सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने 16 मई 2024 के उस फैसले को वापस ले लिया है जिसमें केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने वाले परियोजनाओं को पश्चात (post-facto) पर्यावरणीय स्वीकृति देने के निर्णय को रद्द कर दिया गया था।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयान की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला सुनाया। हालांकि, न्यायमूर्ति भूयान ने इस निर्णय से असहमति जताई और मई के फैसले को वापस लेने के खिलाफ मत दिया।
मई 2024 में, तत्कालीन पीठ जिसमें न्यायमूर्ति ए. एस. ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयान शामिल थे, ने केंद्र सरकार की 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन को असंवैधानिक करार दिया था। इन दस्तावेज़ों के माध्यम से सरकार ने उन परियोजनाओं को पश्चात पर्यावरणीय मंज़ूरी दी थी जो पहले से बिना स्वीकृति के संचालन में आ चुकी थीं।
उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “प्रदूषण रहित वातावरण में जीने का अधिकार” संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार है। कोर्ट ने केंद्र को भविष्य में किसी भी परियोजना को पश्चात पर्यावरणीय मंज़ूरी देने से रोक दिया था।
हालांकि, मई के आदेश में यह स्पष्ट किया गया था कि 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन के तहत जो post-facto पर्यावरणीय स्वीकृतियां पहले ही दी जा चुकी हैं, वे प्रभावित नहीं होंगी।
वर्तमान आदेश
मंगलवार को दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही मई 2024 के निर्णय को “रिकॉल” कर लिया है। इसका मतलब है कि फिलहाल सरकार द्वारा जारी 2017 और 2021 के पर्यावरणीय दिशा-निर्देशों की वैधता फिर से बहाल हो गई है।
इस मामले में न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयान ने अलग राय रखी और मई के फैसले को वापस लेने के बहुमत के निर्णय से असहमति जताई। उल्लेखनीय है कि मई का निर्णय न्यायमूर्ति भूयान और ओका द्वारा ही दिया गया था।
यह रिकॉल लगभग 40 पुनर्विचार याचिकाओं और संशोधन याचिकाओं के बाद हुआ है, जिन्हें विभिन्न औद्योगिक इकाइयों, सार्वजनिक उपक्रमों और सरकारी संस्थानों द्वारा दायर किया गया था। उन्होंने post-facto मंज़ूरी को आर्थिक विकास और औद्योगिक परियोजनाओं के हित में बताया था।




