सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPPCL) के अधिकारी विमल नेगी की मौत की जांच कर रही सीबीआई पर तीखी टिप्पणी की और एजेंसी के कुछ अधिकारियों की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने उन्हें “बिलकुल बोगस अधिकारी” बताते हुए कहा कि ऐसे अधिकारी सेवा में रहने के योग्य नहीं हैं।
न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ एचपीपीसीएल के निदेशक (इलेक्ट्रिकल) देश राज द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई के दौरान पीठ ने सीबीआई की ओर से पूछे गए सवालों और आरोपी की कथित “असहयोग” की दलील पर कड़ी आपत्ति जताई।
पीठ ने कहा, “सवाल पूछ कौन रहा है? यह बचकाना है। अगर यह किसी वरिष्ठ अधिकारी ने किया है, तो यह सीबीआई पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। ‘आपने उसे इसलिए ट्रांसफर किया’ — इस तरह का सवाल आप आरोपी से पूछेंगे? इसका क्या जवाब उम्मीद करते हैं?”
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, “अगर आरोपी चुप रहता है, तो चुप रहने का अधिकार उसका संवैधानिक अधिकार है। आप इसे असहयोग कह रहे हैं? सीबीआई में किस तरह के अधिकारी हैं? बिलकुल बोगस अधिकारी। सेवा में रहने लायक नहीं। यह किस तरह की केस डायरी है? सिर्फ अनुमान, कोई ठोस सबूत नहीं।”
सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है जिसमें आरोप है कि एचपीपीसीएल के शीर्ष अधिकारी— जिनमें प्रबंध निदेशक हरिकेश मीणा और देश राज भी शामिल हैं— ने विमल नेगी पर गलत काम करने का दबाव डाला। परिवार का आरोप है कि लगातार तनाव और मानसिक उत्पीड़न के कारण नेगी ने अपनी जान ले ली।
देश राज ने सभी आरोपों से इनकार किया और कहा कि सीबीआई द्वारा लगाया गया “असहयोग” का आरोप निराधार है।
जांच सामग्री का अवलोकन करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश राज को अग्रिम जमानत दे दी और कहा कि सीबीआई के रुख का कोई औचित्य नहीं पाया गया।
सुप्रीम कोर्ट की यह तीखी टिप्पणी सीबीआई की संवेदनशील मामलों की जांच शैली पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े करती है और एजेंसी के भीतर समीक्षा की जरूरत की ओर इशारा करती है।




