाहते हैं,” मेहता ने कहा।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि आरोपी, नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ इक़बाल तनहा जैसी सह-आरोपियों की 2021 की बेल का लाभ नहीं ले सकते।
उन्होंने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि वे बेल आदेश मिसाल नहीं हैं।
राजू ने मई 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा शरजील इमाम को धारा 436-A CrPC के तहत दी गई सांविधिक बेल को भी गलत बताया, यह कहते हुए कि “जहाँ UAPA लागू होता है, वहाँ सिर्फ CrPC के आधार पर बेल नहीं दी जा सकती।”
उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फ़ातिमा, मीरन हैदर और अन्य को 2020 में 53 लोगों की मौत और 700 से अधिक लोगों के घायल होने वाले दंगों के “मास्टरमाइंड” बताकर UAPA और पुराने IPC की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था।
सभी आरोपी इन आरोपों से इनकार करते हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने नौ आरोपियों की बेल खारिज करते हुए कहा था कि “षड्यंत्रकारी हिंसा” को शांतिपूर्ण विरोध के नाम पर संरक्षित नहीं किया जा सकता।
अदालत ने माना कि संविधान शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार “पूर्ण नहीं” है और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उस पर उचित सीमाएँ लागू होती हैं।
सुप्रीम कोर्ट 20 नवंबर को सुनवाई जारी रखेगा। सभी आरोपी 2020 से जेल में हैं।




